तापमान एवं कोरोना विषाणु के विषय में
विविध देशों के शास्त्रज्ञों द्वारा किया हुआ व्यापक अध्ययन !
यह लेख कोई चिकित्सकीय सलाह नहीं है । यह लेख इन दिनों में प्रकाशित अनेक ब्यौरे और अध्ययन पर आधारित है । जहां कोविड-१९ का प्रकोप हुआ है, पूरे विश्व के ऐसे ५०० स्थानों के वातावरण की तुलना करने पर निम्नांकित बातें ध्यान में आई हैं – विषाणु संक्रमण का संबंध तापमान, हवा की गति और तुलनात्मक नमी के साथ है । अध्ययन से यह ध्यान में आया है कि जहां तापमान अधिक है, वहां कोविड-१९ विषाणु फैलने की मात्रा अल्प है; परंतु संपूर्ण विश्व में इस विषाणु का प्रकोप होने का बदलाव केवल तापमान पर ही आधारित है, ऐसा नहीं है । दूसरी ओर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अनुसार कोविड-१९ विषाणु के प्रकोप का तापमान के साथ कोई संबंध नहीं है ।
१. गर्म वातावरण के कारण कोरोना विषाणु के नष्ट होने की प्रक्रिया
कोरोना विषाणु के आस-पास किसी आवरण की भांति तैलीय आवरण होता है, जिसे लिपिड बाईलेयर कहा जाता है । इस आवरण के बाहर प्रोटीन होता है, जो कांटे के मुकुट की भांति होता है । अतः उसे क्राऊन (मुकुट) शब्द के आधार पर कोरोना नाम दिया गया है । स्वयं के आस-पास आवरणवाले विषाणुओं पर हाल ही में किए शोध से यह ध्यान में आया है कि बिना आवरणवाले विषाणुओं की अपेक्षा आवरणवाले विषाणु पर गर्मी का अधिक परिणाम होता है । ठंडे तापमान में इस विषाणु के आस-पास स्थित यह तैलीय आवरण रबर की भांति गाढा हो जाता है । इस कारण इस विषाणु को संरक्षण मिलकर वह अधिक समय तक जीवित रहता है । इसके विपरीत गर्मी के कारण तैलीय आवरण पिघल जाता है और यह विषाणु नष्ट होता है ।
२. गरम एवं नमी के वातावरण में कोविड-१९ विषाणु अल्प मात्रा में फैलता है ! – एमआईटी, अमेरिका
मैसेच्युसैट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के अनुसार यह विषाणु गरम और नमी के वातावरण में अल्प मात्रा में फैलता है । अतः जिन एशियाई देशों में मानसून है, वहां विषाणुओं का संक्रमण अल्प मात्रा में हो सकता है । २८ मार्च तक ३ से १७ अंश सेल्सियस तापमानवाले क्षेत्रों में कोरोना विषाणु का ९० प्रतिशत संक्रमण हुआ ।
३. इरान व पूर्व यूरोप में संक्रमण की स्थिति
मध्य पूर्व में स्थित इरान में लगभग ९० प्रतिशत कोरोना के रोगी मिले; क्योंकि वहां ठंडे मौसम की स्थिति उत्तर के देशों की भांति होती है; परंतु उसी समय चीन के साथ व्यापार और पर्यटन की दृष्टि से उनका संबंध है । पूर्व यूरोपीयन देश इस्टोनिया, स्लोवेनिया या आईसलैंड की अपेक्षा दक्षिण एशियाई देश थाइलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों में १०० गुना जनसंख्या होते हुए भी वहां विषाणु संक्रमित रोगियों की संख्या न्यून है ।
४. कोरोना से तापमान के साथ निश्चित संबंध !
४ से १० अंश सेल्सियस तापमान में कोरोना विषाणु अधिक समय तक जीवित रह सकता है । इसका संक्रमण होने के लिए ८.७२ अंश सेल्सियस तापमान अधिक अनुकूल है । २३ से २६ अंश सेल्सियस तापमान में इस विषाणु का संक्रमण सहजता से नहीं होता और ३० अंश सेल्सियस तापमान पर यह विषाणु निष्प्रभावी हो जाता है । भारत व अन्य कुछ देशों में जहां कडी गर्मी होती है और तापमान ३५ अंश सेल्सियस होता है, वहां विषाणु का संक्रमण रोकने में सफलता मिल सकती है ।
५. कोरोना के संक्रमण की वृद्धि के पीछे तापमान ही एक महत्त्वपूर्ण घटक नहीं है !
विषाणु का प्रसार रोकने हेतु प्रतिबंधजन्य उपाय के रूप में तापमान ही एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटक है, यह हम स्पष्टता से नहीं कह सकते । अल्प तापमान और अल्प नमीवाले देशों में इस विषाणु का संक्रमण होने के लिए अनुकूल वातावरण बनता है और इसके विपरीत जिन देशों में गरम वातावरण है, वहां इस विषाणु का संक्रमण रोकने का अवसर अधिक है ।
६. दक्षिण-पूर्व एशिया में संक्रमण का अनुपात तुलनात्मक दृष्टि से अल्प होना !
६ अ. हांगकांग विश्वविद्यालय के निष्कर्ष : हांगकांग विश्वविद्यालय में कार्यरत २ वैज्ञानिक डॉ. मलिक पिरीस एवं डॉ. सेेटो विंग हांग ने यह प्रमाणित किया है कि कोरोना विषाणु उच्च तापमान और अधिक नमी के वातावरण की अपेक्षा अल्प तापमान और अल्प तुलनात्मक नमी के वातावरण में अधिक समय तक टिका रहता है । अतः गरम और अधिक नमीवाले दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में सार्स विषाणु का संक्रमण नहीं हुआ ।
६ आ. चीन के वुहान का अध्ययनपूर्ण शोध तथा उसकी मर्यादा ! : चीन के वैज्ञानिकों ने कोविड-१९ का प्रकोप और मौसम की स्थिति, इन दोनों में क्या संबंध है, इस पर एक नवीन अध्ययन किया । उन्होंने वुहान में हुई २ सहस्र ३०० रोगियों की मृत्यु का विश्लेषण करते समय कौन से दिन कितने लोगों की मृत्यु हुई और उस दिन के वातावरण में नमी, तापमान और प्रदूषण का स्तर कितना था, इसपर अध्ययन किया । इस अध्ययनपूर्ण शोध में यह दिखाई दिया कि जिस दिन नमी और तापमान अधिक था, उस दिन मृत्युदर अल्प होती थी । जिन दिनों में अधिकतम और न्यूनतम तापमानों में अधिक अंतर था, उन दिनों में मृत्यु की संख्या अधिक थी; परंतु यह सब अध्ययन संगणकीय आरेखन के आधार पर है ।
७. फिलाडेल्फिया (अमेरिका) के प्राध्यापक ने निकाले महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष !
फिलाडेल्फिया में छोटे बच्चों के चिकित्सालय सेंट ख्रिस्तोफर्स के माइक्रोबायोलॉजी (सूक्ष्मजीवशास्त्र) और वाइरोलॉजी (विषाणुशास्त्र) विषयों के प्राध्यापक डॉ. एलन इवेंजेलिस्टा को भी उक्त शोध की भांति ही परिणाम मिले हैं । उनके द्वारा किए शोध के अनुसार जैसे-जैसे हवा में नमी बढती जाती है, वैसे-वैसे मुंह के द्वारा हवा मैं फैलनेवाले पानी की बूंद का आकार बढता है और उसके साथ होनेवाले विषाणु हवा से उतरकर नीचे बैठते हैं । इसके विपरीत जब हवा में नमी अल्प होती है, तब इस विषाणुयुक्त पानी की तुरंत भाप बन जाती है और उसमें रहनेवाले विषाणु हवा में अधिक समय टिके रहकर अधिक दूरी तक फैल जाते हैं ।
८. उटाह विश्वविद्यालय (अमेरिका) के अध्ययनकर्ताओं के निष्कर्ष !
उटाह विश्वविद्यालय के भौतिक शास्त्र के अध्ययनकर्ता सईज सफरियान और माईकल वेरशिनीन, ये दोनों तापमान एवं नमी में आनेवाले बदलावों के कारण विषाणु के बाहरी कवच पर क्या परिणाम होता है, इसपर अध्ययन कर रहे हैं । उनके अनुसार, कोरोना विषाणु स्वयं कुछ नहीं कर सकते । उनके बाहरी कवच और अंदर के जनुकों के अनुसार उनका परिणाम होता है । जब ये विषाणु किसी दूसरी कोशिका में प्रवेश करते हैं, तब उस कोशिका के द्रव्यों का उपयोग कर वे अपनी संख्या बढाते हैं । जब हवा ठंडी और सूखी होती है, तब छींकते समय हमारे मुंह के द्वारा बाहर निकलनेवाली पानी की बूंदें हवा में तैरती रहती हैं; परंतु जब हवा नम और गरम होती है, तब मुंह के द्वारा फैलनेवाली पानी की बूंदें तुरंत भूमि पर गिर जाती हैं और उससे उनका संक्रमण अल्प मात्रा में होता है ।
९. विषाणु का फैलाव रोकने में वातावरण की भूमिका महत्त्वपूर्ण !
– डॉ. मोहम्मद सजदी, मेरीलैंड विश्वविद्यालय, अमेरिका
मेरीलैंड विश्वविद्यालय के चिकित्सा शास्त्र के प्राध्यापक डॉ. मोहम्मद सजदी कहते हैं कि जिन क्षेत्रों में विषाणु का संक्रमण अधिक समय तक टिका रहा, उन क्षेत्रों के तापमान में बहुत समानता थी । इन सभी क्षेत्रों में तापमान ५ से ११ अंश सेल्सियस था ।
१०. अन्य विशेषज्ञों के निष्कर्ष !
पेन्सिलवेनिया स्टेट विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इनफेक्शियस डिसीज डाइनेमिक्स की निदेशिका एलिजाबेथ मैकग्रो ने टाईम मासिक में कहा है, विषाणु युक्त पानी की बूंदें नमीवाली हवा में अधिक समय तक तैरती हुई नहीं रह सकतीं । गरम तापमान में वे शीघ्र नष्ट हो जाती हैं ।
हांगकांग विश्वविद्यालय के रोगनिदानशास्त्र (पैथोलॉजी) विभाग के प्राध्यापक जॉन निकोल्स ने कहा है, कोरोना विषाणु को नष्ट होने के लिए वातावरण महत्त्वपूर्ण घटक है । प्रखर सूर्यप्र्रकाश के कारण विषाणु के विकास की गति आधी हो जाती है । यह अवधि लगभग ढाई मिनट की है ।
इसके विपरीत अंधेरे में ये विषाणु १३ से २० मिनट टिके रहते हैं । इन विषाणुओं को मारने में सूर्यप्रकाश का अच्छा उपयोग होता है । ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिण वृत्तार्ध में आजकल गर्मी का मौसम होने से वहां अधिक मात्रा में सूर्यप्रकाश है । उसके कारण विषाणु का संक्रमण अल्प मात्रा में है, ऐसा मुझे लगता है ।
ग्लोबल वाईसर नेटवर्क का अनुमान है कि मौसम के अनुसार कोविड-१९ के संक्रमण के संदर्भ में बताया जा सकता है ! उनके निरीक्षण के अनुसार ५ से ११ अंश सेल्सियस तापमान और ४७ से ७९ प्रतिशत नमीवाले ३० से ५० अक्षांश में कोविड-१९ का अधिक प्रकोप है । तापमान १२ अंश सेल्सियस तथा उससे अधिक हो, तो इस विषाणु के लिए हवा में फैलना कठिन होता है ।
११. भारतीय कोविड-१९ का फैलाव प्रखर सूर्यकिरणों पर सौंपें !
हमारे देश की गर्मी का मौसम इस विषाणु को मार सकेगा, यह आजकल सर्वत्र चर्चा का विषय बना हुआ है । आज भी हमें यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है । इसलिए भारत की कडी गर्मी का इस विषाणु पर परिणाम होगा, यह अनुमान लगाया जा सकता है । सर्वत्र उत्पन्न भय के वातावरण में यह आशा की एक किरण है; परंतु हमें यह ध्यान में लेना होगा कि ये सभी अनुमान लगाने के लिए हमारे पास ठोस प्रमाण नहीं हैं । अतः हम यातायात बंदी (लॉकडाउन) और सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) का पालन कर अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की सतर्कता बरतेंगे और शेष सब उन प्रखर सूर्यकिरणों पर सौंपेंगे !
– श्री. अनिल धीर, राष्ट्रीय सचिव, भारत रक्षा मंच, ओडिशा.