जलने पर आयुर्वेद में प्राथमिक उपचार

‘किसी भी कारणवश जलने पर जले हुए भाग पर तुरंत ही घी लगाएं । दाह उसी क्षण थम जाता है । वैद्य लोग पैर में होनेवाले गोखरू (फुट कॉर्न) जलाकर निकालने के लिए ‘अग्निकर्म’ करते हैं ।

पीलिया पर आयुर्वेद के उपचार

गन्ने का रस, आंवले का रस अथवा भूरा कद्दू (पेठा) के रस के साथ अमलतास की फलियों का गूदा लें ।

तीखा न खाने पर भी कुछ लोगों को पित्त का कष्ट क्यों होता है ?

‘हमारे जठर में पाचक स्राव का रिसाव होता रहता है । इस पाचक स्राव के अन्ननलिका में आने पर, पित्त का कष्ट होता है । खट्टा, नमकीन, तीखा और तैलीय पदार्थ खाने से पित्त बढता है; परंतु ऐसा कुछ न खाते हुए भी कुछ लोगों को गले में और छाती में जलन होती है, अर्थात पित्त का कष्ट होता है ।

साधना अच्छी होने के लिए आयुर्वेद के अनुसार अध्ययन करने की आवश्यकता

ईश्वरप्राप्ति करने के लिए प्रत्येक साधक को ‘शरीर होगा, तब ही धर्म अथवा साधना करना संभव होता है’, यह सूत्र ध्यान में रखना चाहिए । साधना के लिए शरीर निरोगी चाहिए । इसलिए आयुर्वेदानुसार आचरण करना चाहिए ।

चालीस के उपरांत घुटनों में वेदना न हो, इसलिए घुटनों पर नियमित तेल लगाएं !

‘सामान्य तौर पर घुटनों के दर्द पर उपचार स्वरूप तेल लगाएं कहते ही अधिकांश लोग केवल घुटनों के सामने ही तेल लगाते हैं, अर्थात घुटने के ‘नीकैप’ को ही तेल लगाते हैं । घुटनों को तेल लगाते समय उसे घुटनों के सर्व ओर लगाएं ।’

कोष्ठबद्धता

‘कोष्ठबद्धताके लिए गंधर्व हरितकी वटी’ औषधि की २ से ४ गोलियां रात सोने से पूर्व गुनगुने पानी के साथ लें ।