जळगांव (महाराष्ट्र) – यहां के सेवाकेंद्र में २१ जुलाई को व्यष्टि साधना संबंधी एक ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया गया था । इसमें साधकों को व्यष्टि साधना के विषय में किए गए प्रयत्नों का ब्योरा लेते समय सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने कहा, ‘‘श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर ने ऑनलाइन सत्संग के नियोजन में समर्पित भाव से सेवा की । प्रतिकूल परिस्थिति में भी स्थिर रहना, क्षात्रतेज, स्वीकारने की वृत्ति और साधकों के प्रति प्रेमभाव, इन गुणों के आधार पर वे ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो गई हैं ।’’ यह सुनते ही ऑनलाइन सत्संग में जुडे सभी साधकों की भावजागृति हुई । सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने भगवान श्रीकृष्ण का चित्र श्रीमती जुवेकर को भेंट दिया ।
श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर द्वारा व्यक्त किया मनोगत
यह परात्पर गुरु डॉक्टरजी और सद्गुरु जाधवजी की कृपा है । सद्गुरु काकाजी परात्पर गुरु डॉक्टरजी के ही रूप हैं । उन्होंने मुझे जो-जो बताया वह सुनकर वैसे करने का प्रयास किया । वैसी कृति करने में भी मैं न्यून पडी; परंतु उन्हीं की कृपा और प्रीति इतनी है कि उन्होंने मेरी प्रगति करवा ली । गुरुदेवजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !
श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर के पति प्रशांत जुवेकर द्वारा बताई गई गुणविशेषताएं !
१. ‘ऑनलाइन’ सत्संग की सेवा उत्साह से स्वीकारना : यातायात बंदी आरंभ होने पर ‘ऑनलाइन’ सत्संग आरंभ करना है ।’, इस विषय में उत्तरदायी साधकों की श्रीमती क्षिप्रा से बात हुई । उस दृष्टि से कोई भी तैयारी न होते हुए अथवा उस विषय में विशेष पूर्वानुभव न होते हुए भी क्षिप्रा ने उत्साह से यह दायित्व स्वीकारा । ‘यह सेवा कैसे करनी है ?’, इस विषय में कोई जानकारी न होते हुए भी ‘गुरुदेवजी मुझसे सेवा करवाकर लेंगे’, यह उसकी दृढ श्रद्धा होने से उसके मन में कोई भी प्रश्न नहीं आया ।
२. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गौरवोद्गार : हमारे विवाह के पूर्व परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कहा था, ‘‘क्षिप्रा बहुमुखी (‘ऑल राउंडर’) है । वह कोई भी सेवा कर सकती है ।’’ उनके इस गौरवोद्गार की प्रतीति मैं इस समय ले रहा हूं ।