१. ‘श्रीराम स्वयं ईश्वर के अवतार थे । पांडवों के समय श्रीकृष्णजी पूर्णावतार थे । छत्रपति शिवाजी महाराज के समय समर्थ रामदासस्वामी थे । इससे यह ध्यान में आता है कि ईश्वरीय राज्य की स्थापना ईश्वर स्वयं करते हैं अथवा संतों से करवाकर लेते हैं । ‘अब ईश्वर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करें अथवा संतों से करवा लें’; इसके लिए हमें उनका भक्त बनना आवश्यक है ।’
२. ‘प्रत्येक पीढी अपने आगे की पीढी से समाज, राष्ट्र एवं धर्म संबंधी अपेक्षाएं रखती है । इसके विपरीत प्रत्येक पीढी स्वयं विचार करे कि ‘हम क्या कर सकते हैं ?’ इस प्रकार विचार कर ऐसा कार्य करना चाहिए कि आगे की पीढी को कुछ कार्य करने की आवश्यकता ही न पडे । अतः वे अपना संपूर्ण समय साधना के लिए दे पाएंगे !’
३. ‘अनेक अपराध कर आत्महत्या करनेवाले को शासन कैसे दंडित करेगा ? परंतु ईश्वर करते हैं । इससे समझ में आता है कि ईश्वर का राज्य कितना कल्पनातीत है ! अतः ईश्वरीय राज्य की स्थापना के लिए प्रयत्नरत रहें !’
४. ‘अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के कारण मनुष्य दिशाहीन हो जाता है; क्योंकि उसमें सात्त्विकता नहीं है । ऐसा न हो, इसलिए उसे धर्मबंधन अनिवार्य है !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले