हिन्दू आतंकवाद के झूठ का विरोध कर हिन्दू धर्म की रक्षा करना प्रत्येक का कर्तव्य !

मारिया वर्थ

     वर्ष २००८ के शरद ऋतु की मेरी वेदनाएं आज भी ताजी हैं । कुछ वर्षों पूर्व से मैंने राजनीति को निकट से जानना प्रारंभ किया है । उसके लिए मैं ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ की सदस्‍य भी बनी थी । उस अवधि में भारत के विविध शहरों में अनेक बमविस्‍फोट हुए थे । उसमें अनेकों की मृत्‍यु हो गई थी । इन बमविस्‍फोटों में संदिग्‍ध अपराधी इस्‍लामी संगठनों से संबंधित थे । अमेरिका के गुप्‍तचर तंत्रों ने जिहादी आतंकवादियों की ओर उंगली उठाई थी । वर्ष २००८ में समाचार पत्रों में ‘हिन्‍दू आतंकवाद’, ‘भगवा आतंकवाद’ के हृदयविदारक शीर्षक झलकने लगे । राज्‍यकर्ता और पत्रकार इन शब्‍दों का सहजता से उपयोग करते हुए दिखाई देने लगे । उन्‍होंने कभी ‘इस्‍लामी आतंकवाद’ अथवा ‘हरा आतंकवाद’ ऐसा शब्‍दप्रयोग किया हो ऐसा सुनने में नहीं आया था । कर्नल पुरोहित, साध्‍वी प्रज्ञासिंह, स्‍वामी असीमानंद सहित अनेक हिन्‍दुआें को बंदी बनाया गया ।

१. धर्म सामान्‍यजनों की नाहक हत्‍या करने की अनुमति नहीं देता !

     ‘हिन्‍दू आतंकवाद’ ऐसा कुछ अस्‍तित्‍व में ही नहीं है, इस संबंध में मुझे पूरा विश्‍वास था । हिन्‍दू आतंकवाद हो ही नहीं सकता; क्‍योंकि हिन्‍दू समाज धर्म पर आधारित है तथा किसी भी परिस्‍थिति में स्‍वयं का आचरण योग्‍य रखना ही धर्म है ! इस स्‍थान पर प्रत्‍येक की विवेकबुद्धि उसकी मार्गदर्शक होती है । इसमें जब किसी को उचित क्‍या है, यह समझ में नहीं आता, तब वह गुरु अथवा धर्मग्रंथ का आधार लेता है ।

     एक बात बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है कि रेलवे स्‍थान, बाजार अथवा उपाहार गृहों में सामान्‍य लोगों की हत्‍या करना कदापि उचित नहीं है । उचित विचारधारा का व्‍यक्‍ति कभी ऐसा कर्म नहीं करेगा । धर्म ऐसी बातों को अनुमति नहीं देता । किसी क्रूर सत्ताधारी को मारने की अनुमति एक बार धर्म दे सकता है । अंग्रेजी शासन में लेफ्‍टिनेंट गवर्नर डायर की सरदार उधम सिंह द्वारा की गई हत्‍या समर्थनीय थी; क्‍योंकि लेफ्‍टिनेंट गवर्नर डायर ने वर्ष १९१९ में जलियांवाला बाग हत्‍याकांड करवाया था और उसमें सहस्रों निर्दोष भारतीयों को गोलियां चलाकर मार डाला गया था । शांतिपूर्ण जीवन जीनेवाले अज्ञात लोगों की हत्‍या करना, यह मानव की विवेकबुद्धि के विरुद्ध है । यह आचरण हिन्‍दू धर्म के विरुद्ध है ।

२. कांग्रेस के दिग्‍विजय सिंह और आतंकवाद विरोधी दल के प्रमुख

हेमंत करकरे के दबाव के पश्‍चात अन्‍वेषण की दिशा परिवर्तित हो गई !

