दशहरा कैसे मनाएं?

१. सीमोल्लंघन : अपराह्नकाल (तीसरे प्रहर, दोपहर) में गांव की सीमा के बाहर ईशान्य दिशा की ओर सीमोल्लंघन हेतु जाते हैं । जहां शमी वृक्ष अथवा कचनार का वृक्ष होता है, वहां रुक जाते हैं ।

२. शमीपूजन :

शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका ।
धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी ।।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया ।
तत्र निर्विघ्नकर्त्री त्वं भव श्रीरामपूजिते ।।

     इन श्लोकों का उच्चारण कर शमी की प्रार्थना करते हैं । शमी पापों का नाश करती है ।

३. कचनार का पूजन : इस समय निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करें –

अश्मन्तक महावृक्ष महादोषनिवारण ।
इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम् ॥

अर्थ : हे अश्मंतक (कचनार) महावृक्ष, तुम महादोषों का निवारण करते हो । मुझे मेरे मित्रों का दर्शन करवाओ और मेरे शत्रु का नाश करो ।

     तदुपरांत शमी या कचनार वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी एवं सुवर्ण अथवा तांबे की मुद्रा रखते हैं । फिर वृक्ष की परिक्रमा कर उसके मूल (जड) की थोडी मिट्टी एवं उसके पत्ते घर लाते हैं ।

४. कचनार के पत्तों को सोने के रूप में देना : शमी के नहीं; अपितु कचनार के पत्ते सोने के रूप में भगवान को अर्पण करते हैं एवं इष्टमित्रों को देते हैं । बुजुर्गों को सोना दें, ऐसा संकेत है ।

५. अपराजितापूजन : जहां शमी की पूजा होती है, उस स्थान की भूमि पर अष्टदल बनाकर अपराजिता की मूर्ति रखते हैं एवं उसकी पूजा कर आगे दिए गए मंत्र द्वारा प्रार्थना करते हैं ।

हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला ।
अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम ॥

अर्थ : गले में विचित्र हार धारण करनेवाली, जिसके कटि पर जगमगाती स्वर्णकरधनी (मेखला) है एवं भक्तों के कल्याण हेतु जो तत्पर है, ऐसी हे अपराजिता देवी मुझे विजयी करे । कुछ स्थानों पर अपराजिता की पूजा सीमोल्लंघन हेतु जाने से पूर्व भी की जाती हैं ।

६. शस्त्र व उपकरणों का पूजन : इस दिन राजा व सामंत-सरदार, अपने शस्त्रों-उपकरणों को स्वच्छ कर व पंक्ति में रखकर उनकी पूजा करते हैं ।

     उसी प्रकार किसान एवं कारीगर अपने उपकरणोें एवं शस्त्रों की पूजा करते हैं । लेखनी व पुस्तक, विद्यार्थियों के शस्त्र ही हैं, इसलिए विद्यार्थी उनका पूजन करते हैं । इस पूजन का उद्देश्य यही है कि उन विषय-वस्तुओं में ईश्वर का रूप देख पाए ।

(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’) 

नवरात्रि में देवी का नामजप करने का महत्त्व

     नवरात्रि में देवीतत्त्व नित्य की तुलना में १००० गुना कार्यरत रहता है । देवीतत्त्व का अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए नवरात्रि के काल में ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः’ नामजप अधिकाधिक करें ।

कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न आपातकालीन स्थिति में दशहरा कैसे मनाना चाहिए ?

प्रश्न : दशहरा कैसे मनाना चाहिए ?

उत्तर : घर में प्रतिवर्ष हम जिन उपलब्ध शस्त्रों का पूजन करते हैं, उनकी तथा जीविका के साधनों की पूजा करें । एक-दूसरे को अश्मंतक के पत्ते देना संभव न हो, तो ये पत्ते केवल देवता को अर्पण करें ।

दृष्टिकोण

     कर्मकांड की साधना के अनुसार आपातकाल के कारण किसी वर्ष कुलाचार के अनुसार कोई व्रत, उत्सव अथवा धार्मिक कृत्य पूरा करना संभव नहीं हुआ अथवा उस कर्म में कोई अभाव रहा, तो अगले वर्ष अथवा आनेवाले काल में जब संभव हो, तब यह व्रत, उत्सव अथवा धार्मिक कृत्य अधिक उत्साह के साथ करें ।

     कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर आपातकाल का आरंभ हो चुका है । द्रष्टा संत एवं भविष्यवेत्ताओं के बताए अनुसार आगामी २ – ३ वर्षाें तक यह आपातकाल चलता ही रहेगा । इस काल में सामान्य की भांति सभी धार्मिक कृत्य करना संभव होगा ही, ऐसा नहीं है । ऐसे समय में कर्मकांड के स्थान पर अधिकाधिक नामस्मरण करें । कोई भी धार्मिक कृत्य, उत्सव अथवा व्रत का उद्देश्य भगवान का स्मरण कर स्वयं में सात्त्विकता को बढाना होता है । इस हेतु काल के अनुसार साधना करने का प्रयास करना चाहिए । काल के अनुसार आवश्यक साधना के संदर्भ में सनातन के ग्रंथों में विस्तृत जानकारी दी गई है, साथ ही वह www.sanatan.org जालस्थल पर उपलब्ध है ।’

– श्री. चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था (५.१०.२०२०)