माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी को गणेश तरंगें प्रथम बार पृथ्वी पर आई थीं । अत: इस दिन ‘श्री गणेश जयंती’ मनाई जाती है । इसकी विशेषता यह है कि इस दिन गणेश तत्त्व १००० गुना अधिक कार्यरत रहता है । (प्रत्येक महीने की चतुर्थी पर गणेश तत्त्व नित्य की तुलना में पृथ्वी पर १०० गुना अधिक कार्यरत रहता है ।)
१. भगवान श्री गणेश के स्पंदन तथा चतुर्थी तिथि पर पृथ्वी के स्पंदन एक समान होने के कारण, वे एक-दूसरे के लिए अनुकूल होते हैं; अर्थात उस तिथि पर भगवान श्री गणेश के स्पंदन पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आ सकते हैं । इस तिथि पर की गई भगवान श्री गणेश की उपासना से उपासक को गणेश तत्त्व का लाभ अधिक होता है ।
२. चतुर्थी अर्थात जागृति, स्वप्न एवं सुषुप्ति के परे की तुर्यावस्था । वही साधक का ध्येय है ।
३. ‘अग्निपुराण’ ग्रंथ में भोग और मोक्ष की प्राप्ति हेतु चतुर्थी के व्रत का विधान बताया गया है ।
४. चंद्रदर्शन निषेध : इस दिन चंद्र को नहीं देखना चाहिए, क्योंकि चंद्र का प्रभाव मन पर होता है । वह मन को कार्य करने पर प्रवृत्त करता है; परंतु साधक को तो मनोलय करना है । ग्रहमाला में चंद्र चंचल है अर्थात उसका आकार घटता-बढता है। उसी प्रकार शरीर में मन चंचल है । चंद्रदर्शन से मन की चंचलता एक लक्षांश बढ जाती है । संकष्टी (शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी कहते हैं ।) पर दिनभर साधना कर रात्रि के समय चंद्रदर्शन करते हैं। एक प्रकार से चंद्रदर्शन की क्रिया साधना काल के अंत एवं मन के कार्यारंभ की सूचक है ।
श्री गणेश को पुष्प चढाने की पद्धति !
गणेशपूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल एवं रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है; जिससे मूर्ति के जागृतिकरण में सहायता मिलती है । फूल चढाते समय फूल का डंठल गणेशजी की ओर एवं पंखुडिया अपनी ओर कर चढाएं ।