गैस अथवा बिजली का उपयोग कर पकाए गए अन्न की अपेक्षा मिट्टी के चूल्हे पर पकाए अन्न से बडी मात्रा में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना !

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय द्वारा यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस) उपकरण द्वारा किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

श्री. अपूर्व ढगे

     कुछ वर्ष पहले सर्वप्रथम गोबर से भूमि लीपकर, चूल्हे का पूजन कर अग्नि में चावल की आहुति देने के उपरांत ही अन्न पकाने की प्रक्रिया आरंभ की जाती थी । उसके कारण इस अन्न की ओर देवताआें के स्पंदन आकर्षित होते थे । ऐसा अन्न ग्रहण करनेवाले जीवों को उसमें समाहित शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों पर भी लाभ मिलता था । आज ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ घरों को छोडकर सर्वत्र चूल्हे पर बनाई जानेवाली रसोई समाप्त हो गई है । अब लकडी का स्थान केरोसिन, गैस अथवा बिजली (उदा. इंडक्शन) ने ले ली है । बिजली की अंगीठी पर (इंडक्शन पर) (टिप्पणी) पकाए गए चावल, गैस की अंगीठी और मिट्टी के चूल्हे पर पकाए गए चावलों से प्रक्षेपित स्पंदनों का अध्ययन करने हेतु ४.९.२०२० को रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस) उपकरण के द्वारा परीक्षण किया गया । इसका विवेचन, निष्कर्ष और अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण आगे दिया गया है ।

     टिप्पणी – इंडक्शन आधुनिक पद्धति की अंगीठी है । आजकल कुछ गृहिणियां बिजली से चलनेवाली इस अंगीठी पर ही पूरी रसोई बनाती हैं ।

१. परीक्षण से प्राप्त निरीक्षणों का विवेचन

१ अ. नकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में प्राप्त निरीक्षणों का विवेचन : बिजली की अंगीठी पर पकाए गए चावल में सर्वाधिक नकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी । गैस की अंगीठी पर पकाए गए चावल में उससे अल्प नकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी, तो मिट्टी के चूल्हे पर पकाए गए चावल में तनिक भी नकारात्मक ऊर्जा दिखाई नहीं दी ।

१ आ. सकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में निरीक्षणों का विवेचन : बिजली की अंगीठी पर पकाए गए चावल में अल्प मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी और मिट्टी के चूल्हे पर पकाए गए चावल में बडी मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी ।

     आगे दी गई सारणी से उक्त विवेचन ध्यान में आता है –

टिप्पणी १ – बिजली की अंगीठी पर पकाए गए चावल में सकारात्मक ऊर्जा दिखाई नहीं दी ।

टिप्पणी २ – मिट्टी के चूल्हे पर पकाए गए चावल में इन्फ्रारेड एवं अल्ट्रावायोलेट नकारात्मक ऊर्जा दिखाई नहीं दीं ।

२. निष्कर्ष

     गैस एवं बिजली की अंगीठी पर रसोई बनाने की पद्धति असात्त्विक होने से पकाए गए अन्न पर उसका बहुत नकारात्मक परिणाम होता है, जबकि मिट्टी के चूल्हे पर रसोई बनाने की पद्धति सात्त्विक होने से पकाए गए अन्न पर उसका सकारात्मक परिणाम होता है, इस वैज्ञानिक परीक्षण से यह प्रमाणित हुआ ।

     सूत्र ३ में उक्त सभी सूत्रों के संदर्भ में अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण दिया गया है ।

३. परीक्षण में प्राप्त निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण

३ अ. गैस एवं बिजली का उपयोग कर रसोई बनाने की पद्धति असात्त्विक होना : आजकल के विज्ञानयुग में पाश्‍चात्य लोगों का अंधानुकरण करने से भारतीय लोगों के आचार-विचार भी विकृत हो गए हैं । अब मिट्टी के चूल्हे पर रसोई बनाना कालबाह्य (पुरानी बात) हो गया है । आजकल लकडी का स्थान केरोसीन, गैस अथवा बिजली जैसे ईंधनों ने लिया है । इन आधुनिक ईंधनों की सहायता से होनेवाली प्रक्रिया तमोगुणी वायुमंडल की उत्पत्ति करती है; इसलिए इस वायुमंडल की ओर अनिष्ट शक्तियां आकर्षित होती हैं । उसके कारण अन्न दूषित होने से उसका सेवन करनेवाले के शरीर पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण होने का अनुपात बढ जाता है । परीक्षण में गैस एवं बिजली की (इंडक्शन) अंगीठी पर पकाए गए चावल के संदर्भ में इसी की प्रतीति हुई । गैस और बिजली की अंगीठियों पर पकाए गए चावल में सकारात्मक स्पंदन नहीं, अपितु बडी मात्रा में नकारात्मक स्पंदन दिखाई दिए । असात्त्विक पद्धति से बनाई गई रसोई स्वादिष्ट तो लगती ही नहीं, अपितु स्वास्थ्य की दृष्टि से भी वह बहुत हानिकारक है ।

३ आ. मिट्टी के चूल्हे पर रसोई बनाने की पद्धति सात्त्विक होना : हिन्दू धर्म में प्रत्येक बात का व्यापक विचार कर मनुष्य के कल्याण हेतु आचारधर्म बताए गए हैं । इनमें से एक महत्त्वपूर्ण आचार है रसोई से संबंधित आचार ! हममें से कुछ लोगों ने कुछ वर्ष पूर्व अपने गांव में दादी द्वारा मिट्टी के चूल्हे पर बनाई गई रसोई का स्वाद अवश्य ही चखा होगा । दादी द्वारा बनाई गई रसोई बहुत ही स्वादिष्ट एवं मन को प्रसन्न करनेवाली होती थी । इसका कारण यह कि उस समय के लोगों के आचार एवं विचार सात्त्विक थे । वे धर्मशास्त्र द्वारा निर्देशित आचारों का यथायोग्य पालन करते थे । उस समय जिस प्रकार आहार के घटक सात्त्विक थे, उसी प्रकार उनसे बनाई जानेवाली रसोई की पद्धति भी सात्त्विक थी । चूल्हे पर रसोई बनाने के लिए ईंधन के रूप में लकडी का उपयोग किया जाता है । लकडी में तेजतत्त्व होता है । लकडी में समाहित अग्नि को प्रदीप्त अग्नि कहते हैं । यह अग्नि प्राकृतिक होने से उससे प्रक्षेपित सूक्ष्म तेजदायक तरंग इन सूक्ष्म स्तर के रज-तमात्मक कणों का विघटन कर सकते हैं । चूल्हे पर रसोई बनाते समय अन्न पर अग्नि का संस्कार होने से अन्न सात्त्विक बनता है । मिट्टी के चूल्हे पर पकाए गए चावल के संदर्भ में इसी की प्रतीति हुई । मिट्टी के चूल्हे पर पकाए गए चावल में तनिक भी नकारात्मक स्पंदन नहीं थे, अपितु बडी मात्रा में सकारात्मक स्पंदन दिखाई दिए । इससे प्रमाणित होता है कि मिट्टी के चूल्हे पर रसोई बनाने की पद्धति सात्त्विक है । सात्त्विक पद्धति से बनाई गई रसोई स्वादिष्ट तो लगती ही है, साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी वह बहुत लाभदायक होती है ।

– श्री. अपूर्व ढगे (हॉटेल मैनेजमेंट स्नातक), महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा (१६.९.२०२०)  

इ-मेल : [email protected]