‘रेफ्रिजरेटर’ के कारण अन्नि पदार्थों पर होनेवाले दुष्पररिणाम !

     ‘आज के आधुनिक युग में कुछ बिजली के उपकरण समाज के लोगों के लिए जीवन के अभिन्‍न अंग हो गए हैं । उनमें से एक है ‘रेफ्रिजरेटर’ ! इस भागदौड भरे जीवन में समय के अभाव के कारण महिलाएं सप्‍ताह में एक ही बार बाजार से फल, सब्‍जियां एवं अन्‍य पदार्थ लाकर फ्रिज में रखती हैं तथा आवश्‍यकता के अनुसार वे उनका उपयोग करती हैं । इसके कारण शारीरिक स्‍तर पर तो हानि होती ही है; परंतु साथ में आध्‍यात्मिक स्‍तर पर भी उसके दुष्‍परिणाम देखने में आते हैं । प्रकृति के विरुद्ध जाकर ठंडे किए गए पदार्थ स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक होते हैं, साथ ही उनके बासी होने से उनमें समाहित पोषक तत्त्व भी निकल जाते हैं । इसके लिए पदार्थों को प्राकृतिक रूप से ठंडा करने के लिए प्राचीन पद्धतियों को अपनाना अधिक सुविधाजनक तथा लाभदायक है । इस संदर्भ में ध्‍यान में आए सूत्र और किए गए कुछ प्रयोग यहां दिए गए हैं । (भाग १)

१.  रेफ्रिजरेटर से अन्‍न पर होनेवाले अनिष्‍ट परिणाम !

१ अ. रेफ्रिजरेटर में हवा ठंडी रखने के लिए विषैली वायुआें का उपयोग किया जाना और शरीर पर उनका अनिष्‍ट परिणाम होना : रेफ्रिजरेटर को ठंडा रखने की प्रक्रिया के लिए ‘क्‍लोरिन’, ‘फ्‍लोरिन’ और ‘कार्बन डाइऑक्‍साइड’ वायु का उपयोग किया जाता है । उन्‍हें ‘सीएफसी’ कहा जाता है । ये वायु विषैली होती हैं । ऐसी विषैली वायु की सहायता से रेफ्रिजरेटर को ठंडा रखने में की जानेवाली प्रक्रिया का परिणाम खाद्यपदार्थ पर होता है । ऐसे खाद्यपदार्थों का सेवन करने पर स्‍वाभाविक ही शरीर पर उसका अनिष्‍ट परिणाम होता है ।

१ आ. सब्‍जियां अथवा फलों को पेड से तोडे जाने के क्षण से ही उनमें विद्यमान चेतना क्षीण होने लगती है और कुछ समय पश्‍चात उसमें प्राकृतिक रूप से जीवाणु उत्‍पन्‍न होते हैं; रेफ्रिजरेटर में इस प्रकिया को ‘जैसे थे’ वैसे रोकना और रेफ्रिजरेटर के बाहर आते ही यह प्रक्रिया गति से होना : रेफ्रिजरेटर में रखी गई सब्‍जियां अथवा फल बहुत समय पहले ही पेड से तोडे हुए होते हैं । सब्‍जियां अथवा फलों को पेड से तोडने के क्षण से ही उनमें समाहित चेतना क्षीण होने लगती है और वे धीरे-धीरे सडने लगते हैं । कालांतर से ऐसी तोडी गई सब्‍जी में प्राकृतिक रूप से जीवाणु उत्‍पन्‍न होने से उसके सडने की प्रक्रिया आरंभ होती है । बिजली पर चलनेवाले रेफ्रिजरेटर में यह प्रक्रिया उसी स्‍थिति में रोकी जाती है और लंबे समय तक सब्‍जी ‘जैसी थी’ उसी स्‍थिति में रखी जाती है; परंतु जब ऐसी सब्‍जी रेफ्रिजरेटर से बाहर निकाली जाती है, तब उसमें जीवाणुआें की वृद्धि तीव्रगति से होती है ।

१ आ १. प्राकृतिक रूप से सब्‍जियों को अल्‍प तापमान की आदत न होना और अत्‍यंत ठंडे तापमान के कारण सब्‍जियां सूखी होकर उनमें विद्यमान जीवनसतत्त्व नष्‍ट होना : रेफ्रिजरेटर का ही एक भाग है ‘फ्रॉस्‍ट-फ्री रेफ्रिजरेटर’ । इसमें रखी गई सब्‍जियां कुछ समय पश्‍चात सूखने लगती हैं; क्‍योंकि प्राकृतिक रूप से बढी हुई सब्‍जियों को अल्‍प तापमान की आदत नहीं होती । रेफ्रिजरेटर के अल्‍प तापमान के कारण सब्‍जियां प्रभावित होने से उनमें समाहित जीवनसत्त्व नष्‍ट होते हैं ।

१ इ. पकाए गए अन्‍न का तरल अंश और पानी अलग-अलग होना और उस पदार्थ में यदि घी अथवा मक्‍खन हो, तो वह भी जमकर अलग होना : रेफ्रिजरेटर के कारण केवल फल अथवा सब्‍जियां जैसे पदार्थों पर ही नहीं, अपितु पकाए गए पदार्थों पर अनिष्‍ट परिणाम होते दिखाई देता है । रेफ्रिजरेटर में रखा गया अन्‍न बहुत समय पहले पकाया जाता है । दाल जैसे तरल पदार्थ जब रेफ्रिजरेटर में रखे जाते हैं, तब उनका गाढा अंश और उसका पानी अलग-अलग हो जाता है । कभी-कभी तो ऐसे पदार्थों में घी अथवा मक्‍खन हो, तो वह भी अलग होकर जम जाता है ।

१ ई. पाव बनाते समय उसमें बदले गए घटक पदार्थ की संरचना पूर्ववत होने की प्रक्रिया के कारण उसका खराब हो जाना : पाव बनाते समय पाव में निहित पिष्‍टमय पदार्थ (स्‍टार्च) की संरचना बदलती है । उसके रेणु कसे जाते हैं  पाव बनने के उपरांत यह संरचना पुनः पूर्ववत होने लगती है । रेफ्रिजरेटर के अल्‍प तापमान के वातावरण के कारण यह प्रक्रिया तीव्रगति से होती है । प्रमुखता से यही प्रक्रिया पाव खराब होने का कारण बनती है ।

१ ई १. पाव को रेफ्रिजरेटर में रखने के कारण उसमें निहित जलीय अंश अल्‍प होकर उसका कडक हो जाना : पाव (ब्रेड) को रेफ्रिजरेटर में रखने पर केवल एक ही दिन के उपरांत वह कडक हो जाता है । उससे उसमें निहित पानी का अंश भी निकल जाता है । इसी कारण रेफ्रिजरेटर में रखा हुआ पाव कुछ समय पश्‍चात खाने पर गले में फंस जाता है । केक जैसे पदार्थों में भी यही प्रक्रिया दिखाई देती है ।

१ उ. ‘वॉक-इन फ्रिज’ किसी बडे कक्ष जैसा होना, उसमें ‘एक ही समय अनेक पदार्थ कक्ष में बंद रखने से उनमें से कोई पदार्थ खराब होने पर ध्‍यान में न आना, खराब हो चुके पदार्थ से दूसरे पदार्थ भी प्रभावित होना, साथ ही उसी कक्ष में चप्‍पल का उपयोग करना’ जैसे अनेक कारणों से उसका हानिकारक होना : ‘वॉक-इन फ्रिज’  रेफ्रिजरेटर का ही एक भाग है । इसमें एक कक्ष को रेफ्रिजरेटर जैसा बनाकर वहां ‘रेफ्रिजरेशन युनिट’ लगाया जाता है । विशेष रूप से औद्योगिक स्‍थानों अथवा पंचतारांकित होटलों में इस प्रकार के रेफ्रिजरेटरों का उपयोग किया जाता है; परंतु इस पद्धति में स्‍वच्‍छता के संदर्भ में अनेक समस्‍याएं आती हैं । हमारे द्वारा बाहर उपयोग की जानेवाली चप्‍पल का उसी कक्ष में उपयोग किया जाता है । ऐसे रेफ्रिजरेटरों में स्‍थान (स्‍पेस) अधिक होने से अनेक पदार्थ एकत्रित रखे जाते हैं । उनमें से कोई एक पदार्थ खराब होने पर वह ध्‍यान में भी नहीं आता । कक्ष पूर्णतः बंद होने से उस एक खराब पदार्थ के कारण वहां के अन्‍य पदार्थ भी प्रभावित होते हैं । ऐसे कुछ कारणों से ‘वॉक-इन रेफ्रिजरेटर’ हानिकारक ही सिद्ध होता है ।

     उक्‍त सभी उदाहणों से रेफ्रिजरेटर से होनेवाली हानि ही दिखाई देती है, साथ ही उसके कारण ‘अन्‍न भी प्रभावित होता है’, यह बात ध्‍यान में आती है ।’                                                                                                                                                                                    (क्रमशः)

– श्री. ऋत्‍विज ढवण (‘हॉटेल मैनेजमेंट’ का छात्र (पूर्व)), महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा.  (१०.९.२०२०)