मनुष्य की बर्बरता

‘हाथी मेरे साथी’ चलचित्र १९७० के दशक में बहुत चला था । परंतु, केरल में घटित हृदयद्रावक घटना के पश्‍चात ‘कौन मेरे साथी’ यह प्रश्‍न हाथियों के मन में आया होगा । केरल के मल्लपुरम् जनपद में एक भूखी गर्भवती हथिनी भोजन की खोज में वन से बाहर निकली । तब, कुछ क्रूर लोगों ने उसे अनानास खाने के लिए दिया, जो भीतर से पटाखों से भरा था । उसे खाने पर हथिनी के पेट में विस्फोट हुआ और वह लगभग १ सप्ताह तडपती रही और उसके गर्भ में स्थित बच्चे की २७ मई को दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो गई । केंद्रीय पर्यावरणमंत्री प्रकाश जावडेकर ने दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने की बात कही है । उन्होंने यह भी कहा कि पशुओं को पटाखे खिलाकर मारना, भारतीय संस्कृति नहीं है । जब यह हुआ, तब केरल के वनाधिकारी ने कहा कि २ महीने पहले भी संभवतः इसी प्रकार की घटना हुई थी । क्योंकि, अप्रैल में एक ऐसा हाथी मरा हुआ मिला था,जिसका जबडा पूर्णतः फटा था ।

पशुओं को यातना देनेवालों को दंड

     ‘पशुओं को यातना देना’, अमानवीयता है । ऐसे अमानवीय लोगों को कठोर दंड मिलना चाहिए । परंतु, प्रचलित न्यायव्यवस्था में ऐसे लोगों के लिए कठोर दंड का विधान नहीं है । वन्यजीव संरक्षण कानून के अनुसार वन्य पशुओं को यातना देने पर अधिकतम ७ वर्ष का कारावास और २५ सहस्र रुपए दंड करने का प्रावधान है । अपराध सिद्ध होने और अपराधियों को तुरंत दंड देने के आंकडे बहुत ही निराशाजनक हैं । वर्ष १९९८ में ‘हम साथ साथ हैं’ इस चलचित्र के चित्रीकरण के समय काले हिरन का शिकार करने के प्रकरण में अभिनेता सलमान खान को २० वर्ष के पश्‍चात दंड हुआ था; परंतु वे दो ही दिन में जमानत पर छूटकर कारागार से बाहर आ गए थे । शौक पूरा करने के लिए गूंगे पशुओं के प्राण लेनेवालों को दंड नहीं मिलता, अपितु पर्यावरण संवर्धन और वन्यजीव संरक्षण के विषय में केवल बातें होती हैं ।

     पुराणों में वर्णन मिलता है कि जीवों को अकारण यातना देनेवालों को किस प्रकार का कष्ट सहना पडता है । महाभारत की युद्धभूमि में भीष्म पितामह बाणों की शैया पर लेटे थे । उस समय वे भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं, ‘हे केशव, मेरी मृत्यु इस प्रकार होना, मेरे किस पापकर्म का दंड है ?’ तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें उनका पूर्वजन्म दिखाते हैं, जिसमें वे राजकुमार थे । वे अपने घोडे पर बैठे हुए गिरगिट को बाण से गोद कर बेर के पेड पर फेंक देते हैं । पश्‍चात, वह घायल गिरगिट मर जाता है । उस कर्म के फलस्वरूप भीष्म की इस जन्म में बाणों की शैया पर मृत्यु होती है । मनुस्मृति में भी लिखा है कि जो व्यक्ति अपने सुख के लिए निरपराध प्राणियों की हत्या करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी सुख नहीं मिलता ।

जीवदया और भारतीय संस्कृति

भारतीय संस्कृति ने सदैव ही जीवदया की शिक्षा दी है । जीवदया के विषय में धार्मिक ग्रंथों में न केवल सैद्धांतिक जानकारी है, अपितु त्योहार-उत्सव, व्रत के माध्यम से भी प्राणियों में ईश्‍वर देखना और उन्हें पूजना सिखाया गया है । परंतु, आधुनिकता के नाम पर आजकल मानव की धर्मश्रद्धा विरल होती जा रही है । इसीलिए, शौक पूरा करने के लिए अथवा अमानवीय इच्छा की पूर्ति के लिए गूंगे प्राणियों की हत्या करने की घटनाएं बहुत बढ गई हैं । पहले इसपर प्रतिबंध था;तब भी मनोरंजन के लिए सर्कस में प्राणियों का उपयोग होता ही था । आज भी प्राणिसंग्रहालयों में प्राणियों को बंद कर उन्हें अपने प्राकृतिक जीवनयापन के अधिकार से वंचित किया जा रहा है । भारत में प्रतिवर्ष ५० लाख मीट्रिक टन से अधिक मांस बेचा जाता है । भारत भैंस और बकरी के मांस का बडा उत्पादक देश माना जाता है । आज भी अनेक राज्यों में प्रतिबंध होने पर भी तथा देश के संविधान में मार्गदर्शक तत्त्व के अनुसार गोहत्या पर प्रतिबंध होने पर भी गोहत्या खुलकर की जाती है । गुलाबी क्रांति के नाम पर मांसाहार को बढावा दिया जा रहा है । आज भी, ‘हलाल सर्टिफिकेट’ के नाम पर प्राणियों को रेत-रेत कर काटा जाता है । इस्लाम के नाम पर ‘हलाल सर्टिफिकेट’ के माध्यम से एक समांतर अर्थव्यवस्था खडी की जा रही है । परंतु, इस विषय में कोई प्राणीप्रेमी आवाज उठाते हुए नहीं दिखाई देता । कुत्ता पालना और उसे गाडी में बिठाकर घुमाना आज प्रतिष्ठा बन गया है, तो गोपालन पिछडेपन का लक्षण माना जाता है । कुत्तों के प्रति दया प्राणिप्रेम माना जाता है और गोप्रेम को अत्याचार माना जाता है । यह मनमाना प्राणिप्रेम अमानवीय है । केरल में पटाखे से घायल हथिनी ने अपने साथ हुए क्रूर व्यवहार के पश्‍चात भी गांव पर आक्रमण नहीं किया, अपितु अंगदाह शांत करने के लिए नदी में पडी रही । जब प्राणियों को लगता है मेरे प्राण संकट में हैं, तभी वे दूसरों पर आक्रमण करते हैं, अन्यथा प्राकृतिक नियमानुसार अपना जीवन जीते रहते हैं । कहां प्राणियों की यह मानवता, तो कहां पटाखों से भरा पदार्थ खिलाकर उन्हें क्रूर पद्धति से मारनेवाले मानवों की पशुता !