हिन्‍दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित ‘अर्बन नक्‍सलवाद और अपरिचित डॉ. दाभोलकर’ विषय पर ‘ऑनलाइन’ परिचर्चा

‘वैचारिक’ रोगप्रतिकारक क्षमता बढाकर नक्‍सलवाद को रोकें ! – वरिष्‍ठ पत्रकार भाऊ तोरसेकर

पुणे (महाराष्‍ट्र) – ‘कोरोना के विषाणु शरीर में प्रवेश कर हमारी ही कोशिकाआें को कोरोना विषाणुआें में परिवर्तित कर अपनी संख्‍या बढाते हैं । स्‍वयं को ही शत्रु बनानेवाला यह कोरोना विषाणु तथा नक्‍सलवाद, माओवाद एवं जिहाद में भी ऐसी ही समानता है । ये सभी देशघातक प्रवृत्तियां हमारी बुद्धि में वैचारिक बाधाएं उत्‍पन्‍न करती हैं । नक्‍सलवाद के इस विषाणु को रोकने हेतु राष्‍ट्र-धर्म के लिए संघर्ष करनेवालों को संगठित होकर अपनी ‘वैचारिक’ रोगप्रतिकारक क्षमता बढानी चाहिए ।’ वरिष्‍ठ पत्रकार श्री. भाऊ तोरसेकर ने यह आवाहन किया । ‘नगरों में नक्‍सलवाद किस प्रकार बढ रहा है’, ‘उसका स्‍वरूप क्‍या है’ और ‘उसे गुप्‍त पद्धति से बल देनेवाले बिचौलिए कौन हैं ?’ जैसे अनेक प्रश्‍नों पर प्रकाश डालने हेतु हिन्‍दू जनजागृति समिति की ओर से ‘अर्बन नक्‍सलवाद और अपरिचित डॉ. दाभोलकर’ विषय पर २०.८.२०२० को ‘ऑनलाइन’ सामाजिक माध्‍यमों से विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम में वरिष्‍ठ पत्रकार श्री. भाऊ तोरसेकर बोल रहे थे । इस कार्यक्रम में सनातन संस्‍था के प्रवक्‍ता श्री. चेतन राजहंस और हिन्‍दू विधिज्ञ परिषद के अध्‍यक्ष अधिवक्‍ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर उपस्‍थित थे ।
इस परिचर्चा में बोलते हुए श्री. चेतन राजहंस ने अंनिस के (अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के) विरुद्ध अनेक प्रमाणों की जानकारी देते हुए अंनिस का झूठ और डॉ. दाभोलकर के नक्‍सलवाद के साथ संबंधों के संदर्भ में संदेह स्‍पष्‍ट किया । अधिवक्‍ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने डॉ. दाभोलकर हत्‍या प्रकरण में न्‍यायालय में किए गए वाद-विवाद, अन्‍वेषण में व्‍याप्‍त त्रुटियां और विसंगति को स्‍पष्‍ट करते हुए अनुचित दिशा में भटक रहे अन्‍वेषण की सच्‍चाई को सामने लाया ।
श्री. भाऊ तोरसेकर ने आगे कहा कि १. गिरीष कर्नाड, वरवरा राव, गौरी लंकेश, ये सभी नक्‍सलवाद के वैचारिक रोग से ग्रस्‍त हैं ।
२. किसी भी परिस्‍थिति में संगठित होकर इस समस्‍या का समाधान करना चाहिए । उसके उपायों की चर्चा होनी चाहिए ।
३. जिस प्रकार कोरोना विषाणु दुर्बल और वयस्‍क व्‍यक्‍तियों को सहजता से मार देता है, उसी प्रकार से यह ‘वैचारिक’ रोग दुर्बल घटकों को जैसे आदिवासी, श्रमिक और दयनीय स्‍थिति में जीवन व्‍यतीत कर रहे लोगों को पहले अपने आगोश में लेता है । इस रोग को यहीं रोकना होगा ।
४. आंबेडकरी आंदोलन से मिलनेवाली ऊर्जा का उपयोग बडी सहजता से नक्‍सली आंदोलन के लिए किया जाता है । डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर माओवादविरोधी थे; परंतु उनके विचार माओवाद पर आधारित थे, यह झूठ बताया जा रहा है ।
५. जिहादी, नक्‍सली और ईसाई हिन्‍दू धर्म पर आघात कर रहे हैं । उन्‍हें यह ज्ञात है कि जब तक हिन्‍दू समाज का अस्‍तित्‍व है, तभी तक भारत खंडप्राय देश के रूप में टिका रह सकता है ।

