देवता को भावपूर्ण भोग चढाकर उसे ‘प्रसाद’ के भाव से ग्रहण करने पर व्यक्ति को मिलनेवाले आध्यात्मिक लाभ !

     ‘हिन्‍दू धर्म में देवता को भोग चढाकर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है । ‘देवता को भोग चढाकर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करनेवाले व्‍यक्‍ति पर आध्‍यात्मिक दृष्‍टि से क्‍या परिणाम होता है ?’, विज्ञान की दृष्‍टि से इसका अध्‍ययन करने हेतु रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में ‘यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर’ उपकरण के द्वारा परीक्षण किया गया । परीक्षण में प्राप्‍त निरीक्षणों का विवेचन, उनसे प्राप्‍त निष्‍कर्ष और उनका अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण आगे दिया गया है ।

यूएएस उपकरण द्वारा परीक्षण करते श्री. आशिष सावंत

१. परीक्षण में प्राप्‍त निरीक्षणों का विवेचन

     इस परीक्षण में तीव्र आध्‍यात्मिक कष्‍ट से पीडित साधिका, तीव्र आध्‍यात्मिक कष्‍ट से पीडित तथा ६६ प्रतिशत स्‍तर प्राप्‍त साधिका, आध्‍यात्मिक कष्‍ट रहित साधक और आध्‍यात्मिक कष्‍ट रहित तथा ६१ प्रतिशत स्‍तर प्राप्‍त साधक, ऐसे ४ लोग सहभागी थे ।

     इस परीक्षण में घी में बनाए गए मीठे हलवे के २ भाग किए गए । उनमें से श्री सिद्धिविनायक देवता को पहले भाग का भोग लगाया गया । इसे इस लेख में ‘प्रसाद का हलवा’ कहा गया है, तथा दूसरे भाग का देवता को भोग नहीं चढाया गया है । उसे इस लेख में ‘सामान्‍य मीठा हलवा’ कहा गया है । साधकों ने पहले प्रसाद का हलवा ग्रहण किया । उसके उपरांत दोपहर के अल्‍पाहार के समय उन्‍होंने सामान्‍य मीठा हलवा ग्रहण किया । साधकों द्वारा दोनों प्रकार का हलवा ग्रहण करने से पूर्व और ग्रहण करने के २० मिनट उपरांत ‘यूएएस’ उपकरण के द्वारा उनके निरीक्षण किए गए । सभी निरीक्षणों का तुलनात्‍मक अध्‍ययन करने पर ‘सामान्‍य मीठा हलवा और प्रसाद का हलवा ग्रहण करने से साधकों पर क्‍या परिणाम होता है ?’, यह ध्‍यान में आया, इसका निष्‍कर्ष आगे दिया गया है ।

१ अ. नकारात्‍मक एवं सकारात्‍मक ऊर्जा के संदर्भ में निरीक्षणों का – सामान्‍य मीठे हलवे की तुलना में प्रसाद का हलवा ग्रहण करने से साधकों पर बहुत अधिक सकारात्‍मक परिणाम होना : आगे दी गई सारणी में यह स्‍पष्‍ट होता है ।

     टिप्‍पणी – ‘ऑरा स्‍कैनर’ ने ९० अंश का कोण किया । ‘ऑरा स्‍कैनर’ ने १८० अंश का कोण किया, तभी प्रभामंडल की गणना की जा सकती है ।

     उक्‍त सारणी से निम्‍नांकित सूत्र (तथ्‍य) ध्‍यान में आए –

१. सामान्‍य मीठे हलवे की तुलना में प्रसाद के हलवे में बहुत अधिक सकारात्‍मक ऊर्जा है ।

२. साधकों ने सामान्‍य मीठा हलवा ग्रहण किया; इसके कारण उनमें व्‍याप्‍त नकारात्‍मक ऊर्जा थोडी अल्‍प होकर सकारात्‍मक ऊर्जा थोडी बढ गई ।

३. साधकों द्वारा प्रसाद का हलवा ग्रहण करने से उनमें व्‍याप्‍त नकारात्‍मक ऊर्जा बहुत अल्‍प अथवा नष्‍ट होकर उनमें व्‍याप्‍त सकारात्‍मक ऊर्जा में बहुत वृद्धि हुई ।

२. निष्‍कर्ष

     सामान्‍य मीठे हलवे की तुलना में प्रसाद का हलवा ग्रहण करने से साधकों पर बहुत अधिक सकारात्‍मक परिणाम हुआ ।

३. परीक्षण के निरीक्षणों का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण

३ अ. सामान्‍य मीठे हलवे की अपेक्षा प्रसाद के हलवे में बहुत अधिक सकारात्‍मक ऊर्जा होने का कारण : देवता को भावपूर्ण पद्धति से भोग चढाने से देवता से आनेवाला चैतन्‍य भोग में आकर्षित होता है; उसके कारण वह सामान्‍य पदार्थ न रहकर ‘चैतन्‍यमय प्रसाद’ बन जाता है । देवता का चैतन्‍यमय प्रसाद ग्रहण करनेवाले व्‍यक्‍ति को उसके भाव के अनुसार आध्‍यात्मिक लाभ मिलता है । परीक्षण हेतु लिए गए मीठे हलवे की सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रभामंडल २.९० मीटर, तथा प्रसाद के हलवे का ८.२५ मीटर अर्थात बहुत अधिक है । इसका कारण यह है कि श्री सिद्धिविनायक देवता को भावपूर्ण पद्धति से हलवे का भोग चढाने से उसमें देवता का चैतन्‍य आकर्षित हुआ ।

३ आ. साधकों द्वारा प्रसाद के हलवे में निहित चैतन्‍य अपने भाव के अनुसार ग्रहण करना : सामान्‍य मीठे हलवे की तुलना में प्रसाद का हलवा ग्रहण करने से परीक्षण में सहभागी साधकों में व्‍याप्‍त नकारात्‍मक ऊर्जा बहुत अल्‍प अथवा नष्‍ट होकर उनमें सकारात्‍मक ऊर्जा बढ गई । इसका कारण यह है कि देवता को भावपूर्ण पद्धति से भोग चढाकर जब उस पदार्थ को ‘प्रसाद’ के रूप में ग्रहण किया जाता है, तब उससे मिलनेवाला लाभ कई गुना बढ जाता है । साथ ही प्रसाद ग्रहण करनेवाले व्‍यक्‍ति के भाव के अनुसार उसे प्रसाद में विद्यमान चैतन्‍य ग्रहण होता है ।

     हिन्‍दू धर्म में देवता को भावपूर्ण पद्धति से भोग अर्पण कर उसके उपरांत उसे ग्रहण करने के लिए कहा गया है । जीवन के प्रत्‍येक छोटे-बडे कृत्‍य से मनुष्‍य को आध्‍यात्मिक लाभ मिले; इसके लिए हिन्‍दू धर्म ने कितना व्‍यापक विचार किया है, इससे यह समझ में आता है ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (१८.११.२०२०)

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