     हिन्‍दू आतंकवाद का चित्र कहां से निर्माण हुआ ? यह चित्र बलपूर्वक खडा किया गया और जिन्‍होंने यह किया, वे यह जानते थे कि वे यह दुष्‍कृत्‍य कर रहे हैं । इसके समान और दूसरा दुष्‍ट षड्‍यंत्र हो ही नहीं सकता । वर्ष २००६ से वर्ष २०१० की अवधि में गृहमंत्रालय में कार्यरत आर.वी.एस. मणि ने अपनी पुस्‍तक ‘हिन्‍दू टेरर’ में झूठे हिन्‍दू आतंकवाद के संबंध में लिखा है । उस अवधि के गृहमंत्री शिवराज पाटील ने उन्‍हें अपने कार्यालय में बुला लिया था । उस समय कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्‍विजय सिंह और मुंबई के आतंकवाद विरोधी दल के प्रमुख हेमंत करकरे उपस्‍थित थे । उन्‍होंने उस अवधि में हुए बमविस्‍फोटों के अन्‍वेषण के संबंध में उन पर प्रश्‍नों की भरमार की । उस समय बमविस्‍फोटों में इस्‍लामी आतंकवादी संगठन सम्‍मिलित होने के श्री. मणि के निष्‍कर्ष के प्रति उन्‍होंने नाराजगी व्‍यक्‍त की । उन्‍हें वह निष्‍कर्ष मान्‍य नहीं था । उसके पश्‍चात मालेगांव, हैदराबाद और समझौता एक्‍सप्रेस बमविस्‍फोटों से संबंधित चित्र परिवर्तित हो गया । अन्‍वेषण की दिशा ही परिवर्तित कर दी गई । इस प्रकरण में हिन्‍दुआें को आरोपी साबित किया गया और धर्मांध आरोपियों के पास बमविस्‍फोटों के प्रमाण मिलने पर भी उन्‍हें निर्दोष साबित कर छोड दिया गया । इसके पीछे क्‍या कारण हो सकता है ? आतंकवाद के कारण पाकिस्‍तान और इस्‍लाम के प्रति उत्‍पन्‍न हुई नकारात्‍मक छवि मद्धम करना और उसमें समतोल उत्‍पन्‍न करना, यह एक कारण माना जाता है । हिन्‍दू धर्म और भारत बिल्‍कुल बुरा नहीं है, तथापि थोडा बहुत कष्‍टदायक है, ऐसा चित्र निर्माण करने का वह एक षड्‌यंत्र था तथा उनका यह कुटिल षड्‍यंत्र सफल भी हुआ था ।

३. इस्‍लामी आक्रमण के प्रमाण हाथ में होते हुए भी  ‘२६/११ :

आरएसएस की साजिश’ नामक पुस्‍तक का दिग्‍विजय सिंह के हाथों लोकार्पण !

     मुंबई के ताज होटल पर हुए आक्रमण का आरोप हिन्‍दुआें पर लगाया जा रहा था । सदैव की भांति इस्‍लाम और आतंकवाद का संबंध नकारा जा रहा था । इसलिए इस्‍लामी आतंकवादी आक्रमण का दुष्‍कृत्‍य छिपाया जा सकता था । उस दृष्‍टि से यह षड्‌यंत्र रचनेवालों का षड्‍यंत्र सफल होते हुए दिखाई दे रहा था । वर्ष २००८ में २६/११ का आक्रमण चल रहा था, तब हिन्‍दू संगठनों को उत्तरदायी साबित करने के प्रयत्न चल रहे थे । मैंने जब इस षड्‌यंत्र का समाचार देखा, तब मुझे बहुत दुःख हुआ । उस समय सौभाग्‍यवश तुकाराम आेंबळे नामक पुलिस सिपाही ने स्‍वयं के प्राण संकट में डालकर एक आतंकवादी को जीवित पकडने का समाचार पढा । इस आक्रमण के किसी एक आतंकवादी को जीवित पकडने की संभावना शून्‍य थी; परंतु सौभाग्‍यवश एक आतंकवादी जीवित हाथ लग गया था । उसका नाम कसाब था और वह पाकिस्‍तान का धर्मांध था । उसनेे स्‍वयं को हिन्‍दू दर्शाने के लिए दाढी बनाई थी और हाथ में धागा बांधा था । तब भी इस आतंकवादी आक्रमण का संबंध हिन्‍दू धर्म से जोडने का प्रयत्न चल ही रहा था । दिसंबर २०१० में सभी प्रमाण विरुद्ध होते हुए भी ‘२६/११ – आरएसएस की साजिश’ नामक पुस्‍तक का कांग्रेस के नेता दिग्‍विजय सिंह के हाथों लोकार्पण किया गया ।

४. धर्म के नाम पर दी जानेवाली समाजघाती सीख

     देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में जिन्‍हें आगे किया जा रहा था, वे राहुल गांधी ‘हिन्‍दू आतंकवाद’ की तुनतूनी बजा ही रहे थे । उन्‍होंने अमेरिका के राजदूत तिमोथी रोमर को बताया कि ‘इस्‍लामी आतंकवादियों की अपेक्षा भारत को हिन्‍दू आतंकवादियों से अधिक धोखा है’, ‘सभी धर्मों में आतंकवादी हैं’, ऐसा प्रचार वे करते रहे । उसमें तथ्‍य होने की भावना निर्माण होने लगी; परंतु आतंकवादी कार्रवाइयां करने के पीछे एक उद्देश्‍य छुपा होता है । इस्‍लाम में आतंकवाद का समर्थन दिखाई देता है; क्‍योंकि कुरान में मानवों को दो गुटों में विभाजित किया गया है, ‘इस्‍लाम को माननेवाले और इस्‍लाम को न माननेवाले (काफिर) ।’ अल्लाह के नाम पर काफिरों के विरुद्ध लडने के लिए उन्‍हें प्रेरित किया जाता है । कुरान के २.२१६ वें आयत में बताया है कि ‘तुम्‍हें अनुचित लगता हो, तब भी संघर्ष करना तुम्‍हारे लिए विहित है । इस तत्त्व का अवलंबन करना ही चाहिए, यह संघर्ष करने का निश्‍चित कारण क्‍या है ? इस्‍लामी जगत निर्माण करना, यह उनका लक्ष्य है । संपूर्ण संसार में इस्‍लाम की स्‍थापना करना; क्‍योंकि अन्‍य सभी धर्म झूठे हैं, ऐसी सीख इसमें अंतर्भूत है ।

     अल्लाह काफिरों का तिरस्‍कार करता है । वह उन्‍हें नरक में भेजता है । काफिर संसार के सर्वाधिक निकृष्‍ट स्‍तर के प्राणी हैं, वह उन्‍हें बिल्‍कुल दया नहीं दिखाता ।

     इसलिए काफिरों को मार डालने से अथवा उनकी महिलाआें पर बलात्‍कार करने से पाप नहीं लगता । धर्म के नाम पर यह सीख दी जाती है और धर्मस्‍वतंत्रता के नाम पर उसे सुरक्षा भी दी जाती है । विद्यालयों में यह सीख दी जाती है । मुल्लामौलवी उजागर रूप से उसका प्रसार करते हैं  ‘इस सीख का अवलंब करनेवालों को स्‍वर्ग प्राप्‍त होता है’, ऐसा बताया जाता है । आश्‍चर्य की बात यह है कि लोग इस पर विश्‍वास रखते हैं ।

५. धर्मांतरितों का भविष्‍य संकटमय !

     धर्मांधों को बाल्‍यावस्‍था से वैसी सीख दी जाती है । इसलिए वे वैसा आचरण करते हैं, यह हम समझ सकते हैं; परंतुु खलिद मसूद (पूर्व के एड्रियन एल्‍म्‍स) जैसे धर्मांतरित धर्मांध भी अल्लाह के नाम से हत्‍या करवा रहे हैं । जो खरे ईसाई और खरे मुसलमान नहीं हैं, उनका भविष्‍य अत्‍यंत भयानक है, ऐसी भविष्‍यवाणी क्रमशः चर्च और इस्‍लाम कर रहे हैं । इन अपराधियों के मन पर अंकित किया जाता है कि ‘काफिरों की हत्‍या करने से निश्‍चित ही आपको स्‍वर्ग की प्राप्‍ति होगी ।’ यह निश्‍चित है कि निर्दोष लोगों की हत्‍या करने से उन्‍हें स्‍वर्ग नहीं मिलेगा; परंतु उन्‍हें कोई इस संबंध में नहीं बताता । इसके विपरीत शिक्षित और व्‍यवसायी मुसलमान उनके मन में संदेह का बीज अंकित करने का काम करते हैं । इस्‍लाम स्‍वयं के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए काफिरों की हत्‍या करने की सीख देता है । ईसाई धर्म में भी जो ईसाई नहीं है, उन लाखों लोगों की हत्‍या की गई है । साम्‍यवाद और नाजीवाद ने भी उनकी विचारधारा न माननेवाले लाखों लोगों की हत्‍या की है ।इस्‍लाम और ईसाईयों में अंतर इतना ही है कि ईसाई ऐसा दावा नहीं करते कि ‘ईश्‍वर चाहते हैं; इसलिए अन्‍यों की हत्‍या करते हैं ।’

