परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

हास्यास्पद साम्यवाद !

‘जहां पृथ्वी के सभी मनुष्य ही नहीं, अपितु वृक्ष, पर्वत, नदियां इत्यादि भी एक समान दिखाई नहीं देते, वहां ‘साम्यवाद’ यह शब्द ही हास्यास्पद नहीं है क्या ?’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले