आषाढ शुक्ल पक्ष एकादशी
स्वास्थ्य बनाए रखने, साधना करने तथा वातावरण को सात्त्विक बनाए रखने हेतु धर्मशास्त्र में बताए नियमों का पालन सर्वथा उचित है । मानवजीवन से संबंधित इतना गहन अध्ययन केवल हिन्दू धर्म में ही किया गया है । यही इसकी महानता है ।
चातुर्मास को उपासना एवं साधना हेतु पुण्यकारक एवं फलदायी काल माना जाता है । आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक अथवा आषाढ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चार महीने के काल को चातुर्मास कहते हैं । यह एक पर्वकाल है ।
ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास का काल देवताओं के शयन का काल है । इसलिए चातुर्मास के आरंभ में जो एकादशी आती है, उसे शयनी अथवा देवशयनी एकादशी कहते हैं । तथा चातुर्मास के समापन पर जो एकादशी आती है, उसे देवोत्थानी अथवा प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं । परमार्थ के लिए पोषक बातों की विधियां और सांसारिक जीवन के लिए हानिकारक विषयों का निषेध, यह चातुर्मास की विशेषता है ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतोंका शास्त्र’