‘आपातकाल में प्राणरक्षा’ ग्रंथमाला के अंतर्गत सनातन के आगामी २ नए ग्रंथों का लोकार्पण !

आपातकाल में जीवित रहने के लिए मार्गदर्शन करनेवाली सनातन संस्था !

अखिल मानवजाति को आपातकाल में जीवित रहने के लिए तैयारी करने के संदर्भ में मार्गदर्शन करनेवाले एकमात्र परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

खंड १ : आपातकाल में जीवित रहने हेतु
दैनिक आवश्यकताओं की व्यवस्था करें !
(भोजन, पानी, बिजली आदि संबंधी व्यवस्था)
खंड २ : आपातकाल सहनीय होने हेतु
मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर की व्यवस्था करें !(स्वसूचना-उपचार, साधना का महत्त्व इत्यादि)

 

ग्रंथों के संकनलकर्ता : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं पू. संदीप आळशीजी

लेखांक १

संत-महात्माओं, ज्योतिषियों इत्यादि द्वारा पहले ही कथनानुसार अब आपातकाल आरंभ हो चुका है तथा इसके आगे समाज को विश्‍वयुद्ध के साथ ही अनेक भीषण आपदाओं का सामना होनेवाला है । ऐसे भीषण आपातकाल का सामना करने की पूर्वतैयारी के एक भाग के रूप में सनातन संस्था ‘आपातकाल में प्राणरक्षा’ ग्रंथमाला बना रही है । अभी तक इस शृंखला के अंतर्गत २ ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं । सभी को इन ग्रंथों का परिचय हो, इसके लिए प्रस्तुत लेख में इस ग्रंथमाला की संयुक्त भूमिका, साथ ही दोनों ग्रंथों का संक्षिप्त विवरण प्रकाशित कर रहे हैं । पाठक इन दोनों ग्रंथ अवश्य अपने संग्रह में रखें; क्योंकि ये ग्रंथ आपातकाल में जीवित रहने हेतु सहायक सिद्ध होंगे । सभी से यह विनम्र अनुरोध है कि ‘इन ग्रंथों के संबंध में समाज में अधिकाधिक जागृति लाकर सामाजिक प्रतिबद्धता का निर्वहन करने के साथ ही समाजऋण भी चुकाएं !’

‘आपातकाल में प्राणरक्षा’
ग्रंथमाला की संयुक्त भूमिका

१. ‘कोरोना’ विषाणुरूपी आपदा, आनेवाले भीषण आपातकाल की छोटी सी झलक !

जनवरी २०२० से ‘कोरोना’ विषाणु ने पूरे विश्‍व में हाहाकार मचा रखा है । ‘कोरोना’ की आपदा के कारण यातायात बंदी (‘लॉकडाउन’ का) पालन करना अनिवार्य होने से अनेक उद्योग-व्यवसाय प्रभावित हुए हैं, साथ ही आर्थिक मंदी भी आई है । ‘कोरोना’ के कारण बडी मात्रा में प्राणहानि और वित्तहानि हो रही है । कोरोना का संकट मंडराने के कारण सर्वत्र मुक्तसंचार करना, चिकित्सालय जाकर उपचार लेना इत्यादि कठिन लग रहा है । इससे सर्वत्र एक प्रकार का दबाव और भय का वातावरण बना हुआ है । अक्टूबर २०२० में उत्पन्न स्थिति को देखते हुए ‘कोरोना’ तो आनेवाले भीषण आपातकाल की एक छोटी सी झलक है, ऐसा दिखाई दे रहा है ।

२. भीषण आपातकाल का संक्षिप्त स्वरूप

विश्‍वयुद्ध, भूकंप, जलप्रकोप इत्यादि के स्वरूप में भीषण आपातकाल को तो अभी आना ही है । नाडीभविष्य बतानेवाले अनेक लोगों और द्रष्टा साधु-संतों ने ‘निश्‍चित रूप से वह आने ही वाला है’, यह पहले से बताकर रखा है । अब इस संकट की आहट भी सुनाई दे रही है । विश्‍वयुद्ध भी अब निकट आ रहा है । यह भीषण आपातकाल कुछ दिन अथवा कुछ महीने का नहीं है, अपितु वह वर्ष २०२३ तक अर्थात अभी से लेकर (वर्ष २०२० से लेकर) ३ वर्षों का अर्थात भारत में ‘हिन्दू राष्ट्र’ की (आदर्श ईश्‍वरीय राज्य की) स्थापना होने तक रहेगा ।

