संपादकीय : असम के लिए अगला चरण !

भारत सरकार, ‘युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम’ (उल्फा) संगठन तथा असम राज्य में त्रिपक्षीय समझौता

भारत सरकार, ‘युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम’ (उल्फा) संगठन तथा असम राज्य में अभी अभी एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ है । इस समझौते से ‘शांति बढकर विकास के कामों में गति आएगी’, ऐसा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा । मोदी सरकार के आने के पश्चात सब मिलाकर पूर्वांचल को भारत से अलग रखने की स्थिति को परिवर्तित करने के लिए वहां के प्रदेशों की मूल समस्याएं जानकर तथा उन पर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से विचार कर धीरे-धीरे उन्हें भारत का ही भाग होने का भान कराने के प्रयास होने लगे तथा कुछ सीमा तक उसमें सफलता भी मिल रही है । अभी अभी असम के ‘उल्फा’ आतंकवादी संगठन से हुए समझौते को उसी का अगला चरण कहना होगा । गत अनेक वर्षाें से असम सहित पूरे पूर्वांचल में हिंसा लगातार अपने पैर फैला रही है । वर्ष २०१४ से पहले पूर्वोत्तर भारत एवं कश्मीर जैसे ही वहां के नागरिकों को और शेष देशवासियाें को भी एक अलग ही क्षेत्र लगता था । आवागमन के साधन तथा संचार व्यवस्था का अभाव, कांग्रेस सरकार की अक्षम्य उपेक्षा आदि कारणों से वहां की समस्याओं को ठीक से समझा ही नहीं गया था ।

किंतु मोदी सरकार के आने के पश्चात पूर्वांचल की स्थिति में परिवर्तन होने लगा है । केंद्र सरकार की ओर से समय समय पर वहां जाकर बातें की जाने लगीं । केंद्र सरकार ने ‘हिंसामुक्त असम’ करने का ध्येय रखा तथा गत ५ वर्षों में यहां के विविध गुटों से ९ विविध समझौते किए गए । असम में अस्थिरता निर्मित करनेवाले ये विविध गुट एक विद्रोही गुट ‘उल्फा’ से बने टुकडे हैं । इनमें से एक गुट भारत के पक्ष में है । इस गुट से केंद्र सरकार ने यह समझौता किया है । इन गुटाें के आपसी मतभेद के कारण इन सब को एकत्र कर शांति स्थापित करने के लिए मिल कर नीति निश्चित करना संभव नहीं हो रहा है, वास्तव में सरकार के सामने यह बहुत बडी समस्या है । इसलिए विवश हो कर प्रत्येक गुट से अलग-अलग समझौते करने पड रहे हैं । अबतक मोदी सरकार के प्रयासों से ९ सहस्र आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया है तथा असम में ८५ प्रतिशत क्षेत्र ‘उल्फामुक्त’ हुआ है, ऐसा सरकार का कहना है । यदि ऐसा है, तो सचमुच यह सकारात्मक कदम है । अबतक किए विविध समझौते तथा संगठन में मतभेदों के परिणामस्वरूप निश्चित ही यहां पहले की अपेक्षा परिस्थिति में सुधार हुआ है, वहां के समाचारों से यह ध्यान में आता है ।

नए समझौते के सूत्र

असम के नागरिकाें की परंपराएं अक्षुण्ण रखना, उपजीविका के अवसर बढाना, संबंधित संगठनों के सदस्याें को उपजीविका देना, जिन्होंने हथियारों का त्याग किया है, उन्हें मुख्य धारा में लाने का प्रयास करना, इस समझौते के ये कुछ मुख्य सूत्र हैं । इस समझौते की विशेषता यह है कि शांति-समझौते के प्रारूप पर सरकार के साथ प्रथम बार ही किसी आतंकवादी गुट ने हस्ताक्षर किए हैं । इस समझौते के समय ७०० लोगों ने आत्म समर्पण किया है । इनमें बरुआ के नेतृत्ववाला समूह इस समझौते में सहभागी नहीं हुआ है । अनूप चेतिया के जिस गुट ने इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं, उसने वर्ष २०११ से हथियार प्रयोग कर दंगे नहीं किए हैं ।

