‘पांच सितारा होटल के रसोईघर में भोजन बनानेवाले व्यक्ति को कितना कष्ट होता है, यह इस लेख से स्पष्ट होता है । ऐसा होते हुए भी उस भोजन को खानेवालों को कितना कष्ट होता होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
१. होटल और रामनाथी आश्रम के रसोईघर में सेवा करते समय ध्यान में आए अंतर
अनुभूतियां
अ. ‘होटल एवं आश्रम के रसोईघरों में निहित अंतर’ लेख लिखते समय गुरुदेवजी द्वारा दिया गया पेन व सद़्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी द्वारा दी गई दैनंदिनी का उपयोग करने के कारण लेखन करते समय जो सूत्र ध्यान में नहीं आ रहे थे, वे भी ध्यान में आने लगे ।
आ. होटल में एक ही बरतन में शाकाहारी और मांसाहारी भोजन बनाया जाता है, यह सूत्र लिखते समय मुझे वह बरतन दिखाई दिया । जिस बरतन में मांसाहार पकाया गया था, उसके तल में कष्टदायक शक्तियां वृत्ताकार एकत्रित होकर ‘उससे उत्पन्न कष्टदायक शक्ति बरतन के किनारे द्वारा वातावरण में फेंकी जा रही है’, ऐसा दिखाई दिया ।
‘हे ईश्वर, आपने यह लिखने के लिए बुद्धि प्रदान की और आप ने ही मुझसे यह लिखवाया, उसे आपके चरणों में ही समर्पित करता हूं । साथ ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और सद़्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी ने अनुभूति दी; इसके लिए उनके चरणों में अनन्य कृतज्ञ हूं !’
– श्री. ऋत्विज ढवण, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
(४.६.२०१९)