६. हिन्‍दू धर्म विश्‍वबंधुत्‍व की सीख देता है !

     हिन्‍दू धर्म पूर्णतः अलग और परोपकारी धर्म है । ब्रह्म विश्‍व का मूल है तथा सबमें समाया हुआ है । वह सर्वव्‍यापी है । वह आत्‍मस्‍वरूप होने के कारण उसे माननेवाले और न माननेवाले ऐसा भेद वे नहीं करते । आत्‍मा सभी में है और सभी को जीने का हक है । हिन्‍दू धर्म विश्‍वबंधुत्‍व की सीख देता है । अपने गुट तक सीमित बंधुत्‍व की सीख नहीं देता ।

     इस संसार में ऐसे भी लोग हैं, जो हिन्‍दू नाम धारण करते हैं; परंतु धर्म के अनुसार आचरण नहीं करते और स्‍वार्थ, वासना अथवा प्रतिशोध की भावना से अपराध करते हैं । उन्‍हें दंड मिलना आवश्‍यक है । हिन्‍दू धर्म के नाम से सामान्‍य लोगों मेें आतंकवाद निर्माण करना संभव नहीं है । कांग्रेस के कुछ शासकों द्वारा पुलिस अधिकारियों की सहायता से ‘हिन्‍दू आतंकवाद’ के संबंध में रचा हुआ षड्‍यंत्र एक अत्‍यंत भयानक और विश्‍वासघाती षड्‌यंत्र है ।

     भारत देश तुकाराम आेंबळे के प्रति कृतज्ञ है । उनके कारण वर्ष २००८ में हिन्‍दुआें के विरोध का एक बडा षड्‌यंत्र टल गया; परंतु उसका संकट अभी समाप्‍त नहीं हुआ है । हिन्‍दू  धर्म को नीच साबित करने की इच्‍छुक शक्‍तियां अभी सक्रिय हैं । हिन्‍दुआें को सतर्क रहना चाहिए और उन्‍हें उनकी संस्‍कृति और परंपरा की रक्षा करना चाहिए तथा धर्माचरण करना चाहिए ।

७. हिन्‍दू धर्म की रक्षा करना, मानवता के प्रति हमारा कर्तव्‍य है !

     हिन्‍दू धर्म एक बडी लहर के समान होना आवश्‍यक है, जो संपूर्ण संसार को झटक देगा और सभी लोगों को सत् के निकट ला पाएगा । सत्‍य पुस्‍तकों में नहीं है । हिन्‍दू धर्म सत् पर आधारित होने के कारण हम उसकी अनुभूति ले सकते हैं । हम कौन हैं, यही हमारे जीवन का ध्‍येय है और वही खरा आनंद है ।

     दुराग्रही और कट्टरवादी पंथ जानते हैं कि हिन्‍दू धर्म में उन्‍हें समाप्‍त करने की शक्‍ति है । इन पंथियों को जब उनके दावों का झूठ ध्‍यान में आएगा, तब उस पंथ का प्रभाव क्षीण हो जाएगा । आजकल पश्‍चिमी देशों में ईसाई धर्म का प्रभाव अल्‍प हो गया है । सभी को हिन्‍दू धर्म अपनाना चाहिए । यह इस भूमि के प्राचीन ऋषि-मुनियों के प्रति हमारा कर्तव्‍य है और व्‍यापक अर्थ में मानवता के प्रति भी हमारा कर्तव्‍य है ।’

– मारिया वर्थ, जर्मन लेखिका.