‘अच्छा भोजन और शारीरिक संबंध के कारण मिलनेवाला आनंद दिव्य होता है !’ – पोप फ्रान्सिस

  • सुख और आनंद की व्याख्या ही न जाननेवाले अन्य पंथ ! अच्छा भोजन और शारीरिक संबंध के कारण मिलनेवाला केवल सुख होता है, जो तात्कालिक अर्थात अस्थायी होता है और जिसके अधिक सेवन से उसका रूपांतरण दुःख में हो जाता है । इसके विपरीत साधना करने से आनंद मिलता है, जो चिरकाल तक बना रहता है ! यह उच्च स्तर का अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण केवल हिन्दू धर्म ही सिखाता है और मनुष्य को साधना का महत्त्व बताकर सुख-दुःख में नहीं फंसने देता तथा उससे परे के आनंद का अनुभव करना सिखाता है !
  • हिन्दू धर्माशास्त्रानुसार इससे भी परे जाकर मिलनेवाले आनंद अर्थात सच्चिदानंद के संबंध में बताया गया है । भारतीय साधु, संत, तथा उन्नत व्यक्ति साधना कर इस सर्वाेच्च दैवी आनंद का अनुभव करते रहते हैं ! इस आनंद की तुलना में अच्छा भोजन अथवा शारीरिक संबंधों के कारण मिलनेवाला सुख उन्हें नगण्य लगता रहता है !

वैटिकन सिटी – किसी भी प्रकार का आनंद हमें ईश्वर से प्रत्यक्ष स्वरूप में मिलता रहता है । वह कैथोलिक ईसाई अथवा अन्य कुछ नहीं होता, अपितु केवल दिव्य होता है । अच्छे से पका हुआ भोजन और शारीरिक संबंधों के कारण मिलनेवाला आनंद दिव्य होता है, ऐसा विधान ईसाइयों के सर्वाेच्च धर्मगुरु पोप फ्रान्सिस ने किया है, वे इटली के एक लेखक को एक पुस्तक के लिए दी गई भेंटवार्ता के समय बोल रहे थे ।

पोप फ्रान्सिस बोले कि,

१. चर्च ने सदैव अमानवीय और क्रूर आनंद की निंदा ही की है; परंतु दूसरी ओर मानवीय सरल और नैतिक सुख का स्वीकार किया है ।

२. ईश्वर की दृष्टि से जिस नैतिकता में ईर्ष्या नहीं होती, वह कहीं भी सुख देती है । पहले चर्च द्वारा इस बात का पालन किया जाता था; परंतु धीरे-धीरे ईसाइयों के संदेश का गलत अर्थ लगाया जाने लगा ।

३. भोजन का आनंद आपको नीरोगी रखता है । उसी प्रकार यौन सुख आपको प्रेम और सुंदर बनाता है । इस कारण भिन्न प्रजातियों का अस्तित्व भी बना रहता है ।