कोरोना विषाणु की दूसरी लहर ने भारत में उत्पात मचा रखा है । इस महामारी के कारण प्रतिदिन लगभग ३ सहस्र भारतीय अपने प्राण गंवा रहे हैं, तो प्रतिदिन ३ लाख से भी अधिक लोग कोरोना ‘पॉजिटिव’ (घनात्मक) हैं । ‘कोरोना एक्टिव केसेस’ (संक्रमण होने के प्रकरण) के वैश्विक आंकडों को देखा जाए, तो उनमें से १५ प्रतिशत रोगी भारतीय हैं । ऑक्सीजन का हो रहा अभाव, ‘रेमडेसिवीर’ इंजेक्शन उपलब्ध होने में आ रही कठिनाईयां, गंभीर रोगियों की संख्या बढने से अधूरे सिद्ध हो रहे भारतीय स्वास्थ्यतंत्र आदि के कारण सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ है ।
‘पैट’ और ‘ब्रैट’ की सहायता !
जहां इस देश का स्वास्थ्यतंत्र इस महामारी का सामना करते हुए जूझ रहा था, तब ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट खिलाडी पैट कमिन्स और पूर्व बॉलर ब्रैट ली ने इस कोविड विरोधी युद्ध के लिए भारत को सहायता दी है । उन्होंने इसके लिए क्रमशः ३७ लाख और ४३ लाख रुपए की आर्थिक सहायता की घोषणा की है । इस संदर्भ में ट्वीट करते हुए पैट कमिन्स ने कहा, ‘‘भारत में फैली हुई कोरोना महामारी से मैं व्यथित हूं । भारत के चिकित्सालयों में रोगियों को ऑक्सीजन की आपूर्ति करना संभव हो; इसके लिए मैं ५० सहस्र डॉलर्स (३७ लाख भारतीय रुपए) की सहायता कर रहा हूं । ‘आईपीएल’ के जिन खिलाडियों ने भारतीयों के स्नेह का अनुभव किया है, उनसे मैं यह आवाहन करता हूं कि वे भी आगे आकर भारत की सहायता करें ।’’ ब्रैट ली ने तो गौरव से भारत का उल्लेख ‘मेरा दूसरा घर’ किया है । ऐसा होते हुए भी भारतीय खिलाडी ‘आईपीएल’ खेलने में ही व्यस्त हैं । ऐसे में प्रश्न उठता है, क्या इस प्रतियोगिता ने करोडों रुपए कमानेवाले प्रत्येक दिग्गज खिलाडी को अंधा बना दिया है ? पिछले वर्ष भारतीय खिलाडियों ने कोरोना से लडने हेतु आर्थिक सहायता की थी; परंतु आज जहां उनसे सहायता की अपेक्षा है, तो वे केवल पैसे कमाने में ही व्यस्त हैं । कुछ दिन उपरांत इनमें से कुछ खिलाडी ‘विराट’ रूप में सहायता की घोषणा करेंगे भी; परंतु यह प्रश्न केवल सहायता करने तक ही सीमित नहीं है ।
सामाजिक भान का अभाव !
जहां अनेक परिवारों की ही मृत्यु हो रही है, नैतिकता के स्तर पर ऐसे भारत में आईपीएल का आयोजन किया जाना ही मूलतः कितना उचित है ? ऑक्सीजन के अभाव के कारण जिस प्रकार लोग मर रहे हैं, उस प्रकार आयोजक और सरकारी तंत्र में निहित जनता के प्रति अपना दायित्व, उसके दुख के प्रति संवेदनशीलता आदि बातों के अभाववश ही क्या हमारा सामाजिक भान कहीं खो गया है ?
आर्थिक गणित !
