दहकता बंगाल !

बंगाल चुनावों के परिणामों के उपरांत वहां अराजक फैला हुआ है । तृणमूल कांग्रेस को राज्य में सत्ता स्थापित करने में भले ही सफलता मिली हो; परंतु दल की प्रमुख ममता बैनर्जी (बानो) नंदीग्राम से चुनाव हार गई हैं । बानो के दल के गुंडे कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा के न्यूनतम ९ कार्यकताओं की हत्या की जाने की घटनाएं सामने आई हैं । वहां की हिन्दू महिलाओं पर अत्याचार होने की घटनाओं पर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा प्रकाश डाला जा रहा है । इन नेताओं ने बंगाल के मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर आक्रमण करने के समाचार भी दिए हैं । दूसरी ओर कथित धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटनेवाले प्रसारमाध्यम कह रहे हैं कि ‘इन हत्याओं के पीछे राजनीती है तथा इन घटनाओं को धार्मिक रंग देने का प्रयास किया जा रहा है ।’ तृणमूल कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं की भी हत्याओं का समाचार है, ऐसा भी ये प्रसारमाध्यम बिना भूले बता कर रहे हैं ।

बंगाल की हिंसाधार्मिक !

२ मई कोचुनाव परिणामों की घोषणा होने केउपरांत प्रारंभ ये हत्यासत्र रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं ।य यहां यह ध्यान में लेना होगा कि इसके पीछे राजनीति के साथ धार्मिक रंग दिया जाना भी स्पष्ट है । मुसलमानों का तुष्टीकरण करते हुए और राज्य में ‘एन.आर.सी’ कदापि कार्यान्वित नहीं किया जाएगा’, यह राष्ट्रद्रोही आश्वासन देते हुए बंगाल में स्थित बांग्लादेशी घुसपैठियों को और तृणमूल के मतदाताओं को पुचकारने का प्रयास किया गया । स्वयं ममता बनर्जी ने ही सभी मुसलमानों से तृणमूल को ही मतदान करने का आवाहन किया था और उसके कारण ही तृणमूल कांग्रेस सत्ता स्थापित कर पाई, यह बातसर्वविदित है । दूसरी ओर भाजपा ने पहले ही घोषित किया था कि, चुनाव के पश्चात्त यदि सत्ता मिली, तो सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में ही बांग्लादेश से पलायन कर बंगाल में शरण लिए हुए हिन्दू परिवारों को ‘सीएए’के अंतर्गत भारतीय नागरिकता दिलाने का निर्णय लिया जाएगा, साथ ही ऐसे परिवारों को प्रतिवर्ष १० सहस्र रुपए की सहायताराशि दी जाएगी ।इस माध्यम से हिन्दू और मुसलमान मतों का बहुत बडा ध्रुवीकरण हुआ, यह सच है; परंतु इन परिणामों से धर्मांधों की राजनीतिक एकता के सामने हिन्दुओं की राजनीतिक एकता पूर्णरूप से असफल रही, यह हमें स्वीकारना चाहिए । चुनाव परिणामों के उपरांत इस वैचारिक ध्रुवीकरण को मार्ग खुल गयाऔर उससे राज्य में हिंसाचार हो रहाहै । यह हिंसा हिन्दूद्वेष पर अर्थात राष्ट्रद्वेष की विचारधारा से सुसंगत होने से वह राष्ट्रविघातक और धार्मिक भी है, ऐसा निश्चितरूप से कहा जा सकता है ।

इस बार बंगाल विधानसभा चुनाव में चुने गए कुल नवनिर्वाचित विधायकों में से ४४ विधायक मुसलमान हैं और उनमें से ४३ विधायक तृणमूल कांग्रेस के हैं । तृणमूल के शेष अधिकांशविधायक भले ही हिन्दू हैं; परंतु उनकी विचारधारा क्या है, यह बात उनकी सर्वेसर्वा ममता बानो की कार्यपद्धति से ध्यान में आती है, यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है । ममता बैनर्जी उनके दल को मिली विजय के परिप्रेक्ष्य में मतदाताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए ‘मैं मेरे अल्पसंख्यक भाईयों के प्रति आभारी हूं’, यह बिना भूले कहती हैं । इससे विगत १० वर्षाें से मुसलमानों का तुष्टीकरण करते हुए सत्ता पर आसीन तृणमूल कांग्रेस आनेवाले ५ वर्षाें में बंगाल को किस दिशा में ले जाएगी, इसका विचार न करना ही अच्छा है । इससे पूर्व हिन्दुओं की दुर्गापूजा पर निर्बंध लगाना, मौलवियों पर सुविधाओं की बौछार करना आदि अनेक निर्णय लेनेवाली तृणमूल सरकार आनेवाले समय में राष्ट्र की एकता और अखंडता को संकट में डाल सकती है, इस संभावना को भी अब नकारा नहीं जा सकता । ममता बैनर्जी ने बंगाल में एन.आर.सी. लागू न करने की बात बताकर उसके संकेत भी दिए हैं । अब उसके भी आगे जाकर ‘सिलीगुडी कॉरीडोर’का विषय भी अपना सिर उठा सकता है, इसे ध्यान में लेना होगा ।

सिलीगुडी कॉरीडोर !

सिलीगुडी कॉरीडोर २२ किलोमीटर लंबा और केवल १४ किलोमीटर चौडाईवाला भारतीय भूभाग है । यहां से नेपाल, चीन, भूटान और बांग्लादेश की सीमाएं बहुत ही निकट हैं । यह भूभाग पूर्वाेत्तर भारत को भारत की मुख्य भूमि से जोडता है; इसएि वह सामरिकदृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । यह कॉरीडोर उत्तर बंगाल में हैं तथा यहां से केवल ७०-१०० कि.मी. की दूरी पर बिहार के सीमांचल नामक मुसलमानबहुल क्षेत्र की सीमा है । पिछले अक्टूबर माह मेंबिहार विधानसभा के चुनाव में यहां के पूर्णिया, अररिया, कटीहार एवं किशनगंज जनपदों के ५ विधानसभा क्षेत्रों में एमआईएम दल के ५ धर्मांध प्रत्याशियों ने चुनाव जीता था । बंगाल का विचार किया जाए,तो इस कॉरीडोर से लगा हुआ उत्तर दिनाजपुरजनपद मुसलमानबहुल है तथा वहां के अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों से तृणमूल कांग्रेस के ही प्रत्याशी चुनकर आए हैं । उससे निकट स्थित दक्षिण दिनाजपुर, मालदा और मुर्शिदाबाद जनपदों की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है ।डोकलाम क्षेत्र भूटान का भूभाग है । यह इस कॉरीडोर के निकट होने से चीनी ड्रैगन डोकलाम पर नियंत्रण स्थापित करनें हेतु प्रयासरत े रहता है । डोकलाम में उसकी गतिविधियां बढने का यही कारण है । नेपाल अब चीन का हस्तक बनता जा रहा है । इस्लामी बांग्ला देश, चीनी ड्रैगन और बिहार-बांग्ला देश की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए आनेवाले समय में वहां राष्ट्रविघातक गतिविधियां होने का संकट दिखाई पडता है । इसके संदर्भ में वर्ष २००५ में ‘बांग्ला क्रिसेंट’ नाम का एक लघुचित्र प्रसारित हुआ था । उसके निर्देशक मयांक जैन ने भी कुछ दिन पूर्व उक्त संभावना व्यक्त करते हुए आनेवाले समय में इस क्षेत्र में भयावह उथलपुथल हो सकती है, इसके संकेत दिए थे । यहां के बागडोगरा क्षेत्र में भारतीय वायुसेना का बडा अड्डा है तथा भारत को इस क्षेत्रपर अपना वर्चस्व अबाधित रखने में करोडों रुपए खर्च करने पड रहे हैं । इतने दिनों तक कांग्रेस को मिलनेवाले बंगाली मुसलमानों के मत अब पूर्णरूप से तृणमूल की झोली में चले गए हैं, यह बात २ मई को आए परिणामों से स्पष्ट हो गई है । इससे भारत में निहित धर्मांध और विदेशी शक्तियां बंगाल की राजनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए कुछ भी कर सकती हैं, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता ।

इस परिस्थिति में केंद्र सरकार को भारतविरोधी राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करना आवश्यक हो गया है । जनता से यह मांग उठने लगी है कि यदि नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी आदि के कार्यकाल में भारत के विविध राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया गया, तो मोदी सरकार को भी बंगाल के परिप्रेक्ष्य में यह विचार करना चाहिए । दहकते हुए बंगाल की पूरी स्थिति को देखते हुए तथा भविष्य में उत्पन्न होनेवाले संभावित संकटों को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार को समय रहते ही उचित कदम उठाना आवश्यक है, यही सत्य है !