अंतरराष्ट्रीय स्तरपर रोष निर्माण हुआ है, इसलिए भारत को भी चीन के विरुद्ध बोलना चाहिए, ऐसा जनता को लगता है !
बीजिंग (चीन) – कोरोना महामारी के पश्चात चीन को कष्टदायक स्थिति से गुजरना पडेगा । अमेरिका का साथ देनेवाले देशों का रोष चरमतक पहुंचा तो चीन के विरुद्ध यह प्रकरण सीधे युद्धतक जा सकता है । चीन के रक्षा मंत्रालय द्वारा राष्ट्रपति शी जिनपिंग तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं को प्रस्तुत किए गए एक ब्यौरे में ऐसा कहा गया है । समाचार संस्था रॉईटर्स ने यह समाचार दिया है । चीन की गुप्तचर संस्था सी.आई.सी.आई.आर्. ने यह ब्यौरा तैयार किया है । इस ब्यौरे के प्रति चीन गंभीर है और उसने अब रक्षात्मक नीति अपनाई है ।
१. इस ब्यौरे में आगे कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तरपर चीनी लोगों के विरुद्ध प्रचुर मात्रा में रोष उत्पन्न है । चीन के विरुद्ध वर्ष १९८९ में तियानमेन चौकपर चलाए गए छात्रों के आंदोलन की भांति आज का वातावरण है । (तियानमेन चौक आंदोलन के कारण चीन को आर्थिक प्रतिबंध झेलने पडे थे ।) अमेरिका चीन के मित्रदेशों को आर्थिक और सैनिकी सहायता देकर चीन को चुनौती दे सकता है, जो संपूर्ण दक्षिण एशिया के लिए संकटकारी सिद्ध होगा ।
२. चीन से फैले कोरोना के कारण रुस और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों को भी बडी मार झेलनी पडी है, तो इटली, स्पेन जैसे अन्य देश भी संकट में हैं । इसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तरपर चीन के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग ने जोर पकड लिया है । उसी में ही अब चीन का यह अंतर्गत ब्यौरा सामने आने से अंतरराष्ट्रीय स्तरपर प्रतिदिन रोष बढता जा रहा है ।
क्या है तियानमेन चौक प्रकरण ?
४ जून १९८९ को चीन के कम्युनिस्ट दल के विरुद्ध उदारवादी नेता हू याओबैंग की हत्या के विरुद्ध सहस्रों छात्र बीजिंग के तियानमेन चौकपर आंदोलन चला रहे थे । तब चीन की सेना ने इन निर्दोष छात्रोंपर गोलियां चलाईं, उनपर टैंक चलाएं और उन्हें कुचलकर मार डाला । ब्रिटिश गुप्तचर विभाग के अनुसार इस नरसंहार में १० सहस्र लोगों की मृत्यु हुई थी । विश्वभर में जब इस नरसंहार के कारण चीन की आलोचना हो रही थी; परंतु चीन ने इस कार्रवाई को उचित बताया था ।