क्या विज्ञान किसी एक क्षेत्र में भी धर्मशास्त्र के आगे है ?
कहां प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोच्च स्तर का ज्ञान देनेवाला हिन्दू धर्म, तो कहां आंगनवाड़ी के समान शिक्षा देनेवाले पश्चिमी देश !
सभी क्षेत्रों में ऐसी स्थिति है । इसके कुछ उदाहरण आगे दिए हैं –
चिकित्सा क्षेत्र
‘एक ही रोग से पीडित सभी रोगियों पर उपचार करते समय डॉक्टर केवल रोग ध्यान में रखकर सभी को समान औषधियां देते हैं । इसके विपरीत, वैद्य रोगी के रोग के साथ ही उसके स्वास्थ्य में वात-पित्त-कफ आदि में से किस दोष की प्रबलता अधिक है, यह ध्यान रखकर औषधियां देते हैं ।’
न्यायप्रणाली
‘अध्यात्म में उन्नति किए हुए साधक ही केवल व्यक्ति को देखकर उसने अपराध किया है कि नहीं, यह समझ जाते हैं । इसके विपरीत पुलिस, वकील और न्यायाधीश आदि वह समझ नहीं पाते । इसलिए करोडों दावे अनेक वर्षों से प्रलंबित हैं ।’
वास्तुशास्त्र
‘वास्तु के व्यक्ति पर रात-दिन परिणाम होते हैं । यह ज्ञात न होने के कारण आधुनिक वास्तुशास्त्रज्ञ केवल हवा, प्रकाश और वास्तु कैसी दिखाई देगी, इसका विचार करते हैं । इसके विपरीत, धर्म में वास्तु के कारण कष्ट न हो एवं उसमें साधना करने के लिए पूरक वातावरण मिले, इसका विचार किया होता है ।’
प्राणीशास्त्र
‘विज्ञान प्राणियों के स्थूलदेह की जानकारी बताता है । इसके विपरीत, अध्यात्मशास्त्र किस प्राणी में किस देवता का तत्त्व है आदि जानकारी बताता है ।’
वनस्पति शास्त्र
‘विज्ञान वनस्पतियों की केवल भौतिक जानकारी बताता है । इसके विपरीत, अध्यात्मशास्त्र किस देवता को कौनसे पत्ते, फूल अर्पित करने चाहिए, यह जानकारी भी बताता है ।’
खगोलशास्त्र
‘विज्ञान अलग-अलग ग्रह-तारों का आकार, पृथ्वी से उनकी दूरी आदि जानकारी बताता है, जबकि ज्योतिषशास्त्र ग्रह-तारों का परिणाम और परिणाम बुरा होनेवाला हो, तो उस पर उपाय भी बताता है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले