दक्षिण एशियाई चिकित्सकीय छात्र संस्था की (‘साम्सा’ की) ओर से आयोजित ‘तनावपूर्ण जीवन में मनःशांति की खोज’ विषय पर आयोजित ‘वेबिनार’ की आयोजिका डॉ. (कु.) श्रिया साहा को सेवा करते समय सीखने को मिले सूत्र, ‘वेबिनार’ के आयोजन की सेवा करते समय हुई अनुभूतियां और उनके द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा के अनुभव के संबंध में जानकारी प्रकाशित कर रहे हैं ।
‘यहां कुछ महीने से मेरे मन में ‘दक्षिण एशियाई चिकित्सकीय छात्र संस्था’ के (‘साम्सा’ के) मंच तथा उसमें प्राप्त पद का उपयोग सेवा के लिए करना चाहिए’, ये विचार आ रहे थे ।‘साम्सा’ की राष्ट्रीय परिषद अप्रैल में होनी थी । तब मैंने संस्था को, ‘हम महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के वक्ताआें को कार्यशाला अथवा मनःशांति हेतु महत्त्वपूर्ण संकल्प रखने के लिए (Keynote speech) आमंत्रित कर सकते हैं’, ऐसा सुझाया; परंतु तब परिषद के आयोजक समिति के सदस्य इस विचार के प्रति सकारात्मक नहीं थे । उसके कारण मैंने यह विचार रद्द कर दिया और उसके उपरांत यातायात बंदी लागू होने के कारण ‘साम्सा’ की राष्ट्रीय परिषद ही रद्द हो गई । अक्टूबर में ‘साम्सा’ की राष्ट्रीय परिषद ‘ऑनलाइन’ आयोजित की गई थी । तब भी मैंने ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालया (एमएवी’)’ का सत्र अंतर्भूत करने के लिए प्रयास किए । ‘यह वेबिनार अधिकाधिक लोगों तक पहुंचे और सभी को इसका लाभ मिले’, यह मेरी इच्छा थी । आश्यर्य की बात यह कि मेरे समूह के किसी भी सदस्य ने उसका विरोध नहीं किया ।
२. कार्यक्रम को प्राप्त प्रचुर प्रत्युत्तर !
इस कार्यक्रम के लिए मैंने १०० से अधिक दर्शकों का पंजीकरण होने की अपेक्षा नहीं रखी थी । हमारे सोशल मीडिया की दर्शकसंख्या (reach) भी बहुत अच्छी नहीं थी । ‘साम्सा’ के बहुत ही न्यून सदस्य इस कार्यक्रम की ‘पोस्ट’ आगे भेज रहे थे । अधिकतर सदस्य इस विषय में किसी प्रकार की रुचि अथवा उत्साह नहीं दिखा रहे थे; परतुं १ सहस्र १०० से भी अधिक लोगों ने पंजीकरण किया था । ‘यू ट्यूब’ पर स्थित यह चलचित्र ११ सहस्र से अधिक बार देखा गया और भेंट करनेवाले भी अनेक लोग थे । इससे पूर्व किसी कार्यक्रम को लोकप्रिय अतिथि वक्ताआें के होते हुए भी दर्शकों का इतना अच्छा प्रत्युत्तर नहीं मिला था । केवल और केवल परात्पर गुुरु डॉक्टरजी और ईश्वर की कृपा से ही इस कार्यक्रम का इतना अच्छा प्रत्युत्तर मिला ।
३. अनुभूतियां
वास्तव में १५ दिन पूर्व यह सेवा आरंभ हुई । तब मुझे कोरोना रोगियों की सेवा के लिए जाना पडा और उसके उपरांत पृथक्करण में रहना पडा; परंतु तब भी मुझे सेवा का चैतन्य मिलकर आनंद की अनुभूति हो रही थी । अंततः १.११.२०२० को यह सेवा पूरी हुई । इसमें मुझे परात्पर गुरु डॉक्टरजी के बहुत आशीर्वाद मिले और ‘मैं कब आश्रम पहुंचूं ?’, ऐसा मुझे लगा ।
‘साम्सा’ के प्रत्येक ‘ऑनलाइन’ कार्यक्रम में चिकित्सकीय शाखा का एक छात्र कुछ न कुछ अनुचित टिप्पणी करता था । वह हमारे आयोजकों के सूमह के सदस्यों को भी निरंतर संदेश भेजकर अथवा संपर्क कर त्रस्त कर रहा था । उसके कारण कुछ लोगों ने उसका संपर्क क्रमांक बंद (‘ब्लॉक’) कर दिया था । जब ‘वेबिनार’ आरंभ हुआ, तब उसने ‘जूूम चैट’ पर कुछ लिखकर भेजा । उस समय ‘अब वह पूरे सत्र में हमें त्रस्त करेगा’, ऐसा लगा; परंतु डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत ने विषय आरंभ किया, तब उस पूरे सत्र में वह पूरी तरह शांत रहा । प्रश्नोत्तर के सत्र में उसने एक अच्छा प्रश्न भी पूछा । ‘उस व्यक्ति में इस प्रकार का परिवर्तन देखना’ मेरे पूरे समूह के लिए एक सुखद अनुभूति थी ।
४. कृतज्ञता
मेरे माध्यम से यह सेवा करवाने के लिए मैं परात्पर गुरुदेवजी एवं भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करती हूं । पूजनीय संतों के संकल्प और आशीर्वाद के लिए उनके प्रति कृृतज्ञता ! ‘जिन साधकों ने इस सेवा के लिए अपना अमूल्य समय समर्पित किया’, उन सभी साधकों के प्रति कृतज्ञता !’
५. गुरुदेवजी की कृपा की अनुभूति
अ. ‘कार्यक्रम की पत्रिका (Event image post flyer) कला से संबंधित सेवा करनेवाले साधकों द्वारा अनुमोदित की गई और उन्होंने उसे अपने संग्रह में रखा’, यह सुनकर बहुत कृतज्ञता प्रतीत हुई ।
आ. यह सेवा परात्पर गुरु डॉक्टरजी तक पहुंची और उससे ‘परात्पर गुरुदेवजी प्रसन्न हुए’, यह सुनकर मेरी बहुत भावजागृति हुई ।’
– डॉ. श्रिया साहा, कोलकाता (नवंबर २०२०)