सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
१. लाभ : प्रेम माया संबंधी हो तब भी, प्रेम करने पर अन्यों से प्रेम कैसे करना है, यह सीखने को मिलता है । जिसे यह ज्ञात नहीं होता, उसके लिए प्रीति के स्तर पर जाना कठिन होता है। साथ ही उसकी प्रीति में व्यापकता नहीं आती।
२. हानि : अधिकांश लोग प्रेम में फंस जाते हैं, अर्थात माया में उलझते जाते हैं ।
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ʻसनातन प्रभातʼ नियतकालिक