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१. प.पू. अण्णा करंदीकरजी से मार्गदर्शन मिलेगा, इसके प्रति प.पू. डॉक्टरजी का आश्वस्त होना
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‘डहाणू के प.पू. अण्णा करंदीकरजी आयुर्वेदिक चिकित्सालय में रोगियों को देखने के लिए प्रतिमास ३ दिन दादर आते थे । तब प.पू. डॉक्टरजी के एक मित्र ने उन्हें प.पू. अण्णा करंदीकरजी की जानकारी दी । प.पू. अण्णा से मिलने पर उनसे मार्गदर्शन मिलेगा, इसके प्रति प.पू. डॉ. आठवलेजी आश्वस्त थे ।’
२. प.पू. अण्णा करंदीकरजी द्वारा प.पू. डॉक्टरजी को सूक्ष्म का अध्ययन करने की शिक्षा मिलना
प.पू. डॉक्टरजी जब अध्यात्मशास्त्र विषय से संबंधित अपनी शंकाओं के निराकरण हेतु प.पू. अण्णाजी के पास जाने लगे, तब उन्होंने सूक्ष्म का ज्ञान मिलने के संदर्भ में स्वयं प्रयोग करने आरंभ किए । प.पू. अण्णा ने भी प.पू. डॉक्टरजी से ‘सूक्ष्म का समझ आना’ इस प्रायोगिक भाग का अध्ययन करवाया । उन्होंने प.पू. डॉक्टरजी को ‘सूक्ष्म का निरीक्षण कैसे करना चाहिए’, ईश्वर से प्रश्न पूछकर उत्तर कैसे प्राप्त करना चाहिए, ‘सूक्ष्मदेह से यात्रा कैसे करनी चाहिए’, ‘जहां आवश्यक हो, वहां कैसे प्रकट होना चाहिए’ और ‘सूक्ष्म से दूसरों को अनुभूति कैसे देनी चाहिए’, इन सभी बातों की शिक्षा दी ।
३. जिज्ञासा के कारण अन्य संतों से भी मार्गदर्शन लेना
प.पू. डॉक्टरजी में विद्यमान जिज्ञासा के कारण वे मलंगशाह बाबा, पू. काणे महाराज, हरि ॐ बागवेजी एवं प.पू. बडे जोशीबाबा जैसे अन्य संतों के पास भी मार्गदर्शन लेने जाते थे ।
– (पू.) वैद्य विनय भावे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२०.५.२०१६)