कोलकाता में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच समिति के सदस्यों पर आक्रमण !

  • बंगाल में विधानसभा चुनावों के पश्चात हुई हिंसा की जांच का प्रकरण !

  • सदस्यों का आरोप है, कि पुलिस ने उन्हें बचाने का प्रयास नहीं किया !

  • बंगाल में कानून का शासन ही शेष नहीं है, इसलिए वहां राष्ट्रपति शासन लागू करना ही एकमात्र विकल्प बचा है ; यह सरकार को अब ध्यान रखना चाहिए ।
  • समिति के सदस्यों को पुलिस नहीं बचा रही है, क्या इससे यह स्पष्टता से नहीं दिखता, कि बंगाल में गुंडागर्दी, तृणमूल सरकार द्वारा प्रायोजित है ?
  • क्या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्यों को भी गुंडों से न बचाने वाली पुलिस, कभी सामान्य नागरिकों को बचा पाएगी ? ऐसे पुलिसकर्मियों को सरकार ने तत्काल सेवा से निष्कासित करना चाहिए !
(प्रातिनिधिक छायाचित्र)

कोलकाता (बंगाल) – बंगाल में विधानसभा चुनाव परिणामों के पश्चात हुई हिंसा की जांच के लिए कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक समिति नियुक्त की है । इस समिति के सदस्य एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष आतिफ राशिद ने आरोप लगाया है कि कोलकाता में इस समिति के कुछ सदस्यों पर आक्रमण किया गया । ‘यदि हमारी यह स्थिति है, तो साधारण जनता की क्या दुर्दशा होती होगी इसकी कल्पना कर सकते हैं । पुलिस ने इस समय हमें बचाने का प्रयास नहीं किया’, ऐसा आरोप भी उन्होंने लगाया है । तथापि, पुलिस ने दावा किया कि, ‘यहां कुछ लोगों ने घोषणा बाजी की ; परंतु, हमने उन्हें भगाया ।’ भाजपा ने इस मार-पीट की निंदा की है, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया है कि, ‘उनकी पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता इस आक्रमण में सम्मिलित नहीं था ।’

आतिफ राशिद ने कहा कि, हिंसा प्रभावित जादवपुर क्षेत्र के दौरे में समिति के सदस्यों ने पाया कि ४० से अधिक घरों की तोड-फोड की गई थी । अब इन घरों में कोई नहीं रहता ।