१. यद्यपि हाथ हिलाते समय प्रतीत होता है कि क्रिया केवल कंधों से हो रही है, तथापि कुल
मिलाकर बगतिाहें, कंधे की हड्डी और कॉलर बोन की एकत्रित हलचल के कारण वह गतिविधि होना
‘हमारे कंधों का जोड बांह की अस्थि (Humerus), कॉलर बोन (clavicle) और कंधे की हड्डी (scapula) के संयोग से बना होता है । साधारणतः किसी भी जोड की क्रिया होते समय जोड की एक हड्डी स्थिर रहती है और दूसरी हड्डी हिलती है; परंतु हाथ हिलाते समय हलचल यद्यपि केवल कंधे से होने का आभास होता है तथापि कुल बांह, कंधे की हड्डी और कॉलर बोन की एकत्रित क्रिया के कारण वह गतिविधि होती है । कंधे के १८० अंशों की कुल गतिविधि में से बांह की गतिविधि १२० अंश और कंधे की हड्डी की गतिविधि ६० अंश होती है । इसलिए कंधों की वेदना के साथ ही कंधे की हड्डी की गतिविधि की विकृति सामान्यतः दिखाई देती है । इसलिए वर्तमान में कंधे की हड्डी की गतिविधि की विकृति के कारण भी कंधों की वेदना की अनेक समस्याएं उत्पन्न होती दिखाई देती है ।
२. कंधे के स्नायुआें को शक्तिशाली बनाने से पूर्व ‘कंधे की हड्डी के
स्नायुआें को शक्तिशाली बनाना’, यह कंधों की वेदना के पुनर्वसन में अत्यावश्यक होना
एवं केवल कंधों के स्नायु शक्तिशाली बनाने के कुछ दिन पश्चात कंधों की वेदना पुनः प्रारंभ हो जाना
कंधे की हलचल करनेवाले स्नायुआें की नींव को दृढता से पकडकर रखने का कार्य कंधे की हड्डी के स्नायुआें का होता है । इसलिए कंधों के स्नायुआें को शक्तिशाली बनाने से पूर्व कंधे की हड्डी के स्नायुआें को शक्तिशाली बनाना कंधों की वेदना के पुनर्वसन में अत्यावश्यक होता है । केवल कंधों के स्नायु शक्तिशाली बनाने पर कुछ दिनें पश्चात पुनः कंधों में वेदना प्रारंभ हो सकती है । इसलिए वर्तमान में अच्छी गुणवत्तावाले सभी चिकित्सालयों में इस पर बल दिया जाता है; परंतु दुर्भाग्यवश अनेक व्यायामशालाआें में तथा घर में व्यायाम करनेवालों द्वारा कंधे की हड्डी के स्नायुआें की उपेक्षा होती है, यह ध्यान में आता है । इसलिए कंधों की हलचल में असंबद्धता (incordination) और अनियमितता (irregularity) आती है तथा बिना किसी विशेष कारण के हलचल करते समय वेदना होने की संभावना होती है । कंधे की हड्डी की असंबद्ध हलचल को ‘स्कैप्युलर डायस्किनेसिस’ (scapular dyskinesis) कहते हैं । विशेष यह है कि कंधोंपर कितने भी उपचार करें अथवा कंधे के कितने भी व्यायाम करें, तब भी वेदना में विशेष परिवर्तन नहीं होता और हलचल करते समय कुछ न्यून है, इसका भी भान व्यक्ति को नहीं होता ।
३. गर्दन अथवा कंधों की व्याधि उत्पन्न होने के कारण
साधारणतः अपना हाथ सामने अथवा बाजू से ऊपर ले जाने पर, वह कान तक जाता है । यही क्रिया करते समय कंधे की हड्डी सामने की दिशा में झुकी हुई हो, तो हाथ कान तक नहीं ले जा पाते अर्थात हाथ की हलचल पूर्ण नहीं होती । जो लोग दिन के अधिकांश समय तक ऐसी स्थिति में बैठते हैं, उनकी कंधे की हड्डी के स्नायु कमजोर होते हैं अथवा अकडना प्रारंभ हो जाते हैं । बैठने के अतिरिक्त अन्य क्रियाएं भी कंधे अथवा कंधे की हड्डी सामने रखकर की जाती हैं । ऐसे लोगों को कुछ दिन पश्चात गर्दन अथवा कंधे की व्याधि होने की संभावना होती है ।
४. कंधों की वेदना की तीव्रता ६० प्रतिशत से अधिक होने पर चिकित्सक
से परामर्श लेना चाहिए । वेदना की तीव्रता ६० प्रतिशत से अल्प हो, तो स्नायु
