विश्वव्यापक जगद़्वंद्य परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
1. आदर्श में आदर्श हैं मेरे गुरु !
सामान्य में सामान्य तथा असामान्य में असामान्य ऐसे सभी साधकों के प्राण सर्व जीवसृष्टि में पुरुषोत्तम ॥1॥
पान पर पडे ओसबिंदु के समान निर्मल, अवर्णनीय एवं आदर्श के आदर्श ऐसे मेरे गुरुदेव के चरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम ॥2॥
‘गुरु के संबंध में लिखूं इतनी मेरे में क्षमता नहीं !’ वे ही मुझसे कृतज्ञतास्वरूप लिखवा लें’, यही भावपूर्ण प्रार्थना है !
2. परात्पर गुरुदेवजी से प्रथम भेंट ।
परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी के चरणों में नतमस्तक होने की इच्छा पूर्ण होना : वर्ष 2004 में, जब मैं भारतीय नौसेना में कार्यरत था, तब मेरे मन में ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के दर्शन करना चाहिए’, ऐसा विचार आया । उस समय मैं असोगा, तालुका खानापुर में घर पर था । हमने (मैं और मेरा मित्र श्री. राजू सुतार) सुखसागर जाकर वहां उनके दर्शन कर उनके चरणों में नतमस्तक होने का विचार किया । उनके कारण ही हमें आने का अवसर मिला । हम अनुमानत: सुबह 10:30 बजे सुखसागर पहुंचे । हमें ‘सनातन-निर्मित गणपति का छायाचित्र एवं पंचमुखी हनुमान की मूर्ति की ओर देख कर क्या लगता है ?’, इस विषय में पूछा गया । हमने उस संबंध में जो सूत्र बताए, वे योग्य थे ।
मुझे परात्पर गुरु डॉक्टरजी के दर्शन करने की उत्सुकता थी । दोपहर में महाप्रसाद के समय सरलता से परात्पर गुरुदेव सबके साथ पटल पर भोजन करने बैठे । हमें उनके दर्शन हो गए; परंतु मुझे उनसे मिल कर उनके चरणों में नतमस्तक होने की इच्छा थी । हमें उनसे भेंट करने का अवसर मिला । मैं उनके कक्ष में जाकर उनके चरणों में नतमस्तक हो गया । उन्होंने प्रश्न किया, ‘क्या कुछ पूछना है ?’, मैंने कहा, ‘एक ही इच्छा थी, आपके चरणों में नतमस्तक होना’, वह पूरी हो गई’ वे हंसे । निकलते समय वे दरवाजे तक आए । उन्होंने हमारी ओर प्रेमभरी द़ृष्टि से देखा, दृष्टि के माध्यम से मुझ पर वहीं गुरुकृपा हो गई, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ ।
2 आ. परात्पर गुरुदेवजी ने कहा, ‘इन साधकों को चौपहिया वाहन से बसस्थानक पर पहुंचा दो’, यह गुरुवाक्य सत्य सिद्ध होने की प्रचीति आना : सुखसागर से बसस्थानक बहुत ही निकट था । उन्होंने एक साधक से कहा, इन्हें चौपहिये वाहन से बसस्थानक पर पहुंचाओ । हमने देखा तो आश्रम के द्वार के पास चौपहिया वाहन नहीं था । मैंने कहा, हम चलते हुए चले जाएंगे । तब साधकों ने कहा कि परात्पर गुरुदेवजी ने कहा है, तो वैसा ही होगा । उसी क्षण वहां एक ‘ट्रैक्स’ आई । ट्रैक्स के मालिक ने कहा कि वास्तव में गाडी दुरुस्ति (रिपेयरिंग) हेतु जानेवाली थी, परंतु मेकानिक ने एकाएक कल आने को कहा, इसलिए आ गया । ‘गुरुवाक्य शब्दप्रमाण’, यह सीखने को मिला ।
2 इ. छुट्टियों में घर आने पर प.पू. बाबा के (प.पू. भक्तराज महाराज के) भजन गाना, तबला बजाना ऐसा मैं करता था । छुट्टियों में घर आने पर मुझे सुखसागर जाने का आकर्षण रहता था ।
३. परात्पर गुरुदेवजी से दूसरी भेंट
3 अ. परात्पर गुरु का प्रत्येक पग पर नामजप जोडने को कहना एवं उसका शास्त्र समझाकर बताना : परात्पर गुरु डॉक्टरजी से दूसरी बार भेंट होने पर मैंने पूछा कि मैं जहाज पर नौकरी करता हूं । मैं साधना कैसे करूं ? तब परात्पर गुरुदेव डॉक्टरजी ने कहा, ‘‘नामजप करें, ग्रंथपठन करें । आप तो सेना में हो । आप जैसे लेफ्ट-राईट करते हो, वैसे ही एक पग डालने पर नामजप करना दूसरा पग डालने पर पुनः नामजप करना । 15 दिन तक ऐसा करने पर चलते समय आपका नामजप होगा । चलना रजोगुणी है, उसको नाम (सत्वगुणी) से जोडा, तो रजोगुण से सत्वगुण की ओर प्रवास होगा ।’’ मैंने 15 दिन तक वैसे प्रयास किए एवं पग-पग पर अपने आप मेरा जप आरंभ हो गया । ईश्वर ने मुझे यह अनुभूति दी । मैंने ग्रंथ-वाचन आरंभ किया । मैं साधना एवं शंका निरसन की श्राव्यचक्रिका सुनने लगा । परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा से मेरा नामजप होता था ।
-श्री. प्रणव मणेरीकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा
(11.7.2020)