दुर्लक्ष ‘द्वीप’ !

     अरबी समुद्र में केरल के समीप स्थित केंद्रशासित प्रदेश ‘लक्षद्वीप’ आजकल चर्चा का विषय बन गया है । यहां के नूतन प्रशासक प्रफुल्ल पटेल ने ४ अधिनियम जारी कर अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति के पास भेजे । परिणामस्वरूप ९८ प्रतिशत मुसलमानों की जनसंख्यावाले इस प्रदेश में लागू होनेवाले इन कानूनों का राजकीय स्तर पर विरोध आरंभ हो गया है । पटेल ने यहां गोवंशहत्या बंदी लागू की है । बहुसंख्यक हिन्दुओं के भारत में जहां हिन्दुओं के लिए पूज्य गोमाता की हत्या कर उनकी भावनाओं को प्रतिदिन पैरोंतले रौंदा जाता है, वहां बहुसंख्यक मुसलमानों के प्रदेश में गोवंशहत्या पर प्रतिबंध लगाने से विरोध तो होगा ही । इस पर स्पष्टीकरण देते हुए प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ‘‘लक्षद्वीप में कृषि व्यवसाय के लिए अनुकूल गाय, भैंस आदि की हत्या न हो, इस उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है ।’’ अन्य अधिनियमों में पंचायती चुनाव लडने के लिए ‘दो ही संतान होना’, इस नियम का उल्लंघन करनेवालों के साथ ही समाजद्रोही व्यक्तियों को १ वर्ष कारागृह में डालने का आदेश दिया गया । इसका भी स्थानीय मुसलमानों द्वारा प्रचंड विरोध किया जा रहा है । ७ वीं शताब्दी में लक्षद्वीप में ‘उबैदुल्लाह’ नामक व्यक्ति आया । उसने वहां के हिन्दुओं में इस्लाम का प्रचार करते हुए उनका धर्म-परिवर्तन किया । उबैदुल्लाह को यहां ‘संत’ माना जाता है । भारत की स्वतंत्रता के उपरांत लक्षद्वीप में अनेक सांसद एवं प्रशासक होकर गए; परंतु दिसंबर २०२० में गुजरात के भूतपूर्व गृहमंत्री और भाजपा नेता प्रफुल्ल पटेल की नियुक्ति के पश्चात जारी हुए अधिनियमों के कारण अनेक लोगों के पेट में दर्द होने लगा है ।

संघराज्यवाद का अपमान !

     पर्यटन को गति मिले इसलिए पटेल ने पडोसी राष्ट्र मालदीव के समान ही लक्षद्वीप में मद्य पर से प्रतिबंध हटा दिया है । उनका कहना है कि इससे पर्यटक भारी संख्या में लक्षद्वीप आएंगे । गत ७४ वर्षाें में लक्षद्वीप का विश्व से संबंध खंडित ही रहा है । ३६ छोटे द्वीपों के लक्षद्वीप में केवल एक छोटा विमानतल है । लगभग ४०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोच्चि शहर से विमान अथवा जहाज की यात्रा कर लक्षद्वीप पहुंचा जा सकता है । लक्षद्वीप की इस प्रकार उपेक्षा क्यों की गई, यह चर्चा एवं शोध का विषय बन सकता है । इसका कारण क्या है ? अब तक के प्रशासन का ढीला कारोबार अथवा बार-बार यहां की प्राकृतिक संपदा की रक्षा का कारण बताना या फिर अल्पसंख्यकों की चापलूसी ? यह देखना आवश्यक है । सच देखो तो, अब यदि कोई प्रशासक लक्षद्वीप की भौतिक प्रगति करने का प्रयत्न कर रहा है, तो वहां की सांस्कृतिक विचारधारा, जीवनशैली, श्रद्धाओं पर आक्रमण होने का शोरगुल होता है । कहते हैं, ‘विकास नहीं हुआ, तो चलेगा; परंतु जनता के धार्मिक हितों को अनदेखा करना अनुचित है !’ केवल विकास की दृष्टि से देखें तो पटेल द्वारा लिए गए निर्णयों में अनुचित कुछ भी नहीं दिखाई देता; परंतु निकट के केरल में सत्ताधारी और विरोधी राजकीय दल कांग्रेस ने पटेल के विरोध में विधानसभा में तो स्पष्ट रूप से प्रस्ताव ही पारित करवा लिया है । उनका कहना है कि पटेल हिन्दुत्व की राजनीति करने का विचार कर रहे हैं । उन्होंने लक्षद्वीप की मूल संस्कृति एवं वहां के रहन-सहन के विरोध में निर्णय लिया है । इस मंडली ने मांग की है कि ‘केंद्र, पटेल को वापस बुला ले ।’ यह तो लोकतंत्र और संघराज्यवाद का अपमान है ।

     स्वयं मुख्यमंत्री पिनराई विजयन् ने इन निर्णयों का विरोध किया है । ‘यह स्थानीय मुसलमानों की संस्कृति पर आक्रमण है’, ऐसा कहनेवाले विजयन् को हिन्दुओं के शबरीमला की परंपरा अबाधित रखने के लिए लाखों हिन्दुओं द्वारा किया गया आंदोलन स्वीकार नहीं था । ‘देवस्वम् बोर्ड में सरकारी अधिकारियों के स्थान पर भक्तों की नियुक्ति की जाए’, अनेक वर्षाें से हो रही हिन्दुओं की इस मांग को मुख्यमंत्री अनदेखा क्यों करते हैं ? केरल में ईसाई और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने ‘लव जिहाद’ के बढते प्रकरणों के विरोध में आवाज उठाई, तब भी शांत क्यों बैठते हैं ? यह घटना केरल के बहुसंख्यकों की संस्कृति की जडें तो नहीं उखाड देगी ?
कांग्रेस ने भी ‘विकास एवं हिन्दुओं की श्रद्धा’ का तालमेल कभी नहीं बिठाया है । विकास के नाम पर करोडों हिन्दुओं के लिए पूज्य रामसेतु को व्यर्थ की बात संबोधित कर एवं ‘राम नाम का व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं था’, ऐसा प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत कर रामसेतु तोडने का एजेंडा कांग्रेस ने वर्ष २००७ में चलाया था । इसी विकास के उद्देश्य से प्रयत्न करनेवाले पटेल को पदच्युत करने की भाषा धर्मनिरपेक्षतावादी कर रहे हैं । वास्तव में मद्य पर प्रतिबंध तो होना ही चाहिए, पर्यटन अन्य अनेक मार्गाें से भी बढाया जा सकता है; परंतु हिन्दूविरोधी राजनेता हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को सदैव ही कूडादान दिखाते हैं, जो कि संतापजनक है ।

     यहां एक और निधर्मीपन की बात है, ११ वर्ष पूर्व कांग्रेस ने लक्षद्वीप में म. गांधी की प्रतिमा स्थापित करने का प्रयत्न किया; परंतु मुसलमानों ने ‘प्रतिमा इस्लाम में हराम है’, यह कहकर उसका विरोध किया । प्रशासन ने ऐसा बताना टाल दिया कि ‘मुसलमानों के विरोध के कारण प्रतिमा स्थापित नहीं की गई ।’ इससे यह स्पष्ट होता है कि जिन मुसलमानों की चापलूसी के लिए सभी नियम ताक पर रखकर सत्ता चलाई जाती है, उनकी दृष्टि में सत्ताधारियों के सर्वेसर्वा म. गांधी क्या हैं । मुसलमानों के अनुनय (अनुरोध) केंद्रस्थान रखने से अनेक दशकों से विकास से दुर्लक्षित रहे लक्षद्वीप का भविष्य क्या होगा ?, यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा !