जोंक के सामने एलोपैथिक, होम्योपैथिक और आयुर्वेदीय औषधि की गोलियां रखने पर उसके द्वारा दिया प्रतिसाद और उसपर हुआ परिणाम

प्राणियों के संदर्भ में नवीन आध्यात्मिक अनुसंधान करनेवाला  महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय द्वारा यूनिवर्सल ऑरा
स्कैनर (यूएएस) उपकरण के माध्यम से किया वैज्ञानिक परीक्षण

यूएएस उपकरण द्वारा परीक्षण करते श्री. आशिष सावंत

     आयुर्वेद के देवता श्री धन्वन्तरी के चित्र में उनके दाहिने हाथ में जोंक दिखाई देती है । सामान्यत:आयुर्वेद में जोंक का उपयोग  शरीर में रक्त संबंधी व्याधि के निवारण हेतु किया जाता है । ३०.७.२०२० को गोवा में सनातन आश्रम के मुख्य प्रवेशद्वार के निकट एक जोंक दिखाई दी । वह सात्त्विक वस्तुआें की ओर आकृष्ट हो रही थी । जोंक के सामने एलोपैथिक, होम्योपैथिक और आयुर्वेदीय औषधि की गोलियां रखने पर उसके द्वारा दिया गया प्रतिसाद और उसपर होनेवाले परिणाम का अध्ययन करने के लिए १.८.२०२० को रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस) उपकरण के माध्यम से एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन, निष्कर्ष और अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण आगे दिया है ।

 

आयुर्वेदीय औषधि के गोली को स्पर्श करती हुई जोंक तथा उसके बाजू में होम्योपैथिक एवं एलोपैथिक गोलियां
डॉ. अमित भोसले

१. परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन

१ अ. नकारात्मक ऊर्जा संबंधी निरीक्षणों का विवेचन : एलोपैथिक गोली में इन्फ्रारेड और अल्ट्रावायोलेट दोनों ही प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा थी । होम्योपैथिक और आयुर्वेदीय गोलियों में नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।

१ आ. सकारात्मक ऊर्जा संबंधी निरीक्षणों का विवेचन : एलोपैथिक गोली में सकारामक ऊर्जा नहीं पाई गई । होम्योपैथिक गोली में कुछ मात्रा में तथा आयुर्वेदीय गोली में बडी मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा पाई गई ।

     उपर्युक्त विवेचन आगे दी गई सारणी से ध्यान में आएगा ।

१ इ. जोंक द्वारा औषधि की गोलियों को दिया प्रतिक्रिया और उसपर हुआ परिणाम : प्रयोग में एक कांच की पेटी में सर्दी ठीक करने के लिए दी जानेवाली एलोपैथिक, होम्योपैथिक और आयुर्वेदीय औषधि की गोलियां एक-दूसरे से कुछ दूर रखी गई । जोंक को पेटी में छोडने पर वह प्रथम आयुर्वेदीय औषधि की गोली के निकट गई और उसे स्पर्श किया । उसके पश्‍चात वह आयुर्वेदीय और होम्योपैथिक गोलियों के बीच से गई । उसके उपरांत वह एलोपैथिक औषधि की गोली के निकट गई और उसे स्पर्श किया । कुल २० मिनट के प्रयोग में यह पाया गया कि जोंक अधिकांश समय आयुर्वेदीय गोली के पास रुक रही थी ।

     जोंक में नकारात्मक ऊर्जा नहीं थी, सकारात्मक ऊर्जा थी । उसका प्रभामंडल २.८० मीटर था । प्रयोग के पश्‍चात उसकी सकारात्मक ऊर्जा में ०.३० मीटर की वृद्धि होकर वह ३.१० मीटर हो गया ।

२. परीक्षण का निष्कर्ष

     आयुर्वेदीय औषधि की गोली से प्रक्षेपित सत्त्वप्रधान स्पंदनों / तरंगों के कारण जोंक आयुर्वेदीय औषधि की गोली के निकट अधिकांश समय रुकी । प्रयोग के पश्‍चात उसकी सकारात्मक ऊर्जा में थोडी वृद्धि हुई ।

      उपराक्त सभी सूत्रों के संदर्भ में अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण सूत्र ३ में दिया है ।

३. परीक्षण के निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण

३ अ. परीक्षण में प्रयोग की गई एलोपैथिक गोली में नकारात्मक स्पंदन होने का कारण : एलोपैथिक उपचार-पद्धति में रोग का मूल कारण खोजकर उसपर उपचार न कर, केवल रोगी को हुए रोग को दूर करने के लिए उसे औषधि दी जाती है । अनेक अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि एलोपैथिक औषधियों में विद्यमान रासायनिक घटकों के कारण, वह स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकती हैं । उसमें विद्यमान रासायनिक घटकों के कारण, देह के विषाणु तुरंत मर जाते हैं; परंतु उन औषधियों के देह पर दूरगामी नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं, तथा उनसे तमोगुणी स्पंदनों का प्रक्षेपण होता है । परीक्षण में प्रयोग की गई एलोपैथिक गोली में तमोगुणी (कष्टदायक) स्पंदन होने के कारण, उससे नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए ।

३ आ. परीक्षण में प्रयोग की गई होम्योपैथिक गोली में अल्प मात्रा में, तथा आयुर्वेदीय गोली में बडी मात्रा में सकारात्मक स्पंदन होने का कारण : होम्योपैथिक उपचार-पद्धति में रोगी का रोग ठीक करने के लिए उसकी संपूर्ण जानकारी ली जाती है और उसके अनुरूप उसे औषधि दी जाती है । ये औषधियां पशु, वनस्पति, खनिज और सिंथेटिक पदार्थों से बनाई जाती हैं । (संदर्भ : जालस्थल)

     आयुर्वेदीय उपचार-पद्धति में रोगी को हुए रोग का मूल कारण खोजकर उसपर रोगी की प्रकृतिनुसार (वात, पित्त, कफ) उपचार किए जाते हैं । रोगी को आयुर्वेदीय औषधि देने के साथ ही योग्य आहार-विहार तथा पथ्य-अपथ्य इत्यादि के संदर्भ में भी मार्गदर्शन किया जाता है । आयुर्वेदीय औषधियों के देह पर कोई भी नकारात्मक परिणाम नहीं होते तथा रोग जड से नष्ट होते हैं । आयुर्वेदीय औषधियों से प्रक्षेपित सत्त्वप्रधान स्पंदनों के कारण और आयुर्वेदीय औषधियों में विद्यमान प्राकृतिक घटकों के कारण वह स्वास्थ्य के लिए हितकारी है । परीक्षण में प्रयोग की गई होम्योपैथिक गोली में कुछ मात्रा में तथा आयुर्वेदीय गोली में बडी मात्रा में सात्त्विक स्पंदन थे, जिनसे सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए ।

३ इ. जोंक को तीनों प्रकार की औषधि की गोलियों से प्रक्षेपित  नकारात्मक अथवा सकारात्मक स्पंदन ज्ञात होने के कारण उसने उसके अनुरूप प्रतिसाद दिया : परीक्षण में प्रयुक्त होम्योपैथिक गोली से अल्प मात्रा में, तथा आयुर्वेदीय गोली से बडी मात्रा में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे हैं, यह जोंक उचित प्रकार से जान गई । इसलिए वह प्रथम आयुर्वेदीय औषधि की गोली की ओर गई । तदुपरांत वह आयुर्वेदीय और होम्योपैथिक गोलियों के मध्य से गई । जोंक ने एलोपैथिक गोली को स्पर्श किया । उसमें से उसे नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे हैं, ऐसा ध्यान में आने पर वह उस गोली के निकट नहीं रुकी । कुल २० मिनट के प्रयोग में जोंक अधिकांश समय आयुर्वेदीय गोली के निकट थी । प्रयोग के पश्‍चात जोंक की सकारात्मक ऊर्जा में थोडी वृद्धि हुई । सभी व्यक्ति, वास्तु अथवा वस्तुआें में सकारात्मक ऊर्जा होना आवश्यक नहीं है । जोंक में ३.१० मीटर अर्थात अधिक सकारात्मक ऊर्जा होना और उसके द्वारा तीनों गोलियों को दिया गया प्रतिि देखकर ऐसा ध्यान में आया कि वह सामान्य प्राणी न होकर एक सात्त्विक जीव है ।

