साधक तथा कार्यकर्ताओं के लिए महत्त्वपूर्ण सूचनाएं !
‘संपूर्ण भारत में विविध स्थानों पर जिलास्तरीय अधिवेशन, ‘हिंदू राष्ट्र-जागृति सभा’, हिंदू संगठन मेले, वाचक मेले तथा पत्रकार परिषद आदि कार्यक्रम तथा कार्यशाला एवं शिविर आयोजित किए जाते हैं । ये कार्यक्रम निर्विघ्न रूप से संपन्न होने हेतु तथा उसकी पूरी फलनिष्पत्ति मिलने हेतु इन कार्यक्रमों के १ – २ दिन पूर्व से कार्यक्रम पूर्ण होने तक साधक आध्यात्मिक स्तर पर आगे दिए उपाय करें।
१. संकट तथा अडचनें दूर होकर कार्यक्रम की भूमि के आसपास सुरक्षा
कवच निर्माण होने हेतु उसके अनुरूप प्रार्थनाओं को श्रीकृष्ण के नामजप के मंडल में लिखना
कार्यक्रमों का नियोजन होते ही कागज पर प्रथम श्रीकृष्ण के नामजप का मंडल बना कर उसमें आगे दी गई प्रार्थना लिखेंं ।
‘हे श्रीकृष्णा, ‘इस कार्यक्रम में आनेवाली सभी अडचनें नष्ट कीजिए। संपूर्ण कार्यक्रम निर्विघ्न रूप से संपन्न हो तथा कार्यक्रम का उद्देश्य सफल हो’, ऐसी तुम्हारे चरणो में प्रार्थना है ।’
कुछ विशेष अडचनेें आ रही हैं, ऐसा ध्यानमें आने पर उन्हें दूर करने हेतु नामजप के मंडल में प्रार्थना लिखें।
२. सभागृह में भजन लगाएं तथा अगरबत्ती से वहां की शुद्धि करना
कार्यक्रम के स्थान पर वातावरण की शुद्धि हेतु कार्यक्रम को आरंभ होने से पूर्व तथा कार्यक्रम के समय सभागृह में प.पू. भक्तराज महाराज के भजन अथवा क्षात्रगीत धीमी आवाज में लगा कर रखें। यदि कार्यक्रम हिंदी अथवा मराठी भाषा में हो तो उसी भाषा में भजन लगाएं। कार्यक्रम आरंभ होने से पूर्व सभागृह की तथा ‘हिंदू राष्ट्र-जागृति सभा’ मैदान में आयोजित हो तो वहां के व्यासपीठ की अगरबत्ती से शुद्धि करें। कार्यक्रम होते समय बीच-बीच में अगरबत्ती लगाने हेतु एक साधक का नियोजन करें । यदि संभव हो तो उपायों के लिए सभागृह के ४ कोनों के प्रत्येक कोने में १ खोका लगाएं। उन खोकों की खुला भाग सभागृह की दिशा में हों।
३. यदि सभागृह में दबाव का अनुभव होता है अथवा कार्यक्रम के
दायित्व साधक को कुछ कष्ट हो रहा हो, तो उसकी नींबू से नजर उतारे ।
सूक्ष्म जाननेवालेे ६० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तरवाले अथवा भाव रहनेवाले साधक कार्यक्रम से ३० मिनट पूर्व ‘क्या सभागृह में दबाव महसूस होता है ?’,यह देखेंं । यदि दबाव प्रतीत होता है, तो सभागृह में व्यासपीठ के विपरीत दिशा में दीवार के पास व्यासपीठ की ओर मुंह कर खडे हो कर एक नींबू से पूरे सभागृह की नजर उतारें । नजर उतारते समय नींबू को दाहिने हाथ की मुठ्ठी में लेकर हाथ घडी के काटे की दिशा में ६ बार तथा विपरीत दिशा में ६ बार गोल फेर कर नजर उतारें । पश्चात वे नींबू पानी में विसर्जित करें । यदि कार्यक्रम के दायित्व साधक को कुछ कष्ट हो रहा है, तो उसके सामने खडे रह कर इसी पद्धति से उसकी नजर उतारं ।
४. साधक-वक्ताओं को आध्यात्मिक कष्ट न हो, इस हेतु
उनको कार्यक्रम के समय पास में (जेब में) नींबू रखना
कार्यक्रम को संबोधित करनेवालेे साधक-वक्ताओं को आध्यात्मिक कष्ट न होनेे हेतु उनको चाहिए कि कार्यक्रम के समय अपने पास (जेब में) एक नींबू रखें तथा स्वयं की रक्षा के लिए प्रार्थना करें । कार्यक्रम के पश्चात उनको अपने पास में रखे नींबू को बहते पानी में विसर्जित करना चाहिए । यदि वहां पानी उपलब्ध न हो तो नींबू को निर्जन स्थल पर डाल दें अथवा वहां पर ऊपर रखें । नींबू को विसर्जित करने से पूर्व यदि उस नींबू का रंग बदला है, उस पर रचना उभरी है अथवा दाग पडा है, ऐसा पाया गया है तो कैमरे (छायाचित्रक) से अथवा अच्छेे भ्रमणभाष (मोबाइल) से उसका छाया चित्र निकाल कर रखें ।
यदि उस छायाचित्र के संदर्भ में अनुभूति तथा स्वयं को अपनी रक्षा होने की अथवा कष्टदायी अनुभूति आई हो तो उसे लिख कर रामनाथी आश्रम के ग्रंथ विभाग को भेजें । कार्यक्रम के दिन साधक-वक्ताओं को चाहिए कि वे नामजपादि आध्यात्मिक उपायोंं की ओर भी ध्यान दें । ‘इसके साथ ही कार्यक्रम निर्विघ्न रूप से संपन्न हों’, इस हेतु व्यासपीठ पर (दर्शनीय भाग में न आए, ऐसे स्थान पर) नींबू रखें ।
५. अडचन दूर होेने हेतु ‘निर्विचार’ नामजप करना
यदि कार्यक्रम में बहुत अडचनें आ रही हों तो ऊपर दिए उपायों के अतिरिक्त ६० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तरप्राप्त साधक अथवा संतों को वे अडचनें दूर होने हेतु ‘निर्विचार’ नामजप करने के लिए कहना ।
यदि कार्यक्रमस्थल पर इसके अतिरिक्त अन्य कोई कष्ट हो रहे हों तो उपायों के संदर्भ में उत्तरदायी साधकों से संपर्क करें ।
धर्मप्रेमियों के संगठन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले इस कार्यक्रम में विघ्न उपस्थित करने का प्रयास अनिष्ट शक्तियां कर सकती हैं । अडचनें कितनी भी आएं परंतु तब भी साधकों को भयभीत नहीं होना चाहिए । श्री गुरुदेवजी पर अटल श्रद्धा रख सभी आध्यात्मिक उपाय गंभीरता से तथा भावपूर्ण करने चाहिए ।’
धर्मजागृति पर कार्यक्रमाें का आयोजन करनेवाले दायित्व साधकों को (आयोजन करनेवाले सेवकों कों ) ‘ कार्यक्रमस्थल पर सभी आध्यात्मिक उपाय किए जा रहे हैं क्या ?’, इसकी निश्चिति करनी चाहिए’।
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, गोवा.