जम्‍मू-कश्‍मीर के इतिहास के कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु

१. ‘शंकराचार्य पहाडी’ !

     आद्य शंकराचार्यजी ने ईसापूर्व ५ वीं शताब्‍दी में केरल से लेकर कश्‍मीर तक भ्रमण किया, तब वे श्रीनगर भी गए । वहां के राजा गोपादित्‍य द्वारा पहाडी पर निर्मित शिवमंदिर के दर्शन के उद्देश्‍य से इस पहाडी पर चढे थे, तब से इस पहाडी को ‘शंकराचार्य पहाडी’ कहा जाता है ।

२. कश्‍मीर का इस्‍लामीकरण करनेवाले इस्‍लामी आक्रमण

अ. ‘वर्ष १०१५ एवं वर्ष १०२१ में गजनी के मोहम्‍मद द्वारा कश्‍मीर हडपने के लिए किए गए प्रयास व्‍यर्थ हुए ।

आ. वर्ष १२२३ में रिमचान नामक एक तिब्‍बती ने तत्‍कालीन राजा रामचंद्र का वध करने के लिए षड्‍यंत्र रचकर कश्‍मीर का सिंहासन हस्‍तगत किया । उसने एक सूफी संत के प्रभाव में आकर इस्‍लाम पंथ अपनाया और स्‍वयं ही ‘सदर-उद़्-दीन रिमचान शाह’ की उपाधि धारण की ।

इ. तत्‍पश्‍चात शाहमिरी सुलतान अला-उद़्-दीन सुलतान सिकंदर (१३८९ से १४१३) के कार्यकाल में अनेक देवालय और मूर्तियां नष्‍ट की गईं ।

ई. वर्ष १५८७ में कश्‍मीर का मुगल सम्राट अकबर के साम्राज्‍य में विलय हुआ । वर्ष १७५२ में देहली लूटकर अहमदशाह अब्‍दाली जब अफगानिस्‍तान लौट रहा था, तब कुछ कश्‍मीरी लोगों ने स्‍थानीय सुल्‍तान द्वारा उनके हो रहे उत्‍पीडन से उन्‍हें बचाने का अनुरोध किया । तब अब्‍दाली ने तुरंत ही कश्‍मीर को अपने नियंत्रण में ले लिया । उसके कारण कश्‍मीर भले ही आग से बचा; परंतु वह चूल्‍हे से निकलकर भट्‍टी में जा गिरा । कश्‍मीर को अफगानिस्‍तान की इस तानाशाही का दंश वर्ष १८१९ तक झेलना पडा ।

३. १४वीं शताब्‍दी से पूर्व १ सहस्र वर्ष से भी अधिक
समयतक कश्‍मीर था शिक्षा का सबसे बडा केंद्र !

     मुसलमानों के आक्रमणों से पहले १ सहस्र वर्ष से भी अधिक कालखंड तक कश्‍मीर शिक्षा का बडा केंद्र था । अभिनवगुप्‍त एवं वसुगुप्‍त जैसे तत्त्वज्ञ तथा पाणिनी एवं पतंजली जैसे विद्वान ऋषि कश्‍मीर में थे । अफगानिस्‍तान और मध्‍य एशिया से छात्र यहां गणित, खगोलशास्‍त्र और तत्त्वज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने हेतु आते थे ।’

(संदर्भ : ‘सद्धर्म त्रैमासिक’, अक्‍टूबर २०१४)