     इस जोंक में सूक्ष्म आयाम संबंधी ज्ञान की क्षमता होने के कारण उसे तीनों प्रकार की औषधि की गोलियों से प्रक्षेपित नकारात्मक अथवा सकारात्मक स्पंदन ज्ञात हुए ।

३ ई. मानवेतर योनि के सात्त्विक जीवों को सात्त्विकता की लगन होने के कारण, उनका सनातन के आश्रम के सात्त्विक वातावरण की ओर आकृष्ट होना और देह त्यागना : कुछ साधक जीव मानवेतर योनियों में (पशु-पक्षी और वनस्पति) जन्म लेकर अपना प्रारब्धभोग भोगकर समाप्त करते हैं । वे सात्त्विक स्थान और सात्त्विक व्यक्ति की ओर सहजता से आकृष्ट होते हैं और उनके सान्निध्य में रहते हैं । सनातन के आश्रम की सात्त्विकता के कारण कुछ प्राणी और पक्षी, उदा. तितली, जोंक इत्यादि आश्रम में स्वयंप्रेरणा से आते हैं । ऐसा ध्यान में आया है कि वे आश्रम के साधक और संतों के सान्निध्य में रहते हैं और कुछ दिनों में कुछ जीव वहीं प्राण त्याग देते हैं । सात्त्विक स्थान पर प्राणत्याग करने से उन्हें अच्छी गति प्राप्त होती है । सनातन के आश्रम में प्रवेशद्वार के निकट पाई गई जोंक इसका ही एक उदाहरण है । उसने सनातन के आश्रम में आकर प्रयोग में सम्मिलित होकर ईश्‍वर के चरणों में अपनी सेवा अर्पण की । २.८.२०२० को उसने आश्रम में ही प्राण त्यागेे । इसलिए उसे अच्छी गति मिली ।

– डॉ. अमित भोसले, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, मीरज. (१४.९.२०२०)        

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आश्रम में आई जोंक को सात्त्विकता का ज्ञान है, यह इस प्रयोग से सिद्ध होना
और उसके मृत होने पर सप्तर्षि द्वारा उसे आश्रम परिसर में किसी अच्छे वृक्ष के
नीचे गाडने के लिए कहना,
तथा वह आश्रम में थी, यह शुभशकुन है, ऐसा भी बताना

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ

     आश्रम में आयुर्वेदीय उपचारों के लिए एक जोंक थी । जोंक त्वचा से चिपकती है और शरीर का अशुद्ध रक्त चूस लेती है । उससे मनुष्य पर उपचार होते हैं । स्वास्थ्य प्रदान करनेवाले धन्वंतरि देवता के हाथ में जोंक होती है । इसलिए जोंक एक दिव्य जीव है, ऐसा ध्यान में आया है ।

     आश्रम में आई जोंक का यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस) उपकरण के माध्यम से परीक्षण करने पर उसमें नकारात्मक ऊर्जा न होकर सकारात्मक ऊर्जा ही पाई गई । उसे सात्त्विकता संबंधी कितनी जानकारी  है ?, यह जानने के लिए प्रयोग किए गए । उसमें भी वह सात्त्विक आयुर्वेदीय औषधि की ओर ही गई । उसके समक्ष धन्वंतरि देवता का चित्र रखने पर वह उस चित्र की ओर गई और धन्वंतरि देवता के चरणों को स्पर्श किया । ऐसे इस दिव्य जीव ने २ दिन प्रयोग में सम्मिलित होकर आज (२.८.२०२० को) प्राण त्याग दिए ।

     इस जोंक के विषय में चेन्नई (तमिलनाडु) के सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी को बताने पर उनके माध्यम से सप्तर्षि ने बताया कि आश्रम में इस जोंक का निवास था, यह शुभशकुन है । मृत जोंक को आश्रम के परिसर में किसी अच्छे वृक्ष के नीचे गाडें । उसे वहां रखते समय धन्वंतरि देवता का श्‍लोक बोलें । सप्तर्षि द्वारा बताए अनुसार २.८.२०२० को मृत जोंक को आश्रम के उद्यान में अश्‍वत्थ (पीपल) वृक्ष के नीचे मिट्टी में गाड दिया गया ।

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (२.८.२०२०)