१. ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के माध्यम से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा हिन्दू राष्ट्र स्थापना का लक्ष्य देना
‘वर्ष १९९८ में साप्ताहिक ‘सनातन प्रभात’ ने नियतकालिकों के क्षेत्र में पदार्पण किया । ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के संस्थापक-संपादक परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी द्वारा आरंभ किया गया साप्ताहिक आज २२ वर्षाें की दीर्घ अवधि के उपरांत भी अविरत गतिमान है । वर्ष १९९९ में ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’ हेतु इस ध्येयवाक्य के साथ दैनिक ‘सनातन प्रभात’ का ‘गोवा एवं सिंदुधुर्ग’ संस्करण सर्वप्रथम आरंभ हुआ था । वर्तमान में दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के ‘रत्नागिरी’, ‘पश्चिम महाराष्ट्र एवं मराठवाडा’, ‘मुंबई, ठाणे, रायगढ एवं उत्तर महाराष्ट्र’ ये ३ संस्करण भी आरंभ हैं । अब ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु प्रतिबद्ध !’ ऐसा दैनिक का ध्येयवाक्य है । ऐसा कहना होगा कि इस पृथ्वीतल पर उच्च कोटि का लक्ष्य लेकर उस दिशा में अग्रसर एकमात्र नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ ही है । आज सनातन के सहस्रों साधक स्वयं में विद्यमान स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन कर परात्पर गुरु, सद्गुरु एवं संत पदों पर विराजमान हैं, साथ ही अध्यात्म में प्रगतिपथ पर हैं । इससे यह ध्यान में आता है कि वह ईश्वरीय राज्य की अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लक्ष्य की दिशा में अग्रसर हो रहा है ।
२. ‘सनातन प्रभात’ की सेवा करते समय मन को प्राप्त सुसंस्कार १५ वर्ष उपरांत भी कार्यरत रहना
मेरे जैसे न जाने कितने साधकों ने इन नियतकालिकों की सेवा में सहभाग लिया है । वास्तव में मुझे इस क्षेत्र का तनिक भी अनुभव नहीं था । हम जब इस सेवा से जुडे, तभी हमने सबकुछ सिखा । उस समय हमें इस नियतकालिक का अपने लक्ष्य की दिशा में मार्गक्रमण और सुव्यवस्थापन बहुत निकट से अनुभव करने को मिला । स्वयं में विद्यमान दोषों को कैसे दूर करना है, यह हमने स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के माध्यम से सिखा । हमारे मन पर इसके संस्कार स्थाईरूप से अंकित हुए । आज भले ही मैं इस कार्य से पहले की भांति पूर्णकालीन नहीं जुडा हूं; परंतु तब भी परमेश्वर ने उन ५ वर्षाें की पूर्णकालीन अवधि में हमसे जो कुछ भी करवा लिया, उसका हमें व्यवसाय में लाभ मिल रहा है । परमेश्वर ने हमें वहां सिखाया हुआ व्यवस्थापन, संगणकीय टंकण, कार्य के प्रति निष्ठा और सेवाभाव आज भी हमारे मन पर संस्कार रूप में वैसे ही अंकित हैं । ‘१५ वर्षाें का समय बीत जाने पर भी परमेश्वर हम से सनातन के नियतकालिकों के लिए लेख लिखवा ले रहे हैं’, इसका मैं अनुभव कर रहा हूं ।
३. स्वयं के व्यवसाय के स्थान पर ईश्वरीय राज्य की भांति वातावरण बनाने के लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा प्रोत्साहन देना
पहले जब हमने परात्पर गुरुदेवजी से पूछा था, ‘‘ग्राहकों को हमारी दुकान में आने पर अच्छा लगता है । कुछ लोग तो ‘मैं ऐसे ही यहां आया था, यहां आकर २ मिनट बैठने पर अच्छा लगता है ।’’, ऐसा बताते हैं । ‘उन्हें ऐसा लगे’, ऐसी कोई भी कृति मुझसे नहीं होती; परंतु तब भी उन्हें ऐसा लगने का क्या कारण है ?’’ इस प्रश्न के उत्तर में गुरुदेवजी कहने लगे, ‘‘उचित है । प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के स्थान पर ही ईश्वरीय राज्य लाना है ।’’
उस दिन से हमारा व्यवसाय के प्रति विचार ही बदल गया । तब लगने लगा ‘यह व्यवसाय तो गुरुदेवजी ने लक्ष्यपूर्ति के लिए उपलब्ध कराया हुआ माध्यम है ।’ तब से व्यवसाय के प्रति आसक्ति भी दूर हो गई । पहले व्यवसाय में उतार-चढाव होने पर तनाव होता था; परंतु अब कुछ भी नहीं लगता । अब व्यवसाय में उतार-चढाव थमकर वह एक समानांतर स्तर तक आया है । ‘इससे गुरुदेवजी ने केवल कथन किया’, ऐसा नहीं, अपितु वह उनका संकल्प था और उससे ‘अब सब कुछ परमेश्वर ही करवा ले रहे हैं’, यह भाव उत्पन्न हुआ ।
केवल व्यावसायिकता, शीर्ष तक पहुंचने की स्पर्धा, आर्थिक घोटाले, एक-दूसरे पर हावी होनेवाली सामाजिक संस्थाएं और नियतकालिक आदि किस प्रकार के कार्यकर्ता तैयार करते हैं, इस पर उन्हें विचार करना चाहिए । सृजनात्मक लक्ष्य लेकर कार्यरत ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों में सेवा करने से आज हम व्यवसाय करते समय भी सामाजिक भान रखकर आचरण कर पा रहे हैं ।
४. साधना के संस्कारों के कारण आपातकाल में भी स्थिर रहना संभव होना
आजकल कोरोना की पृष्ठभूमि पर संपूर्ण विश्व में यातायात बंदी है । नौकरियों, उद्योगों, कृषि, छोटे व्यवसायों आदि सभी स्तरों पर मंदी की छाया है । कुछ नौकरीपेशा लोग, व्यापारी, किसान इत्यादि निराशा से ग्रसित होकर आत्महत्या का पर्याय चुन रहे हैं । इस आपातकाल में गुरुदेवजी द्वारा दिए गए संस्कारों के आधार पर हम बिना डगमगाए २ महिनों तक अपना व्यवसाय बंद रख पाएं । शासन द्वारा व्यवसाय पुनः आरंभ करने की अनुमति दिए जाने के उपरांत हमने सभी सरकारी नियमों का पालन कर व्यवसाय पुनः चालू किया । केवल ८ दिनों में हमारा व्यवसाय पहले समान होने लगा ।
५. संगणकीय प्रणाली के माध्यम से सत्संग लेकर परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा ‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर’ तत्त्व का भान करवाना
कोरोना काल में सनातन ने ऑनलाइन सत्संग, अभ्यासवर्ग, बालसंस्कारवर्ग, परिचर्चाएं और राष्ट्र-धर्म के प्रति उद्बोधक कार्यक्रमों की निरंतर शृंखला आरंभ की । उनका लाभ उठाकर सहस्रों नागरिक इस आपातकाल का सामना कर रहे हैं । इन ऑनलाइन कार्यक्रमों के माध्यम से गुरुदेवजी ने ‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर’ तत्त्व का भान कराया । वे हमें इस तत्त्व का प्रत्यक्ष अनुभव करा रहे हैं । आज कोई किसी के संपर्क में नहीं है; परंतु इस सत्संग के माध्यम से सभी लोग एक-दूसरे से जुडे हुए हैं । ऑनलाइन कार्यक्रमों के माध्यम से वे दूर-दूर के साधकों के मन के विचारों को वें एक-दूसरे से जोड रहे हैं ।
६. ‘केवल परमेश्वरीय तत्त्व ही शाश्वत है’, इसकी प्रतीति होना
इस सभी विचारप्रक्रिया से गुरुदेवजी ने एक बात प्रभावशाली पद्धति से सिखाई, वह है ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’, ‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर’; ये केवल वाक्य नहीं हैं, अपितु वें परमेश्वरीय तत्त्व हैं । जो उसके अनुसार प्रयास करेगा, उसे निश्चित रूप से परमेश्वरीय तत्त्व की अनुभूति होगी । यह हम प्रतिक्षण अनुभव कर रहे हैं ।
‘ये उद्देश्य शीघ्रातिशीघ्र सफल हों’, यही जगद्गुरु भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना और इन विचारों को प्रकट करवा लेने के लिए कृतज्ञता !’
– श्री. नितिन एवं श्रीमती नम्रता कुलकर्णी, मिरज, जनपद सांगली.(३०.९.२०२०)
सनातन संस्था एवं ‘सनातन प्रभात’ की विशेषताएंसनातन संस्था के अथवा उनके नियतकालिकों के उद्देश्यों के विषय में आलोचना करनेवाले और शंकाएं निर्माण करनेवालों को निम्न बातों पर विचार करना चाहिए । ऐसे उद्देश्य लेकर कितनी संस्थाएं और नियतकालिक कार्यरत हैं ? आज न जाने कितने नियतकालिक आरंभ हुए और कालांतर में बंद हुए; परंतु शाश्वत लक्ष्य को सामने रखकर उस दिशा में अग्रसर ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों का मार्गक्रमण उनके उच्च कोटि के उद्देश्यों की दिशा में ऐरावत की भांति हो रहा है और इसके आगे भी होता रहेगा, इसमें कोई संदेह नहीं । |