शक्तिशाली बनाने के लिए आगे दिए गए व्यायाम चरण दर चरण करने चाहिए ।
४ अ. व्यायाम क्र. १ कंधे की हड्डी पीछे करना (scapular retraction/pinches)
१. खडे रहकर अथवा बैठकर बांहें विश्राम की स्थिति में शरीर के समांतर रखें
२. दोनों कोहनियां ९० अंश में झुकाएं ।
३. अब ध्यानपूर्वक दोनों कंधे (कोहनी नहीं) पिछली दिशा में ले जाएं । यह करते समय सावधानी बरतें कि कंधे ऊपर (कान की ओर) नहीं उठें ।
४. ऐसा करने पर कंधे की दोनों हडियां एक दूसरे के निकट आती हैं । (उनका अंतर न्यून अथवा समाप्त हो जाता है ।)
५. दोनों कंधे इस स्थिति में १० सेकंड रखें, तत्पश्चात ढीले छोडें ।
६. एक बार में १० बार, इस प्रकार दिन में चार बार करें ।
४ आ. व्यायाम क्र. २ कंधे की हड्डियां पीछे लेकर हाथ पीछे करना (scapular retraction with arm extension)
१. खडे रहकर अथवा बैठकर बांहें विश्राम की स्थिति में शरीर के समांतर रखें ।
२. दोनों हाथ कोहनियों से सीधे रखें ।
३. अब ध्यानपूर्वक दोनों कंधे पीछे की दिशा में ले जाएं । यह क्रिया करते समय सावधानी बरतें । कंधे ऊपर ‘कान की ओर) नहीं उठें । ऐसा करने से कंधे की हड्डियां एक-दूसरे के निकट आती हैं ।
४. कंधे इसी स्थिति में रखकर दोनों हाथ पीछे लें ।
५. दोनों कंधे और हाथ इस स्थिति में १० सेकंड रखें, तत्पश्चात ढीले छोडें ।
६. एक बार में १० बार, इस प्रकार दिन में चार बार करें ।
उक्त दोनों व्यायाम दर्पण में देखकर करने से यह ध्यान देना सुविधाजनक होता है कि ‘कहीं कंधे ऊपर तो नहीं जा रहे हैं ?’
४ इ. व्यायाम क्र. ३ हथेली दीवार पर रखकर कंधे की हड्डी पीछे लेना (wall pinches)
१. दीवार से टिककर इस प्रकार खडे रहें जिससे दोनों हथेलियां कंधों के सामने आएं ।
२. हथेलियों पर थोडा भार देकर कंधे की दोनों हड्डियां एक-दूसरे के समीप लाएं ।
३. ऐसा करते समय ‘कंधे ऊपर न उठ पाएं तथा हथेलियां दीवार पर टिकी रहें’, यह सावधानी बरतें ।
४. दोनों कंधों की हड्डी इस स्थिति में १० सेकंड रखें, तत्पश्चात ढीली छोडें ।
५. एक बार में १० बार, इस प्रकार दिन में चार बार करें ।
४ ई. व्यायाम क्र. ४ कोहनी पर जोर देकर आगे आना (reverse pushups)
१. कक्ष के कोने में पीठ कर खडे रहें ।
२. इस प्रकार खडे रहें, जिससे कक्ष के कोने के दोनों ओर बांहें टिकी रहें ।
३. दोनों बाहों पर जोर देकर शरीर को आगे ढकेलें ।
४. इस स्थिति में १० सेकंड रुके रहें ।
५. पुनः पूर्वस्थिति में आएं ।
४ उ. व्यायाम क्र. ५ – कोहनी न झुकाते हुए दंड मारना (scapular pushups)
१. दंड लगाने की स्थिति में रहें ।
२. दोनों कंधे आगे ले जाएं ।
३. दोनों कंधे पीछे लेकर उस स्थिति में १० सेकंड रुकें ।
४. पुनः पूर्वस्थिति में आएं ।
५. आगे दी गई बीमारियों में उक्त व्यायामप्रकारों में से व्यायामप्रकार क्र. १ से ३ का उपयोग होता है ।
अ. अकबाहुक (frozen shoulder)
आ. कंधे पर चोट लगने पर (आधुनिक चिकित्सक के बताने पर ही व्यायाम करें ।)
इ. कंधों के स्नायुआें पर (rotator cuff strain) अथवा स्नायुबंधों पर तनाव आना (tendonitis)’
आपातकाल में चिकित्सक अथवा औषधियां मिलने की संभावना न होने से रोग टालने के लिए अथवा नियंत्रण में रखने के लिए अभी से सभी योग्य व्यायामप्रकार करना प्रारंभ करें, जिससे शरीर सुदृढ और कार्यक्षम (कार्ययोग्य) बना रहेगा ।
– श्री. निमिष म्हात्रे, भौतिकोपचारक, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२३.७.२०२०)