शांति की ओर…

‘उल्फा’, एक ऐसा सशस्त्र संगठन है जिसका गठन वर्ष १९७९ में ‘स्वतंत्र असम’ का ध्येय लेकर किया गया था ! अर्थात आगे चलकर उसका विभाजन होना एक प्रकार से सरकार के हित में हुआ, ऐसा ही कहना होगा । असम की सीमाएं अनेक राज्याें से जुडती हैं । यह पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर; दक्षिण में मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम; तथा अरुणाचल प्रदेश को जोडता है; किंतु बांगलादेश और भूटान से भी यह सीमा जुडी हुई है । यदि ऐसा है तो कोई कल्पना कर सकता है कि ऐसे लोगों की संख्या कितनी होगी जो इस राज्य की स्थिति को प्रभावित करते हैं तथा यहां के आतंकवादियों की सहायता करते हैं । अबतक उल्फा ने यहां के १० सहस्र नागरिकाें को मार डाला है । यह भयावह स्थिति ध्यान में लेकर विविध गुटाें से समझौता करके ही क्याें न हो, यहां शांति के लिए एक एक पग उठाने को स्वागत योग्य ही कहना होगा । कोई भी देश, कोई भी अच्छा नेता और विशेषकर भारत जैसे देश का नेता ‘बिना रक्तपात किए सौहार्द भाव को मानता हो’, तो वह भी ऐसा ही करना पसंद करेगा । असम में अब वही हो रहा है । सभी गुटों को एक साथ लेकर कोई चर्चा नहीं कर सकते, तो प्रत्येक से अलग अलग समझौता करना; किंतु उसका परिणाम शांतिपूर्ण कैसे होगा, भारतीय नेतृत्व के लिए यह देखना अपरिहार्य है ।

ठीक से देखें, तो पूर्वांचल की जनता भी भारत की ही जनता है और उनमें से बहुसंख्यकों को विदेशी शक्तियों ने बहलाकर (ब्रेनवाश)आतंकवादी बनाया है तथा देश के विरोध में खडे होने के लिए बाध्य किया है । उनमें अधिकांश शत्रु द्वारा नक्सलियों के समान बहलाकर (ब्रेनवाश) बनाए गए आतंकवादी हैं । आत्मसमर्पण करने वालों में अधिकांश भारतीय आदिवासी मूल के हैं । इसलिए वे पुन: सामान्य जीवन जीना चाहते हैं । वे इस संगठन के अस्थिर जीवन से हो रही हानि भी समझ गए हैं । इस्लामी आतंकवादी तथा पूर्वांचल के इन आतंकवादिओं में यह बडा अंतर है । वे भारतीय और मूलत: हिन्दू ही हैं । इसलिए उनसे बात करना फलदायी हो रहा है । ‘एक एक शत्रुगुट को अशक्त करना और प्रत्येक क्षेत्र में शांति तथा पर्याय से विकास करते जाना, ऐसा कहना अयोग्य नहीं होगा कि सरकार की यह नीति परिणामकारक है ।’ । कुछ लोग कहेंगे कि यह कदम चुनाव की पृष्ठभूमि पर है । कुछ मात्रा में ऐसा हो सकता है; किंतु क्या यह कभी भी स्वागत योग्य नहीं है, कि देश का एक वर्ग जिसे कांग्रेस ने कमजोर कर दिया है, थोडा शांत हो रहा है? भारत को विश्व शक्ति बनने के लिए इसका चरण दर चरण होना आवश्यक भी है । इसलिए विरोधी चाहे इसे लेकर कितना भी मीनमेख निकालें, तो भी असम की दृष्टि से यह अगला चरण सिद्ध होगा, इसमें शंका नहीं !

उल्फा संगठन के साथ हुआ समझौता असम में शांति की दृष्टि से अगला चरण सिद्ध होगा !