परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘कहां पृथ्वी पर राज्य करने का ध्येय रखनेवाले अन्य पंथ, तो कहां ‘प्रत्येक को ईश्‍वरप्राप्ति होनी चाहिए’, यह ध्येय रखनेवाला हिन्दू धर्म !’

‘मस्जिदें और चर्चों में साधना सिखाई और करवाई जाती है । हिन्दुआें के एक भी देवालय में ऐसा न करने के कारण हिन्दुआें की स्थिति दयनीय हो गई है ।’

‘अडचन के समय सहायता होने हेतु हम अधिकोष (बैंक) में पैसे रखते हैं । उसी प्रकार संकट के समय में सहायता मिलने के लिए साधना का संग्रह होना आवश्यक है । इससे संकट के समय हमें सहायता मिलती है ।’

‘भारत के हिन्दुआें में हिन्दू धर्म को छोडकर भाषा, त्योहार, उत्सव, कपडे आदि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग हैं । इसलिए हिन्दुआें को केवल धर्म ही एकत्रित ला सकता है । हिन्दुआें को हिन्दू धर्म का महत्त्व ध्यान में लेकर सबको एकत्रित लाने का प्रयत्न करना अत्यावश्यक है।’

‘अनेक युगों से संस्कृत व्याकरण वही है। उसमें किसी ने कोई परिवर्तन नहीं किया है । इसका कारण है, वह पहले से परिपूर्ण है । इसके विपरीत, संसार की सभी भाषाआें का व्याकरण परिवर्तित होता रहता है ।’

अध्यात्म का अध्ययन और साधना करने पर ही ज्ञात होता है कि विज्ञान आंगनवाडी की शिक्षा के समान है ।’

‘मंदिर के कर्मचारी दर्शनार्थियों को दर्शन करवाने के अतिरिक्त और क्या करते हैं ? उन्होंने दर्शनार्थियों को धर्मशिक्षा दी होती, साधना सिखाई होती, तो हिन्दुआें और भारत की ऐसी दयनीय स्थिति नहीं हुई होती ।’

‘अन्य नियतकालिकों में बच्चों के जन्मदिन के उपलक्ष्य में छायाचित्र छापने हेतु विज्ञापन के पैसे देते हैं, जबकि ‘सनातन प्रभात’ में गुणवान बच्चों के छायाचित्रों के साथ उनकी आध्यात्मिक गुणविशेषताएं भी छापते हैं ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले