पितृपक्ष में श्राद्ध !

हिन्दू धर्मशास्त्र में बताए गए ईश्वरप्राप्ति के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है – ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण, ये चार ऋण चुकाना’ । इनमें से पितृऋण चुकाने के लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है ।

श्राद्धकर्म में देवताओं को नैवेद्य दिखाना

श्राद्ध-जैसे अशुभ कर्म कनिष्ठ प्रकार के पृथ्वी और आप तत्त्वों से संबंधित होते हैं । इसलिए, इसमें नैवेद्य दिखाने की क्रिया अधिकांशतः भूमि (पृथ्वीतत्त्व) से संबंधित होती है । पितृकर्म (श्राद्ध) में कनिष्ठ देवताओं की तरंगें भूमि की ओर गमन करती हैं, इसलिए उस दिशा को मुख्य मानकर यह क्रिया की जाती है ।