कोविड टीकाकरण : विस्तृत भूमिका !

कोरोना के उपचारों का स्वास्थ्य पर दुष्परिणाम ?

नवंबर २०२० में मुंबई में ‘Guillain Barre Syndrome (GBS)’ के २४ केस ‘कोविड’ के रोगियों में दिखाई दिए । इस विकार में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता रोगी के ही शरीर पर आघात कर उसे पक्षाघात की दिशा में ले जाती है । अधिकतर विषाणुजन्य बीमारी श्‍वसन तंत्र अथवा पाचन तंत्र में होती है । ऐसी अवस्था ध्यान में आते ही उपचार करने पर ठीक होने की संभावना बढतीहै । यह समाचार पढने पर स्वाभाविक ही मन में प्रश्‍न उठता है कि यह अवस्था कोविड से ठीक हुए रोगियों में कोरोना के संसर्ग के कारण हुई है अथवा अनुचित उपचार के कारण? क्योंकि कोविड के जन्म के एक वर्ष होने पर भी आज भी १०० प्रतिशत निश्‍चित निदान करनेवाला परीक्षण अथवा उपचार डॉक्टरों के पास उपलब्ध नहीं है । दूसरी ओर ‘हाइड्रोक्सिक्लोरोक्वीन’, ‘टोसिलिजुमाब’, ‘रेमडेसेविर’ और सरेआम वेंटिलेटर के प्रयोग से रोगियों को लाभ होने की अपेक्षा हानि के ही अधिक प्रमाण उपलब्ध हैं । स्वयं विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इसकी पुष्टि की है ।

टीके के संदर्भ में आया कटु अनुभव

हम बीएएमएस सीख रहे थे । तब तत्कालीन गोवा राज्य सरकार ने सभी पाठशाला तथा महाविद्यालयों में ‘एमएमआर’ (MMR) टीका अनिवार्य किया था । यह टीकाकरण किसी भी तर्क पर आधारित न होने से हम जैसों ने इसका विरोध किया था; परंतु इस ओर अनदेखी कर हमारे महाविद्यालय की लगभग १०० लडकियों को यह टीकाकरण किया गया । उनमें से १० प्रतिशत को तीव्र ज्वर, तथा ५ प्रतिशत को ‘कंठमालासदृश’ लक्षण दिखाई देने लगे। यहां ध्यान देने की बात यह है कि कंठमाला न हो इसके लिए लगाए जानेवाले टीके से ‘कंठमाला’ के समान लक्षण उत्पन्न हुए थे; परंतु इसमें चौंकानेवाली बात मेरी सहेली, जिसने अपना नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर यह अनुभव साझा करने के लिए हां कहा है; उसके संदर्भ में घटी । यह टीका दिया गया, उसी रात को उसकी कमर के नीचे का भाग सुन्न हो गया । उसके पश्‍चात उसे हुए कष्ट और वेदना हमने स्वयं देखे हैं । आज भी उसके शब्दों में कहना हो तो ‘इस घटना से मेरा पूरा जीवन ही बदल गया ।’ यह स्थिति उत्पन्न होने से पहले उसे किसी प्रकार के विकार नहीं थे । वह शारीरिक दृष्टि से पूर्णतः सक्षम थी । उसे दिया गया ‘एमएमआर’ टीके को पिछले कुछ दशकों से ‘सुरक्षित टीका’ ही बताया जाता है । इतना ही नहीं, ‘इस टीके का ‘जीबीएस’ से कोई संबंध नहीं है’, ऐसा कहनेवाले ‘रिसर्च पेपर’ भी मिलते हैं; परंतु पहले बताए अनुसार ‘जीबीएस’ विषाणुजन्य संसर्ग से होता है । इस परिस्थिति में जो टीका विषाणुआें को तथाकथित ‘अकार्यक्षम’ बनाकर सिद्ध किया जाता है; उससे ऐसा नहीं हुआ होगा इस संदर्भ में कोई निश्‍चिति दे सकता है क्या ?

कोविड टीका विश्‍वसनीय ?

भारत में कोविड टीके के उत्पादकों द्वारा सिद्ध टीका ‘अडीनोवायरस’ नामक बंदरों में सर्दी उत्पन्न करनेवाले विषाणु के गुणसूत्रों में कुछ परिवर्तन कर बनाया गया है । टीका लगाने पर मानव शरीर में कोरोना विषाणु के समान इस विषाणु के कारण रोगप्रतिरोधक क्षमता निर्माण होगी और कोरोना का संक्रमण होने पर लडने का बल मिलेगा, ऐसा तत्त्व इसके पीछे है; परंतु इन उत्पादकों की मातृसंस्था ने टीके के संदर्भ में आंकडे घोषित करते समय जो गडबड की है वह संसार के सामने है । उसके परे जाकर परीक्षण की प्रक्रिया पूर्ण किए बिना किसी भी आधुनिक औषधि पर विश्‍वास करना, बुद्धिमानी नहीं होगी ।

कोविड टीके के संदर्भ में डॉक्टर और औषधिनिर्माण क्षेत्र में एकमत का अभाव

डॉक्टर और औषधिनिर्माण क्षेत्र में टीके के संदर्भ में एकमत नहीं है । ‘फाइजर फार्मा’ के भूतपूर्व उपाध्यक्ष और प्रसिद्ध श्‍वसनसंस्था विकार विशेषज्ञ डॉ. माइकल यीडन कहते हैं, ‘‘वैश्‍विक संसर्ग रोकने के लिए ‘वैक्सिन’ की (टीके की) कोई आवश्यकता नहीं है । वैक्सिन के संदर्भ में इतनी मूर्खता मैंने आज तक कभी भी नहीं देखी । रोग से जिन लोगों को भय नहीं है ऐसे लोगों को ‘वैक्सिन’ नहीं देना चाहिए । जिस ‘वैक्सिन’ का संपूर्ण परीक्षण नहीं हुआ है, ऐसा ‘वैक्सिन’ करोडों निरोगी लोगों को देने का प्रयास करना ही गलत है ! यीडन का मुद्दा व्यर्थ है । कितने डॉक्टर भी स्वयं टीका लगवाने के संदर्भ में सकारात्मक नहीं हैं । ‘अपनी सुरक्षा के लिए नहीं, अपितु समाज की सुरक्षा के लिए टीकाकरण करो’, कुछ लोग ऐसा सुर भी अलाप रहे हैं । उनकी जानकारी के लिए टीका बनाने में अग्रणी ‘फाइजर फार्मा’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अल्बर्ट बोरला ने कहा है, ‘‘जिस व्यक्ति ने टीका लगवाया है उससे अन्य व्यक्ति में विषाणु संक्रमित नहीं होंगे, इसकी कोई निश्‍चिति नहीं है ।’’

आयुर्वेद की अनदेखी करना षड्यंत्र नहीं है क्या ?

इससे मानो टीकाकरण ही अंतिम उपाय और कोरोना से मुक्ति होना है ऐसा जो लग रहा है वह कितना योग्य है ? तथा दूसरी ओर आयुर्वेद को पहले से ही निरंतर नकारा जा रहा है । तो भी अवसर मिलते ही इस महासंसर्ग में वह बहुत प्रभावी रूप से काम कर रहा है; उस ओर आज भी की जा रही अनदेखी, इसी टीके के षड्यंत्र का भाग होगा क्या ? ऐसी शंका होना स्वभाविक है !

– वैद्य परीक्षित शेवडे, आयुर्वेद वाचस्पति, डोंबिवली, महाराष्ट्र.

(संदर्भ : दैनिक ‘तरुण भारत’, ६ दिसंबर २०२०)