धर्म को अफीम की गोली माननेवाले केवल धर्मविरोधी
ही नहीं, अपितु राष्‍ट्रविरोधी भी हैं ! – चेतन राजहंस, प्रवक्‍ता, सनातन संस्‍था

‘धर्म अफीम की गोली है’, ऐसा माननेवालों का यह व्‍यक्‍तिगत मत होता है । इसलिए धर्म न माननेवालों के आंदोलनों से दूर रहें । ऐसे आंदोलन केवल धर्मविरोधी ही नहीं, अपितु राष्‍ट्रविरोधी भी हैं । माओवादी राजनीतिक दल, ‘सेक्‍युलर’ दल और जिहादी शक्‍तियां शहरी नक्‍सलवाद को बल देनेवाली समर्थक शक्‍तियां हैं । वे केवल हिन्‍दूविरोधी ही नहीं, अपितु देशविरोधी भी हैं । अभी तक अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (अंनिस) के विरुद्ध प्रमाणों के साथ भ्रष्‍टाचार के आरोप लगे हैं । अंनिस संगठन नक्‍सलवाद की सहायता करनेवाला, आर्थिक भ्रष्‍टाचार करनेवाला, विदेशी राष्‍ट्रद्रोही संस्‍थाआें से अनुदान लेनेवाला, वैज्ञानिक भान परियोजना के नाम पर अवैध रूप से काम करने जैसे कार्यों में संलिप्‍त होते बार-बार दिखाई दिया है । ईश्‍वरभक्‍ति का मार्ग दिखानेवाले संतों ने दांभिकता और अंधविश्‍वास को रोका; परंतु आज के आधुनिकतावादी स्‍वयं श्रद्धाविरोधी और नास्‍तिक होते हुए भी दांभिकता के विरुद्ध बोलते हैं, जो अनुचित है । केवल श्रद्धा से ही ज्ञान और मोक्षप्राप्‍ति होती है ।

वैचारिक आतंकवाद की दांभिकता को पहचानें !
– अधिवक्‍ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर

‘केवल बमविस्‍फोट कराकर और बंदूक के बल पर अपना अस्‍तित्‍व नहीं टिका रह सकता’, यह ध्‍यान में आने पर नक्‍सलवाद ने वैचारिक माध्‍यमों से शहरों में प्रवेश किया । नक्‍सली समर्थक डॉ. विनायक सेन को गिरफ्‍तार करने पर उन्‍हें प्रतिभूति (जमानत) मिले; इसके लिए २२ नोबेल पुरस्‍कार विजेताआें ने सरकार को पत्र लिखे । जिनके विरुद्ध अवैध कृत्‍य प्रतिबंधक विधि लगाई गई थी, उस डॉ. विनायक सेन को बिना किसी कारण के प्रतिभूति दी गई । केवल वामपंथी विचारधारा के कारण हुई हिंसा में १४ सहस्र से भी अधिक लोग बलि चढ गए । क्‍या इसका कोई महत्त्व नहीं है ? जिन्‍होंने १४ सहस्र लोगों को मारा, पहले उनको दंडित करें और उसके पश्‍चात ४ आधुनिकतावादियों की हत्‍याआें के संदर्भ में बोलें, ऐसा आवाहन क्‍यों नहीं किया जाता ? वर्ष २०१० में ही सूचना अधिकार कार्यकर्ता सतीश शेट्टी की हत्‍या हुई; परंतु केंद्रीय अन्‍वेषण विभाग से इस हत्‍या की जांच वापस ले ली गई । क्‍या यहां सूचना अधिकार कार्यकर्ता बडा नहीं है ? इस बढ रही वैचारिक दांभिकता को पहचानना होगा । हम सरकार से यह मांग करते हैं कि अंनिस, श्रमिक नागरी पतसंस्‍था जैसी संस्‍थाआें की वार्षिक लेखाबंदी में उजागर अनियमितताएं और नक्‍सलवाद के बीच क्‍या संबंध है, इसकी जांच होनी चाहिए । राष्‍ट्रवादी कांग्रेस के कार्यकाल में ही डॉ. दाभोलकर हत्‍या प्रकरण में नागोरी और खंडेलवाल की गिरफ्‍तारी हुई । उनसे संबंधित अन्‍वेषण को आगे बढाना चाहिए ।