परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
  • ‘हमारी पीढी ने वर्ष १९७० तक सात्त्विकता अनुभव की; पर आगे की पीढी ने वर्ष २०१८ तक अल्प मात्रा में अनुभव की और आगे वर्ष २०२३ तक अनुभव नहीं कर पाएंगे । उसके उपरांत की पीढी हिन्दू राष्ट्र में सात्त्विकता पुनः अनुभव करेगी !’
  • ‘पश्चिमी शिक्षण किसी भी समस्या के मूल कारण तक, उदा. प्रारब्ध, अनिष्ट शक्ति, कालमहात्म्य तक नहीं जाता । क्षयरोग होने पर क्षयरोग के कीटाणु मारने की औषधि न देकर केवल खांसी की औषधि देने जैसा उनका उपाय है !’
  • ‘शरीर में यदि कीटाणु हों, तब वे शरीर में ली गई औषधि के कारण मरते हैं । वैसे ही वातावरण में विद्यमान नकारात्मक रज-तम यज्ञ के स्थूल एवं सूक्ष्म धुएं से नष्ट होता है ।’
  • ‘गणित और भूगोल ये अनोखे विषय हैं । एक की भाषा में दूसरे विषय को नहीं समझा सकते । वैसे ही विज्ञान और अध्यात्म ये दोनों निराले विषय हैं, यह विज्ञान को समझना आवश्यक है ।’
  • ‘निर्गुण ईश्‍वरीय तत्त्व से एकरूप होने पर ही खरी शांति का अनुभव कर सकते हैं । ऐसा होने पर भी शासनकर्ता जनता को साधना न सिखाकर ऊपर- ऊपर का मानसिक स्तर का उपाय करते हैं, उदा. जनता की समस्याओं को दू करने के लिए ऊपर-ऊपर का प्रयत्न करना, मानसिक रोगों के लिए चिकित्सालय बनवाना इत्यादि ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले