आपातकाल से पार होने के लिए साधना सिखानेवाली सनातन संस्था !
आपातकाल में अखिल मानवजाति की प्राणरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी
करने के विषय में मार्गदर्शन करनेवाले एकमात्र परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !
आपातकालीन लेखमाला के पिछले भाग में हमने पारिवारिक स्तर पर आवश्यक नित्य उपयोगी वस्तुआें के विकल्प के विषय में जानकारी प्राप्त की । उसके पहले के लेखों में हमने अनाज, खाद्यपदार्थ आदि के भंडारण के विषय में जानकारी प्राप्त की । इस लेख में स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक व्यवस्था के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे । लेखांक – १०
३. आपातकाल की दृष्टि से शारीरिक स्तर पर आवश्यक व्यवस्था
३ ओ. डॉक्टर (चिकित्सक), वैद्य, चिकित्सालय आदि की संभावित अनुपलब्धता का विचार कर स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक व्यवस्था
३ ओ १. परिवार के लिए आवश्यक औषधियां आपातकाल से पहले पर्याप्त मात्रा में खरीदकर रखना : बाढ, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाआें में यातायात ठप रहता है । इससे अन्य वस्तुआें के साथ-साथ औषधियां मिलना भी कठिन हो जाता है । युद्धकाल में औषधियां प्रमुखरूप से सेना को उपलब्ध कराई जाती हैं । इससे औषधियों का अभाव उत्पन्न होता है । इसलिए परिवार के लिए आवश्यक औषधियां आपातकाल के पहले ही पर्याप्त मात्रा में खरीदना आवश्यक है । परिजनों के रोग के अनुसार कौन-सी औषधियां कितनी मात्रा में खरीदनी चाहिए, भविष्य में नित्य के रोगों के लिए कौन-सी औषधियां लेकर रखनी चाहिए, इस विषय में समीप के डॉक्टर अथवा वैद्य से परामर्श करें ।
हाट में (बाजार में) मिलनेवाली कुछ तैयार आयुर्वेदिक और ‘होम्योपैथिक’ औषधियों का दैनिक जीवन के विकारों में कैसे उपयोग करना है, इसकी जानकारी सनातन संस्था की ‘आपातकाल में संजीवनी’ नामक ग्रंथमाला के आगामी ग्रंथ में दी जाएगी । कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का उत्पादन सनातन संस्था ने आरंभ कर भी दिया है और वे शीघ्र सबके लिए उपलब्ध होंगी ।
३ ओ २. औषधीय वनस्पतियों का रोपण : आपातकाल में बनी-बनाई औषधियों की संभावित अनुपलब्धता का विचार कर, पहले से ही अनेक विकारों में उपयोगी औषधीय वनस्पतियों का रोपण हम अपने घर के ओसारे, आंगन आदि में कर सकते हैं । इससे आपातकाल में औषधि के अभाव में हमारी दुर्दशा नहीं होगी । (पौधारोपण संबंधी विवेचन सनातन संस्था के ग्रंथ, ‘स्थानकी उपलब्धताके अनुसार औषधीय वनस्पतियोंका रोपण’ एवं ‘औषधीय वनस्पतियोंका रोपण कैसे करें ?’ में किया गया है ।)
३ ओ ३. अपने आसपास के परिसर में पहले से उपलब्ध औषधीय वनस्पतियों के विषय में जानकार लोगों से जानकारी प्राप्त करना एवं उनका उपयोग करके देखना : अडूसा, तुलसी, बेल, गूलर, पीपल, वट, नीम जैसी औषधीय वनस्पतियां सर्वत्र मिलती हैं । पुनर्नवा, दूर्वा, चिचडा, (भंगरैया) भृंगराज जैसी वनस्पतियां अनेक स्थानों पर अपनेआप उगती हैं । जानकार लोगों से ऐसी वनस्पतियों को पहचानना सीख लें और ‘वनस्पतियों के औषधीय गुणधर्म’ से संबंधित सनातन संस्था के ग्रंथों में (मराठी भाषा) उनका उपयोग पढकर वनस्पतियों का उपयोग करके देखें ।
सनातन संस्था के आगामी ग्रंथों में घरेलू औषधियों के विषय में जानकारी दी जाएगी ।
३ ओ ४. छोटे-मोटे रोगों का उपचार करने के लिए औषधियों पर आश्रित न रहकर, उपवास करना, धूप में बैठना आदि बिना-औषधियों के उपचारों का अभ्यास अभी से आरंभ करना : इन उपचारों की जानकारी सनातन संस्था के ‘आपातकालमें संजीवनी’ ग्रंथमाला के आगामी ग्रंथ में दी जाएगी ।
३ ओ ५. ‘बिंदुदाब (एक्यूप्रेशर)’, ‘ रिक्त गत्ते के बक्सों से उपचार, ‘नामजप-उपचार’ एवं ‘प्राणशक्ति प्रणाली उपचार’ आदि उपचार-पद्धतियां सीखना : उपर्युक्त उपचार-पद्धतियों के विषय में सनातन संस्था ने ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । ‘www.sanatan.org’ एवं ‘www. ssrf.org’ जालस्थल पर भी इन उपचार-पद्धतियों के विषय में जानकारी रखी गई है ।
[योगासन, सरल व्यायाम, प्राणायाम, मर्मचिकित्सा, स्नायु चिकित्सा (न्यूरोथेरेपी), रंग चिकित्सा जैसी अन्य प्रचलित बिना-औषधि चिकित्सा-पद्धतियां सीखकर उनका भी उपयोग किया जा सकता है ।]
३ ओ ६. विकार होने पर औषधि लेने की अपेक्षा वह उत्पन्न ही न हो, इसके लिए अभी से प्रयत्न करना : इस विषय का विवेचन, सनातन संस्था के आगामी ग्रंथ ‘आयुर्वेद के अनुसार आचरण कर, औषधियों के बिना निरोगी रहें !’ में किया गया है ।
३ औ. परिवार के न्यूनतम एक सदस्य द्वारा ‘प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण’ लेना : चोट लगना, रक्तस्राव, जलना, मूर्छित होना, हृदयाघात आदि प्रसंग जीवन में कभी भी आ सकते हैं । आपातकाल में उपचार के लिए डॉक्टर तुरंत मिल ही जाएंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता इस समय रोगी का तात्कालिक उपचार कर उसके प्राण बचाने हेतु ‘प्राथममिक उपचार प्रशिक्षण’ लेना आवश्यक है ।
‘हिन्दू जनजागृति समिति’ की ओर से विभिन्न स्थानों पर नि:शुल्क ‘प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण वर्ग’ आयोजित किए जाते हैं । इनका लाभ लीजिए । इसके अतिरिक्त, सनातन संस्था की ग्रंथमाला के ग्रंथ ‘प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण (खंड ३)’ भी उपलब्ध हैं ।
३ अं. परिवार के न्यूनतम एक सदस्य द्वारा ‘अग्निशमन प्रशिक्षण’ प्राप्त करना : आपातकाल में बमविस्फोट तथा अन्य कारणों से भी, आग लगना, आग में घिरना जैसी परिस्थिति उत्पन्न होने की संभावना अधिक रहती है । आपातकाल में शासकीय ‘अग्निशमन सेवा’ तुरंत सहायता के लिए उपलब्ध होगी, यह कहा नहीं जा सकता । इसलिए ऐसी आपदाआें में अपनी रक्षा के लिए ‘अग्निशमन प्रशिक्षण’ लेना आवश्यक है ।
सनातन संस्था का ‘अग्निशमन प्रशिक्षण’ ग्रंथ उपलब्ध है; इसका अवश्य लाभ लें । ‘अग्निशमन प्रशिक्षणवर्ग’ कहीं चलता हो, तो उसमें भी भाग लें ।
४ अं १. दंगाईयों, गुंडों आदि से अपनी तथा परिजनों की रक्षा के लिए ‘स्वरक्षा प्रशिक्षण’ लेना : दंगाईयों, गुंडों, बलात्कारियों आदि असामाजिक तत्त्वों से देश की सर्वसामान्य जनता आज भी पीडित है । आपातकाल में अनेक बार अराजकता जैसी परिस्थिति बन जाती है । इस समय असामाजिक तत्त्वों का संकट (प्रभाव) बढ जाता है । इनसे रक्षा के लिए अभी से ‘स्वरक्षा प्रशिक्षण’ लेना आवश्यक है ।
‘हिन्दू जनजागृति समिति’ की ओर से ‘स्वरक्षा प्रशिक्षणवर्ग’ नि:शुल्क चलाया जाता है । इन प्रशिक्षण वर्गों का तथा सनातन संस्था के ग्रंथ ‘स्वरक्षा प्रशिक्षण’ का लाभ अवश्य लें ।
४ अ. आपातकाल की दृष्टि से आवश्यक अन्य व्यवस्था
१. आधुनिक चिकित्सा यंत्रों अथवा उपकरणों से की जानेवाली आवश्यक चिकित्सा, उदा. आंखों की शल्यक्रिया, दंत चिकित्सा आपातकाल से पहले करा लें ।
२. भोजन, पानी, बिजली, रसोई गैस तथा अन्य वस्तुएं (उदा. खाद्यतेल) मितव्ययता से खर्च करने का स्वभाव अभी से बना लें ।
३. ‘अपने स्वास्थ के लिए कौन-सा अन्न आवश्यक है’, यह जानकर उसके अनुसार उचित मात्रा में आहार सेवन करने का स्वभाव अभी से बना लें । आपातकाल में अपनी रुचि का भोजन अथवा पदार्थ मिलेगा, यह आवश्यक नहीं । इसलिए अपनी रुचि-अरुचि अभी से नियंत्रण करना आरंभ करें । आपातकाल में कंद-मूल खाना पड सकता है अथवा भूखा भी रहना पड सकता है । इस दृष्टि से भी मन को तैयार करें ।
४. ग्रीष्म, वर्षा और शीत ऋतुआें के अनुरूप न्यूनतम वस्त्रसंख्या में काम चलाने का अभ्यास अभी से करें ।
५. सभी आवश्यकताएं [उदा. स्नान के लिए गरम पानी ही चाहिए, निरंतर पंखे के नीचे रहना आवश्यक है, वातानुकूलित यंत्र (एसी) के बिना नींद न आना] यह सब अल्प करने का धीरे-धीरे अभ्यास करें ।
६. आपातकाल में उपयोगी विविध शारीरिक कार्य यथासंभव अभी से आरंभ करें, उदा. रहट से पानी निकालना, हाथ से कपडे धोना, उत्थापक (लिफ्ट) का उपयोग न कर सीढी से आना-जाना, अल्प दूरी का काम करने के लिए गाडी के स्थान पर साइकिल का उपयोग करना । तात्पर्य यह कि ‘यंत्रों पर निर्भरता घटाकर अधिक स्वावलंबी बनें !’
७. प्रतिकूल परिस्थिति में भी शरीर स्वस्थ रहे, इसके लिए प्रतिदिन व्यायाम (उदा. सूर्यनमस्कार करना, न्यूनतम १-२ कि.मी. चलना), प्राणायाम, योगासन आदि करें ।
(संदर्भ : सनातन की आगामी ग्रंथमाला ‘आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक व्यवस्था’)
(इस लेखमाला के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ के पास सुरक्षित हैं ।)