कोरोना संकट के विरुद्ध संघर्ष करते समय सामने आई वास्तविकता बतानेवाले एक डॉक्टर का आत्मकथन !

     देश के साथ मुंबई में कोरोना का संकट बढ रहा है; जिसके कारण मुंबई के स्वास्थ्यतंत्र पर तनाव बढ गया है । अप्रैल महीने में मुंबई के चिकित्सालयों में काम करनेवाले चिकित्साकर्मियों को कोरोना का संक्रमण न हो; इसके लिए आधुनिक वैद्यों के लिए परिधान करने हेतु अनिवार्य व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण सहित (पीपीई किट का) अन्य सुविधाओं का अभाव था, साथ ही पीपीई किट परिधान करने पर आधुनिक वैद्य और परिचारिकाओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पडता है । यह समय कठिन होने से उन्हें अपनी सभी समस्याएं बताना भी संभव नहीं था । इस समय एक चिकित्सालय में काम करनेवाले एक डॉक्टर का आत्मकथन उन्हीं के शब्दों में यहां दे रहे हैं । यह उदाहरण प्रातिनिधिक है और वास्तविकता तो इससे कहीं गंभीर थी । आज भी इस स्थिति में बहुत-कुछ अंतर नहीं आया है ।

१. कोरोना के कारण न भूतो न भविष्यति, चिकित्सकीय आपातकाल

     मैं मुंबई के एक चिकित्सालय में कनिष्ठ निवासी डॉक्टर के रूप में कार्यरत हूं । मेरे कई सहयोगी केईएम, कस्तूरबा चिकित्सालय, सेवेन हिल्स चिकित्सालय, नायर चिकित्सालय आदि में कोविड रोगियों की चिकित्सा हेतु कर्तव्य का निर्वहन (ड्यूटी) कर रहे हैं । मैं लगभग एक महीने तक इस कोविड ड्युटी पर था । मुझे हाल ही में ब्रेक (तात्कालिक छुट्टी) मिली है । हम दिन में ६ से ८ घंटे और रात में १२ घंटे की बारियों में काम करते हैं । हम इस न भूतो न भविष्यति चिकित्सकीय आपातकाल में दिन-रात चिकित्सा सेवाएं दे रहे हैं ।

२. पीपीई किट परिधान करने के पश्‍चात आधुनिक वैद्य और
परिचारिकाओं को आनेवाली अनेक कठिन शारीरिक एवं मानसिक समस्याएं

     पिछले कुछ दिनों से हम एक भयानक शारीरिक और मानसिक चिंता से गुजर रहे हैं । विशेषतः ड्युटी पर होते समय पीपीई किट परिधान करने के पश्‍चात इस कठिन समय की गंभीरता अधिकाधिक प्रतीत होने लगती है । पीपीई किट परिधान करना (Donning) और उसे उतारने (Doffing) के कुछ नियम हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है । संक्रमण की संभावना अल्प करने में वह महत्त्वपूर्ण है । पीपीई किट परिधान करने के पश्‍चात ६-७ घंटे तक खाना तो दूर; पानी भी नहीं पी सकते । शिफ्ट में (काम के समय में) मूत्रविसर्जन करना भी संभव नहीं होता । हम सभी लगभग २४-३० आयुसमूह के हैं; परंतु वयस्क अथवा मधुमेह आदि बीमारी से ग्रस्त कर्मचारी और नर्सिंग स्टाफ को होनेवाले कष्ट की कल्पना भी नहीं की जा सकती । वातानुकूलित स्थिति में कोरोना का संक्रमण होने की अधिक संभावना होने से चिकित्सालयों में वातानुकूलन यंत्र बंद रखे जा रहे हैं । मुंबई की गर्मी प्रतिदिन बढने के कारण तथा सिर से लेकर पैर के नाखून तक संपूर्णरूप से ढंके इस पीपीई किट में कई बार पसीने का स्नान हो जाता है । रात के १२ घंटे की ड्युटी में यह कष्ट असहनीय होता है; परंतु संक्रमण की संभावना और प्रत्येक शिफ्ट में केवल एक ही पीपीई किट दिए जाने से और पहले ही उसकी बहुत किल्लत होने से हमारे सामने कोई विकल्प भी नहीं होता ।

३. कोरोना-प्रतिबंधक मास्क लगाने से सहन करना आवश्यक असहनीय कष्ट

     चेहरे पर एनएन ९५ मास्क, उस पर थ्री प्ले सर्जिकल मास्क और उस पर चेहरा ढंकने के लिए प्लास्टिक कवर के कारण ठीक से सांस भी नहीं ली जा सकती और बहुत घुटन होती है । उसके कारण थकान, सिरदर्द और अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं । सांस छोडते समय गॉगल पर कुहरा जमा हो जाता है, जिससे सामने का भाग भी धुंधला दिखाई देता है । इसी स्थिति में निरंतर सतर्क रहकर आनेवाले प्रत्येक रोगी को संभावित संकट के प्रति अवगत कराकर और उसके लिए दी नियमावली के अनुसार चिकित्सा कर तुरंत निर्णय लेने पडते हैं । हम प्रतिदिन २५० रोगियों की पडताल करते हैं । कई रोगी केवल भय के कारण हमारे पास आते हैं । उन्हें यह सब समझाकर बताना बहुत कठिन होता है; क्योंकि हमारी आवाज उन तक नहीं पहुंचती । केवल चिल्लाने पर ही उन तक हमारी आवाज पहुंचती है । चिल्लाने के कारण गला सूख जाता है और ऊपर से पानी नहीं पी सकते; इसलिए मुंह दबाकर मुक्के की मार हमें असहाय बना देती है ।

४. चिकित्सा करनेवाले आधुनिक वैद्य ही कोरोना संक्रमित !

     महाराष्ट्र के अन्य चिकित्सालयों में काम करनेवाले निवासी चिकित्सकीय मित्र मेरे संपर्क में रहते हैं । हम सभी एक जैसी ही स्थिति से गुजर रहे हैं । हमारी अनेक समस्याएं हैं; परंतु यह समय इन समस्याओं को बताने का नहीं है; इसलिए वर्तमान स्थिति में हम प्रतिदिन जीवन-मृत्यु की लडाई लड रहे हैं । मेरे साथ काम करनेवाले मेरे कुछ मित्रों को कोरोना संक्रमण हुआ है, तो अन्य अनेक चिकित्सालयों में संक्रमित डॉक्टर्स और चिकित्साकर्मियों की संख्या बढ रही है ।

५. शासन और प्रशासन को आधुनिक वैद्य, परिचारिकाओं और
स्वच्छताकर्मियों की समस्याओं का तुरंत समाधान निकालना अपेक्षित !

     एक एमबीबीएस डॉक्टर बनने में लगभग ६ वर्ष लगते हैं । स्पेशलिटी, सुपर स्पेशलिटी (विशेषज्ञ) डॉक्टर तैयार होने में और भी अधिक समय लग जाता है । विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार प्रति १ सहस्र रोगियों के लिए एक डॉक्टर होता है; परंतु हमारे यहां यह स्थिति १० सहस्र ९२६ रोगियों के लिए एक एमबीबीएस डॉक्टर, यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है ! इसके कारण उनके स्वास्थ्य की चिंता कर, साथ ही उनकी समस्याएं जानकर उनका निराकरण होना चाहिए । शासन, प्रशासन और चिकित्सालय प्रशासनों को अधिक ध्यान देकर काम करनेवाले डॉक्टर्स, प्रशिक्षण पर कार्यरत (ट्रेनी) डॉक्टर्स (इंटर्न्स) परिचारिकाएं और स्वच्छताकर्मियों की ओर विशेष ध्यान देकर अधिक तत्परता के साथ उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए; क्योंकि केवल आज के संकट से मुक्त होना ही नहीं, अपितु सरकार को भविष्य के भारत की चिकित्सकीय व्यवस्था को बलशाली रखने का अग्नि-परीक्षा भी पार करनी है ।

६. मुंबई में कोरोना का संकट कब समाप्त होगा, इसकी निश्चिति नहीं है !

     मैं मूलतः बुलढाणा जनपद के लोणार के पास चिखला गांव का निवासी हूं । मैं गांव का पहला ही एमबीबीएस डॉक्टर हूं ! चिकित्सकीय और शैक्षिक पृष्ठभूमि विरहित मेरे अभिभावकों को इसकी विशेष जानकारी नहीं है; परंतु २४ घंटे और ७ दिन तक चलनेवाले अर्थहीन समाचार और अतिरंजित बातों के कारण केवल मेरे ही नहीं, अपितु मेरे साथ काम करनेवाले सभी के अभिभावक चिंता में हैं । फोन पर (चलितभाष) उनके साथ किए जानेवाले संवाद के समय उनकी कंपित ध्वनि से मुझे उनकी चिंता समझ में आती है । हम उनके साथ यथासंभव वीडियो कॉल के माध्यम से उनसे संपर्क करने का प्रयास करते हैं । इस ड्युटी से पहले मैं ग्रामीण क्षेत्र में नियुक्त था । मेरी कुछ छुट्टियां शेष होने से घर जाने की तैयारी में था; क्योंकि दीपावली पर घर जाना नहीं हुआ था; परंतु इस आपातकालीन ड्युटी के कारण वह संभव नहीं हुआ । मुंबई में कोरोना का हुआ संक्रमण और मुंबई की औसतन स्थिति को ध्यान में लेते हुए यह संकट मुंबई से कब समाप्त होगा, इसकी आश्‍वस्तता कोई नहीं दे सकता ।

७. प्राण बचानेवाला वेंटिलेटर – एक सुंदर यंत्र !

     टीआरपी की होड में भटके प्रसारमाध्यम, अनियंत्रित सामाजिक माध्यम और आमीर खान – अक्षय कुमार इत्यादि फिल्मी कलाकारों के कारण जनमानस में डॉक्टर्स अथवा चिकित्सातंत्र के प्रति बहुत बडी अवधारणाएं, अविश्‍वास और भ्रामक कल्पनाएं बनी हुई हैं । उसके कारण हम वेंटिलेटर (तत्कालीन श्‍वसनयंत्र) को सदैव बदनाम करते आए हैं । मूलतः इस विश्‍व में रोगी को मृत्युशय्या से वापस लानेवाले इस वेंटिलेटर की अपेक्षा अधिक सुंदर यंत्र का अस्तित्व नहीं है और हो भी नहीं सकता । अमेरिका जैसे देश को भी उसी की किल्लत होने के कारण अब बडे-बडे वाहन प्रतिष्ठान भी वेंटिलेटर बनाने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं ।

८. कोरोना संकट के विरुद्ध आशावादी रहकर संघर्ष करेंगे !

     रोगी स्वस्थ होने के लिए डॉक्टरों की कुशलता से अधिक डॉक्टर और रोगी के मध्य की विश्‍वसनीयता महत्त्वपूर्ण होती है । इस कोरोना के कारण उत्पन्न न भूतो न भविष्यति चिकित्सकीय आपातकाल में अपने प्राणों की चिंता न करते हुए भी संघर्ष कर रहे डॉक्टर्स, परिचारिकाएं ऐर कर्मचारियों को देखकर उनके प्रति आदर, साथ ही चिकित्सातंत्र में हो रही अल्प विश्‍वसनीयता और संवाद पूर्ववत होकर भारत की चिकित्सा व्यवस्था में उसका सकारात्मक रूपांतरण होगा, यह आशा करेंगे । न्यूनतम डॉक्टर्स और चिकित्साकर्मियों पर हो रहे आक्रमण तो घटेंगे, यह आशा करना निश्‍चित रूप से उचित है  ।

     शीघ्र ही मेरी छुट्टी समाप्त होने पर मैं पुनः काम पर लौटूंगा; परंतु आप सभी को घर पर रहकर ही सरकार और चिकित्सा शास्त्र द्वारा निर्देशित नियमों का कठोरता से पालन कर इस संक्रमण को रोकने के प्रयास में सहायता देने हेतु प्रतिबद्ध रहना चाहिए ।

आपका विनम्र,

– एक डॉक्टर, मुंबई, महाराष्ट्र.