३. आपातकाल में जीवित रहने हेतु विविध प्रकार की पूर्वतैयारी करना आवश्यक

आपातकाल में बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती है, साथ ही पेट्रोल, डीजल आदि का अभाव होने से यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है । उसके कारण सहायता के लिए सरकारी तंत्र सर्वत्र नहीं पहुंच सकता है । सरकार द्वारा किए जा रहे सहायता – कार्यों में बाधाएं भी आती हैं । अतः उससे रसोई के ‘गैस’, खाने-पीने की वस्तुएं आदि अनेक महीने नहीं मिलेंगी और वो मिल भी गईं, तो उनकी ‘रेशनिंग’ (नियंत्रित आपूर्ति) की जा सकती है । ऐसी स्थिति में डॉक्टर, वैद्य, औषधियां, चिकित्सालय आदि सहजता से उपलब्ध होना कठिन होता है । इन सभी बातों को ध्यान में लेकर इस आपातकाल का सामना करने हेतु सभी को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, आध्यात्मिक आदि स्तरों पर पूर्वतैयारी करना आवश्यक है । प्रस्तुत ग्रंथमाला के पहले खंड में शारीरिक स्तर की, तथा दूसरे खंड में शेष तैयारी के संदर्भ में बताया गया है ।

४. पाठकों, तैयारी शीघ्र आरंभ करें !

पाठकों ने यदि इस ग्रंथमाला में दी गई जानकारी के अनुसार अभी से इसकी कार्यवाही आरंभ की, तो उनके लिए यह आपातकाल सुसहनीय रहेगा । इस संदर्भ में पाठक समाज में जागृति भी लाएं ।

५. प्रार्थना

‘आपातकाल में केवल टिके रहने के लिए ही नहीं, अपितु जीवन में साधना के दृष्टिकोण अपनाकर आनंदित रहने के लिए भी इस ग्रंथमाला का उपयोग हो’, यह श्री गुरुचरणों में प्रार्थना है !

– संकलनकर्ता

[प्रस्तुत लेख के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ के पास सुरक्षित हैं]

खंड १ : आपातकाल में जीवित रहने हेतु उच्च स्तर पर तैयारी करें !

(अन्न, पेयजल, बिजली इत्यादि के संदर्भ में तैयारियां)

आपातकाल में खाद्यान्न, सब्जियां, रसोई गैस, पानी, पेट्रोल जैसे ईंधन, नित्य उपयोगवाली वस्तुएं, घर में स्थित विविध वस्तुओं के पुर्जे इत्यादि का बहुत अभाव होगा । कुल मिलाकर इस अवधि में ‘जीवन व्यतीत करना’ एक बडी चुनौती होगी । ‘प्यास लगने पर कुआं नहीं खोदना होता है’ वचन के अनुसार आनेवाले आपात्काल में स्वयं के साथ ही परिवारजनों के प्राण बचाने हेतु आज से ही ‘नित्य स्तर पर कौन सी तैयारियां करनी चाहिए ?’, इस ग्रंथ से इसे जानें !

खंड २ : आपातकाल सहनीय होने हेतु मानसिक और आध्यात्मिक
स्तरों पर तैयारी करें ! (स्वचूनाएं – उपाय, साधना का महत्त्व इत्यादि)

आपातकाल के विचार से अनेक लोगों को मन अस्थिर होना, भय लगना आदि कष्ट होते हैं । वो न हों; इसके लिए अर्थात प्रतिकूल स्थिति का भी धैर्य से सामना करना संभव हो; इसके लिए ‘मन को कौन सी स्वसूचना देनी चाहिए ?’, इस ग्रंथ में इसका मार्गदर्शन किया गया है । इस ग्रंथ में पारिवारिक और आर्थिक स्तरों पर करने याग्य आवश्यक तैयारियां भी बताई गई हैं । व्यक्ति यदि साधना कर ईश्‍वर की कृपा प्राप्त करता है, तो ईश्‍वर उसकी रक्षा करते ही हैं ।’ इसके लिए इस ग्रंथ में साधना करने का महत्त्व भी बताया गया है ।