सनातन-निर्मित सर्वांगस्पर्शी अनमोल आध्यामत्मिक ग्रंथसंपदा सभी भारतीय भाषाओं में प्रकाशित हो; इसके लिए ग्रंथनिर्मिति की व्यापक सेवा में सम्मिालित हों !

 

     परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी जिन ग्रंथों का संकलन कर रहे हैं, उन ग्रंथों में से नवंबर २०२० तक केवल ३२९ से अधिक ग्रंथ-लघुग्रंथों की निर्मिति हो पाई है तथा अन्‍य लगभग ६ सहस्र से भी अधिक आध्‍यात्मिक ग्रंंथों की निर्मिति की प्रक्रिया तीव्रगति से हो, इसके लिए अनेक लोगों की सहायता की आवश्‍यकता है । अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार लेखन का संकलन, संरचना और विविध भाषाआें में भाषांतर करना इत्‍यादि ग्रंथनिर्मिति के कार्य में आप योगदान दे सकते हैं ।

१. अध्‍यात्‍म में निहित विविध विषयों में रुचि रखनेवाले जिज्ञासुओं को साधना की
ओर मोडने के लिए उपयुक्‍त विविध विषयों पर आधारित सहस्रों ग्रंथों के संकलन का कार्य शेष

१ अ. आगामी ग्रंथों के कुछ विषय : अभी संकलन करना शेष ग्रंथों के सामान्‍यतः विषय और संभावित ग्रंथसंख्‍या आगे दी गई है । लेखन की संगणकीय धारिकाएं तैयार हैं ।

२. ग्रंथनिर्मिति के कार्य में सहभागी होने के इच्‍छुक लोगों के लिए उपलब्‍ध सेवाएं

२ अ. लेखन का संगणकीय टंकण करना, पडताल करना और संकलन करना : संगणक पर टंकण करना और टंकण करने पर ‘सभी लेखन का टंकण ठीक से हुआ है न ?’, मूल लेखन के आधार पर इसकी पडताल कर उसका संकलन करना

२ अ १. आवश्‍यक कौशल : संगणक पर टंकण का ज्ञान होना, साथ ही हिन्‍दी अंग्रेजी अथवा मराठी भाषा का व्‍याकरण और शब्‍दरचना का ज्ञान होना

२ आ. लेखन में निहित संस्‍कृत वचन, श्‍लोक आदि की पडताल करना : ग्रंथों में निहित लेखन में आनेवाले संस्‍कृत श्‍लोक, वचन और सुभाषितों की पडताल करना; उनका मूल संदर्भ लिखना; उनका अर्थ लिखना आदि सेवाएं इसमें अंतर्भूत हैं । इसके लिए साधक को संस्‍कृत भाषा का थोडा-बहुत ज्ञान होना आवश्‍यक है । संस्‍कृत भाषा का थोडा-बहुत ज्ञान न हो, तो उतना लेखन छोडकर अन्‍य लेखन अंतिम करना

२ इ. मराठी, साथ ही अन्‍य भाषाओं के ग्रंथों का संकलन करना

२ इ १. विविध सेवाएं

अ. जिन विषयों के ग्रंथ करने हैं, उस विषय के विविध सूत्रों के शीर्षक के आधार पर विषय की अनुक्रमणिका तैयार करना

आ. अनुक्रमणिका के अनुसार लेखन लगाकर उस लेखन का अंतिम संकलन करना

इ. सर्वसामान्‍यतः १०० पृष्‍ठों का (५०० KB का) एक ग्रंथ बनता है । लेखन से ‘ग्रंथ के कितने पृष्‍ठ होते हैं’, इसे देखना और पृष्‍ठसंख्‍या का अनुमान लगाकर ग्रंथ का २, ३,… जैसे भागों में विभाजन करना

ई. प्रत्‍येक भाग की अनुक्रमणिका एवं भूमिका तैयार करना

उ. प्रत्‍येक भाग के मुखपृष्‍ठ और अंतिम आवरण पृष्‍ठ पर किया जानेवाला लेखन तैयार करना

२ ई. विविध भाषाओं के ग्रंथ और लघुग्रंथों की संकणकीय संरचना करना, साथ ही ग्रंथों में छापने हेतु सारणियां (टेबल) तैयार करना : इसके लिए संगणकीय प्रणाली ‘इन-डिजाइन’ का ज्ञान होना आवश्‍यक है ।

२ उ. मराठी, हिन्‍दी अथवा अंग्रेजी भाषाओं के ग्रंथों का अन्‍य देशी-विदेशी भाषाओं में भाषांतर करना : यह सेवा करने के लिए ‘आप जिस भाषा में भाषांतरण करने के इच्‍छुक हैं’, व्‍याकरण की दृष्‍टि से उस भाषा का यथोचित ज्ञात होना आवश्‍यक है । भाषा का ज्ञान हो; परंतु व्‍याकरण की दृष्‍टि से विशेष ज्ञान न हो, तो उस संदर्भ में प्रशिक्षण लेना चाहिए । संगणकीय ज्ञान (मराठी के लेखन का अंग्रेजी भाषा में भाषांतर करने की सेवा के लिए MsWord और PDF प्रणाली का ज्ञान होना चाहिए ।)

३. ग्रंथनिर्मिति के कार्य में संपर्क करें !

     उक्‍त सभी सेवाओं के लिए संगणक का सामान्‍य स्‍तर का ज्ञान होना, साथ ही संगणकीय टंकण करना आवश्‍यक है । उक्‍त उल्लेखित सेवाएं सनातन के आश्रम में रहकर अथवा घर बैठे भी की जा सकती हैं । घर बैठे सेवा करने के इच्‍छुक कुछ दिन आश्रम में आकर सेवा की बारीकियों को समझ लें, तो घर बैठे सेवा करना सुलभ होगा ।

     इन सेवाओं को करने के लिए इच्‍छुक व्‍यक्‍ति जिलासेवकों के माध्‍यम से निम्‍नांकित सारणी के अनुसार अपनी जानकारी श्रीमती भाग्‍यश्री सावंत के नाम से [email protected] संगणकीय पते पर अथवा निम्‍नांकित डाक के पते पर भेजें ।

     डाक के लिए पता : श्रीमती भाग्‍यश्री सावंत, द्वारा ‘सनातन आश्रम’, रामनाथी, फोंडा, गोवा. पिन – ४०३ ४०१

     ग्रंथनिर्मिति की सेवा की भांति ही कलाकृतियां, ध्‍वनिचित्रीकरण, साथ ही नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ आदि के लिए भी संकलन की सेवा उपलब्‍ध है । साधक अपनी रुचि के अनुसार सेवा का चयन कर सकते हैं ।