सामाजिक भान का अभाव ही इस प्रतियोगिता के आयोजन का एकमात्र कारण है, ऐसा नहीं है । इस प्रतियोगिता के माध्यम से होनेवाले आर्थिक लेन-देन का और यथासंभव सभी मार्गों से पैसा कमाने का यह स्वर्णिम अवसर किसी को गंवाना नहीं है । ‘मैच फिक्सिंग’ के अनेक आरोप लगने के कारण और उनमें से कुछ आरोप प्रमाणित होने से १४ वर्ष पुरानी आईपीएल प्रतियोगिता अनेक बार कलंकित हुई है । वर्ष २०१७ में ‘द इन्साइड एज’ नामक एक वेबसीरिज प्रसारित हुई थी । उसमें आईपीएल जैसी ‘कैश रिच’ प्रतियोगिताओं में किस प्रकार खिलाडियों को अवैध रूप से पैसे देकर खराब खेलने के लिए प्रेरित किया जाता है, केवल इतना ही नहीं, अपितु इसमें संघ के मालिक ही अमुक पद्धति से खेलने के लिए खिलाडियों को प्रेरित करते हैं, इसका चित्रण किया गया है । इस वेबसीरिज से ‘किसी संघ की पराजय हुई, तब भी आर्थिक जगत में वह संघ विजयी ही होता है’, यह स्पष्ट संदेश दिया गया । इस सीरिज के निर्देशक ने तो इसमें ‘बीसीसीआई’ के अध्यक्ष, साथ ही केंद्रीय मंत्रियों की भी सांठगांठ होने का, अपितु उन्हें ही इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार होने का चित्र दिखाया । वास्तव में ऐसा नहीं होगा, हम यह आशा करेंगे; परंतु कुछ मैचेस ‘फिक्स्ड’ होते हैं, ऐसा कहने का अवसर रहता है । एक बार हम ऐसा समझ लेते हैं कि आईपीएल के सभी मैचेस पारदर्शी पद्धति से खेले जाते होंगे; परंतु उनसे मिलनेवाला आर्थिक लाभ सैकडों नहीं, अपितु सहस्रों करोड रुपए का होता है, इसे हम कैसे भूल सकते हैं ?
किसी भी राजनीतिक दल ने आईपीएल के आयोजन का विरोध क्यों नहीं किया ? बंगाल, केरल आदि राज्यों में चल रहे चुनावों के उपलक्ष्य में सर्वदलीय नेताओं द्वारा कोरोना को नियंत्रण में लाने हेतु आवश्यक सभी नियमों को ताख पर रखकर जनसभाएं ली गईं । उसके कारण उनके द्वारा आईपीएल के आयोजन पर प्रतिबंध लगाने की अपेक्षा व्यर्थ है, ऐसा कहा जा सकता है । कोई महानुभाव ‘सैकडों करोड रुपए का व्यय कर चुनाव आयोजित किए जाते हैं; इसलिए चुनाव की प्रक्रिया को बीच में ही कैसे रोका जा सकता है ?’, यह प्रश्न उठाकर अपने ज्ञान का प्रदर्शन करेगा । वास्तव में यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति होती, तो जनता के प्राणों का विचार कर ‘ऑनलाइन प्रचारसभा’ लेने का विकल्प भी चुना जा सकता था; परंतु वह भी नहीं हो सका । राजनेताओं को समाज के सामने आदर्श रखना अपेक्षित होता है; परंतु चुनावों के संबंध में इसके बिल्कुल विपरीत स्थिति दिखाई देती है । प्रभु श्रीराम के देश की यह स्थिति संपूर्ण व्यवस्था को ही अंतर्मुख बनानेवाली है । राममंदिर का निर्माण केवल स्थूल से ही करना आवश्यक नहीं है, अपितु इस मंदिर का निर्माण प्रत्येक भारतीय के मन-मन में होना आवश्यक है । तब और तभी हम प्रत्येक व्यक्ति में सामाजिक भान, दायित्व के प्रति गंभीरता, व्यापकता आदि दैवी गुणों का संचार हो सकेगा, इसे ध्यान में लें !