तिलक धारण करने के संदर्भ में आचार

स्नान के उपरान्त अपने-अपने सम्प्रदाय के अनुसार मस्तक पर तिलक अथवा मुद्रा लगाएं, उदा. वैष्णवपंथी मस्तक पर खडा तिलक, जबकि शैवपंथी आडी रेखाएं अर्थात ‘त्रिपुण्ड्र’ लगाते हैं ।

शाकाहार एवं सात्त्विक आहार का सेवन करें !

मांसाहार तथा तमोगुणी आहार का सेवन न करें ! : अधिक तले एवं मसालेदार पदार्थ, बासी पदार्थ तथा पोषक-मूल्य रहित एवं पचनेमें भारी पिज्जा, चिप्स, वेफर्स जैसे ‘फास्ट फूड’ का सेवन न करें ।

नामजप के माध्यम से कर्म ‘अकर्म कर्म’ बनना

नामजप के माध्यम से कर्म ‘अकर्म कर्म’ बनने से यथार्थ आचार-पालन कर पाना : दैनिक जीवन का प्रत्येक कृत्य नामजप सहित करनसे वह कर्म ‘अकर्म कर्म’ बनता है । प्रत्येक कृत्य ‘अकर्म कर्म’ हो, तो उसका अच्छा-बुरा कोई भी फल नहीं मिलता । इस प्रकार यथार्थ आचारपालन सम्भव होता है और ईश्वर से एकरूप हो पाते हैं ।

अलंकार धारण करने का महत्त्व व लाभ

सौभाग्यालंकारों के माध्यम से स्त्री को तेजदायी तरंगों का स्पर्श होता है । उन्हें पतिव्रत-धर्म का निरंतर भान रहे, इसके लिए यह व्यवस्था की गई ।

साधना अच्छी होने के लिए आयुर्वेद के अनुसार अध्ययन करने की आवश्यकता

ईश्वरप्राप्ति करने के लिए प्रत्येक साधक को ‘शरीर होगा, तब ही धर्म अथवा साधना करना संभव होता है’, यह सूत्र ध्यान में रखना चाहिए । साधना के लिए शरीर निरोगी चाहिए । इसलिए आयुर्वेदानुसार आचरण करना चाहिए ।

श्री दत्त परिवार एवं मूर्तिविज्ञान

दत्त अर्थात निर्गुण की अनुभूति दिया हुआ । दत्त वे हैं जिन्हें ‘वह स्वयं ब्रह्म ही है, मुक्त है, आत्मा है’, यह अनुभूति है । जन्म से ही दत्त को निर्गुण की अनुभूति थी, जबकि साधकों को ऐसी अनुभूति होने के लिए अनेक जन्म साधना करनी पडती है ।

विजयादशमी के दिन करने योग्य कृत्य एवं उसका अध्यात्मशास्त्र !

दशहरे को सरस्वती तत्त्व के क्रियात्मक पूजन से जीव के व्यक्त भाव का अव्यक्त भाव में रूपांतर होकर जीवको स्थिरता में प्रवेश होने में सहायता मिलती है ।

श्री गणेश चतुर्थी

सभी भाई यदि एक साथ रहते हों, अर्थात सभी का एकत्रित द्रव्यकोष (खजाना) एवं चूल्हा हो, तो मिलकर एक ही मूर्ति का पूजन करना उचित है । यदि सबके द्रव्यकोष और चूल्हे किसी कारणवश भिन्न-भिन्न हों, तो उन्हें अपने-अपने घरों में स्वतंत्र रूप से गणेशव्रत रखना चाहिए ।