कुतुब मीनार परिसर में पूजा की अनुमति नहीं दी जा सकती ! – पुरातत्व विभाग

९ जून को हिन्दू पक्ष की याचिका पर निर्णय !

कुतुब मीनार क्षेत्र में २७ हिन्दू एवं जैन मंदिरों को ध्वस्त कर  वहां एक मस्जिद का निर्माण किया गया

नई देहली – कुतुब मीनार के परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगनेवाली एक हिन्दू पक्ष की याचिका पर २४ मई को न्यायालय में सुनवाई हुई । उस समय पुरातत्व विभाग ने न्यायालय में एक शपथ पत्र प्रस्तुत कर कहा कि ‘कुतुब मीनार में पूजा करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता ।’ उस समय हिन्दू पक्ष द्वारा तर्क प्रस्तुत किए गए । माननीय न्यायालय ९ जून २०२२ को अपना निर्णय सुनाएगा । न्यायालय ने हिन्दू तथा मुसलमान, दोनों पक्षों को अगले एक सप्ताह में लिखित  स्वरूप में अपने वक्तव्य देने को कहा है । इससे पूर्व, दीवानी न्यायालय ने हिन्दू पक्ष की मांग को अस्वीकार कर दिया था ।

१. “कुतुब मीनार क्षेत्र में २७ हिन्दू एवं जैन मंदिरों को ध्वस्त कर  वहां एक मस्जिद का निर्माण किया गया है । वर्तमान में भी वहां हिन्दू देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियां हैं । इसलिए, हिन्दुओं को वहां पूजा करने का अधिकार मिलना चाहिए”, ऐसा पू (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी ने इस संबंध में न्यायालय को बताया । माननीय न्यायालय ने कहा कि “यदि वे देवता पिछले ८०० वर्षों  से बिना पूजा के वहां हैं, तो उन्हें वैसे ही रहने दिया जा सकता है ।”

(सौजन्य : Zee News)

२. इस पर पू (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी ने कहा कि “हमारे पास इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि २७ हिन्दू तथा जैन मंदिरों को तोडकर वहां ‘कुवत उल इस्लाम’ नामक मस्जिद बनाई गई, इसलिए हमें यहां पूजा करने की अनुमति दी जानी चाहिए । वहां एक मंदिर न्यास की स्थापना की जानी चाहिए ।”

३. न्यायालय ने पूछा, “क्या आपको लगता है कि स्मारक को पूजा स्थल बनाया जाना चाहिए ?” पू (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी ने कहा, “हमें यहां कोई मंदिर नहीं चाहिए, हम मात्र पूजा करने का अधिकार चाहते हैं ।”

४. न्यायालय ने कहा कि “जिस मस्जिद का आप उल्लेख कर रहे हैं, उसका वर्तमान में उपयोग नहीं किया जा रहा । आप उस मस्जिद की जगह पर मंदिर निर्माण की मांग क्यों कर रहे हैं ?”

५. इस पर पू (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी ने कहा कि “कई संरक्षित स्मारकों में हिन्दुओं द्वारा पूजा की जाती है ।” इस पर न्यायालय ने कहा, “हां ठीक है ! किन्तु, आप यहां मंदिर बनाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि आप कहते हैं कि ८०० वर्ष पूर्व यहां एक मंदिर था तथा इसे पुन: बनाया जाना चाहिए । किन्तु, जब ८०० वर्ष पूर्व मंदिर का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है, तो ऐसी मांग कैसे की जा सकती है ?”

६. इस पर पू (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी ने कहा, “माननीय, उच्चतम न्यायालय में अयोध्या के प्रकरण में कहा गया था कि देवता सदैव उपस्थित रहते हैं । जो भूमि देवता की होती है, वह देवता के विसर्जित होने तक सदा उस देवता के आधिपत्य में रहती है । माननीय उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने भी इसे स्वीकार किया है । यदि किसी भी देवता की मूर्ति को तोडा जाता है अथवा मंदिरों को तोडा जाता है, तब भी देवता अपनी दिव्यता एवं पवित्रता नहीं त्यागते । कुतुब मीनार क्षेत्र में आज भी भगवान महावीर, भगवान गणेश आदि की मूर्तियां हैं । देवता हैं, तो पूजा करने का अधिकार भी है । उस स्थान को विवादास्पद नहीं कहा जा सकता ; क्योंकि, गत ८०० वर्षों में वहां नमाज नहीं पढी गई ।”

७. न्यायालय में तर्क के समय पुरातत्व विभाग के अधिवक्ता सुभाष गुप्ता ने कहा कि “कुतुब मीनार एक स्मारक है, इसलिए यहां किसी भी प्रकार की धार्मिक विधि की अनुमति  नहीं दी जा सकती । इसके स्वरूप में परिवर्तन नहीं किया जा सकता, इसलिए याचिका निरस्त की जानी चाहिए । कुतुब मीनार जब पुरातत्व विभाग में आई तो वहां कोई पूजा नहीं की जाती थी । कनिष्ठ न्यायालय ने आदेश में कहा था कि उपासकों को उनके धर्म के अनुसार अधिकार है ; किन्तु इस प्रकरण में पूजा करने का कोई अधिकार नहीं है । स्मारक का स्वरूप वैसा ही रहता है, जैसा पुरातत्व विभाग में आने के समय पर था । जिसके फलस्वरूप, कुछ स्थानों पर पूजा होती है तथा कुछ स्थानों पर ऐसा नहीं है ।”