परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

जनता को साधना सिखाना ही आवश्यक !

     ‘निर्गुण ईश्वरीय तत्त्व से एकरूप होने पर ही वास्तविक शांति अनुभव होती है । तब भी नेता जनता को साधना सिखाए बिना, ऊपरी मानसिकता के उपाय करते हैं, उदा. जनता की समस्याएं दूर करने के लिए ऊपरी प्रयत्न करना, मानसिक चिकित्सालय स्थापित करना इत्यादि ।’

आगामी हिन्दू राष्ट्र का महत्त्व !

     ‘हमारी पीढी ने वर्ष १९७० तक सात्त्विकता अनुभव की; परंतु अगली पीढियों ने वर्ष २०१८ तक अल्प मात्रा में उसे अनुभव किया और वर्ष २०२३ तक वे उसे अनुभव नहीं करेंगी । इससे आगे की पीढियां हिन्दू राष्ट्र में सात्त्विकता पुनः अनुभव करेंगी !’

हिन्दू राष्ट्र की शिक्षा पद्धति ऐसी होगी !

     ‘हमारी पीढी ने वर्ष १९७० तक हिन्दू ईश्वरीय राष्ट्र की शिक्षा पद्धति कैसी होगी ?’, ऐसा प्रश्न कुछ लोग पूछते हैं । उसका उत्तर है, ’नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में जिस प्रकार १४ विद्या और ६४ कलाएं सिखाई जाती थीं, उस प्रकार की शिक्षा दी जाएगी; परंतु साथ ही इन माध्यमों से ईश्वरप्राप्ति कैसे करें ?’, यह भी सिखाया जाएगा ।’