सूक्ष्म में जो घटित होता है उसका शास्त्र क्या है ?
इस विषय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की जिज्ञासा ईश्वर
द्वारा प्रश्नों के उत्तर देनेवाले साधकों के माध्यम से शांत करना !
मुझे और साधकों को अनुभूतियों का शास्त्र जानने की जिज्ञासा थी; क्योंकि उपलब्ध बुद्धिरचित ज्ञान से इनका शास्त्र नहीं ज्ञात होता था । तब, ईश्वर प्रत्येक इच्छा कैसे पूर्ण करता है’, इस बात की मुझे अनुभूति हुई ।
१. सूक्ष्म में घटनेवाली घटनाओं का ज्ञान मिलना
फरवरी २००२ से अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की अनुभूतियां हो रही थीं । ऐसी स्थिति में सूक्ष्म में घटनेवाली घटनाओं का ज्ञान कु. कविता राठिवडेकर, कु. सुषमा पेडणेकर, कु. कल्याणी गांगण, कु. (वर्तमान में सद्गुरु) अनुराधा वाडेकर और वर्ष २००६ से कु. रंजना गावस (वर्तमान में श्रीमती रंजना गडेकर) आदि को मिलने लगा और वे मुझे वह ज्ञान बताने लगीं ।
२. सूक्ष्म में घटनेवाली घटनाओं के विषय में शास्त्रीय जानकारी मिलना
सूक्ष्म में घटनेवाली घटनाओं की जानकारी होने पर भी उसका शास्त्र जानने की इच्छा मुझे होती थी । भगवान ने वर्ष २००३ से सूक्ष्म ज्ञान प्राप्तकर्ता श्रीमती (आज की सद्गुरु) अंजली गाडगीळ और श्री. राम होनप, वर्ष २००४ से कु. मधुरा भोसले तथा वर्ष २००५ से श्री. निषाद देशमुख के माध्यम से ज्ञान देना आरंभ किया है । मेरे लेखों में अनेक बार सूक्ष्म जगत संबंधी ज्ञान होता है । यह सब ज्ञान इन साधकों और संतों के कारण ही मिला है । इस ज्ञान के विषय में मैं देवता, उपर्युक्त साधक एवं संतों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।
३. चित्र से शास्त्र समझना
कोई विषय, विशेषतः आध्यात्मिक विषय समझते समय शब्द इतना ही चित्र का महत्त्व होता है । क्योंकि, पूरा विषय शब्दों से समझाना कभी-कभी असंभव होता है । चित्र के माध्यम से विषय को समझाने में सहायता होती है । एसएसआरएफ की श्रीमती योया वाले सूक्ष्म विषयों से संबंधित चित्र बनाती हैं । इससे अनेक क्लिष्ट विषय अब मैं समझ सकता हूं ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
१. दैनिक जीवन की प्रत्येक घटना के मूल में स्थित अध्यात्मशास्त्र समझने की लगन रखनेवाले परात्पर गुरु !
‘प्राणशक्ति (जीवनी शक्ति) बहुत अल्प होने पर भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी अपने आसपास होनेवाली प्रत्येक घटना का निरीक्षण करते रहते हैं और उनके विषय में तुरंत लिखकर रखते हैं । ऐसे प्रत्येक निरीक्षण के विषय में वे साधकों से बात कर उससे संबंधित छोटी-छोटी बातें समझ लेते हैं और उस विषय में सबको जानकारी हो, इसके लिए उससे संबंधित छोटी-छोटी चौखटें बनाकर मराठी दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में छापने के लिए तुरंत भेजते हैं ।
२. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के निरीक्षणों और प्रश्नों से एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक रहस्य विश्व के सामने उजागर हुआ !
कक्ष में कोई कीडा मर जाए, तो भी वे पूछते हैं, ‘वह कितने घंटे जीवित रहा, उसकी मृत्यु कब हुई ?’ कोई मक्खी भूमि पर शांत पडी हो और पश्चात उड जाए, तो भी उस विषय में प्रश्न करते हैं । इसी प्रकार, ‘कुछ कीडे तुरंत क्यों मरते हैं, कुछ छटपटाते क्यों हैं, पश्चात उड जाते हैं; कुछ कीडे मरे पडे होते हैं, परंतु कुछ समय पश्चात वे वहां क्यों नहीं दिखाई देते’, इन घटनाओं के मूल में शास्त्रीय नियम क्या है ? इस प्रकार के वे प्रश्न करते हैं । इस विषय में किसी को लग सकता है कि इसपर क्या प्रश्न करें । परंतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी के निरीक्षण से उत्पन्न प्रश्नों से एक बडा आध्यात्मिक रहस्य प्रगल्भ शास्त्र के रूप में विश्व के सामने उजागर होता है । वास्तव में इन घटनाओं से यह ज्ञात होता है कि प्रत्येक घटना के मूल में ईश्वर का ही कार्य-कारण विधान होता है ।
वे ऐसे अनेक प्रकार के निरीक्षणों के आधार पर प्रश्न लिखते हैं और इन प्रश्नों के उत्तर ‘सूक्ष्म जगत’ के ‘एक विद्वान’ से पूछने के लिए टंकण करते हैं । ये प्रश्न अगली पीढी के लिए भी ग्रंथ के रूप में संभालकर रखे जा सकें, इतने चैतन्यमय और सुंदर होते हैं ।
३. प.पू. डॉक्टरजी की ज्ञानार्जन की लगन के कारण ८ सहस्र ग्रंथ रचे जा सकते हैं, इतनी ज्ञान-सामग्री सनातन के पास उपलब्ध !
अब तक अनेक प्रकार के और अनेक विषयों पर पूछे गए प्रश्नों की सूची उनके पास होती है । प्रत्येक प्रश्न का उत्तर ‘सूक्ष्म जगत’ से मिलने के पश्चात वे उसपर प्रतिप्रश्न करते हैं । जब तक उस विषय का समाधानकारक उत्तर नहीं मिलता, तब तक वे प्रश्न करते रहते हैं । इनके स्थान पर कोई दूसरा होता, तो वह ऐसे प्रश्नों से कब का ऊब गया होता; परंतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी सारे समाज को छोटी-छोटी बातों के मूल में भी स्थित शास्त्र (विज्ञान) बताने लिए दिन-रात प्रयत्नशील रहते हैं । बीच-बीच में थकान के कारण उन्हें पलंग पर लेटना पडता है; उस समय भी उनके हाथ में कोई-न-कोई पत्र-पत्रिका/ग्रंथ रहती है । उसपर वे चिन्ह लगाते हैं और उस लेख से भी समाज को ज्ञान मिले, इसके लिए उसे टंकण के लिए देते हैं । कितनी उच्च कोटि की यह लगन है ! उनके इस अनवरत ज्ञानार्जन की लगन के कारण ही सनातन के पास इतना विशाल ज्ञानभंडार हो गया है कि उससे ८ सहस्र ग्रंथ रचे जा सकते हैं । ये ग्रंथ समाज के सामने आने में तीन-चार पीढियां लग जाएंगी ।
‘उनकी छत्रछाया में रहकर हम उनसे अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकें तथा उनके समान समाजसेवा करने की लगन और परिश्रम करने की प्रवृत्ति हममें भी उत्पन्न हो’, यह भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें !
– (पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळ (वर्तमान में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२.५.२०१४)
सनातन के अनेक ग्रंथों में प्रकाशित ३० प्रतिशत ज्ञान अब तक पृथ्वी पर कहीं भी उपलब्ध नहीं है ! |