सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘किसी धार्मिक संस्था को दान में दिया जाने वाला धन यदि पाप मार्ग से अर्जित किया हुआ हो, तो वह दान व्यर्थ जाता है; अर्थात किसी सेवा के लिए उस धन का उपयोग करने पर उस सेवा की फलोत्पत्ति अच्छी नहीं होती !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले