जमशेदपुर (झारखंड) की कु. मधुलिका शर्मा (आयु २७ वर्ष) ६१ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर प्राप्‍त कर जन्‍म-मृत्‍यु के चक्र से मुक्‍त !

(बाएं से) श्रीमती रेणु शर्मा कु. मधुलिका शर्मा का भेटवस्तु देकर सत्‍कार करते हुए 

     जमशेदपुर (झारखंड) – यहां पर अधिक मास के अवसर पर आपातकाल में साधना के प्रयास कैसे बढाएं, इस विषय पर साधकों के लिए एक विशेष ‘ऑनलाइन’ सत्‍संग का आयोजन किया गया था । कु. मधुलिका द्वारा अपने प्रयास बताने पर सभी साधकों को उनके प्रयत्नों से प्रेरणा मिली । इसके उपरांत हिन्‍दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी ने कु. मधुलिका में भाव, चूकों के प्रति खेद लगना, शरणागती, अंतर्मुखता, प्रामाणिकता, गुरुआज्ञा के प्रति लगन आदि गुण बताकर उन्‍होंने घोषित किया कि कु. मधुलिका ने ६१ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर प्राप्‍त किया । यह आनंद वार्ता सुनकर सभी साधकों की भाव जागृति हुई । इस समय कृतज्ञता व्‍यक्‍त करते हुए कु. मधुलिका ने कहा, ‘‘मैं तो कितनी गलतियां करती हूं । ये केवल परात्‍पर गुरु डॉ. अठावलेजी की कृपा, संतों के मार्गदर्शन तथा साधकों की सहायता के कारण हुआ है । इस सत्‍संग में मधुलिका की मां श्रीमती रेणु, पिता श्री. सुदामा, छोटी बहन कु. मृणालिका तथा छोटे भाई स्‍वप्‍निल सहभागी थे । आनंदवार्ता सुनने पर परिवारवालों ने परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति कृतज्ञता व्‍यक्‍त की । श्रीमती रेणु शर्मा ने मधुलिका को भेंटवस्‍तु देकर उनका सत्‍कार किया । इस ‘ऑनलाइन’ सत्‍संग में झारखंड, बंगाल और उत्तर पूर्व के साधक सहभागी हुए थे ।

पू. नीलेश सिंगबाळजी को ध्‍यान में आईं कु. मधुलिका शर्मा की गुणविशेषताएं

‘कु. मधुलिका शर्मा विगत ११ वर्षों से साधना कर रही हैं । वे जमशेदपुर में रहकर झारखंड की सेवाआें का दायित्‍व देखती हैं ।

१. जमशेदपुर में साधकसंख्‍या न्‍यून होते हुए भी मधुलिका और
उसके परिवारजनों द्वारा गुरुकार्य का दायित्‍व लेकर उसका निर्वहन किया जाना

श्री. शंभू गवारे झारखंड के हिन्‍दू जनजागृति समिति के राज्‍य समन्‍वयक बने । तब से लेकर मधुलिका ने साधना की दृष्‍टि से उनका लाभ उठाने का प्रयास किया । उनका पूरा परिवार ही साधनारत है तथा उन सभी में परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति श्रद्धा है । जमशेदपुर में साधकसंख्‍या न्‍यून है और अन्‍य साधक भी सेवा के लिए अधिक समय नहीं दे पाते । ऐसी स्‍थिति में भी मधुलिका और उनके परिवारजनों ने वहां के गुरुकार्य का दायित्‍व लेकर निर्वहन किया और उसे बढाने हेतु निरंतर प्रयास किए ।

२. गुरुपूर्णिमा स्‍मरणिका की गुणवत्ता को बढाने का प्रयास

‘गुरुपूर्णिमा के समय स्‍मरणिका की संरचना करना, उसकी छपाई हेतु मुद्रणालय में जाकर बात करना और उन्‍हें समय पर छपवाना’, ये सेवाएं वे परिपूर्ण करती हैं । स्‍मरणिका की गुणवत्ता को उत्तरोत्तर बढाने हेतु वे अच्‍छे प्रयास करती हैं ।

३. नियमितरूप से ब्‍यौरा देना

वे जनपद में किए गए उपक्रम अथवा कार्य का नियमितरूप से ब्‍यौरा देती हैं, साथ ही स्‍वयं की व्‍यष्‍टि साधना का ब्‍यौरा संक्षेप में भेजने का प्रयास करती हैं । – (पू.) श्री. नीलेश सिंगबाळजी, वाराणसी (२३.६.२०२०)

गुणविशेषताएं

१.साधकांना साधनेत साहाय्‍य करणे

अ. ‘साधकों को उनकी व्‍यष्‍टि साधना में सहायता मिले’; इसके लिए मधुलिकादीदी व्‍यष्‍टि साधना के संबंध में अभ्‍यासवर्ग लेती हैं । ‘साधकों को प्रत्‍येक सूत्र ठीक से समझ में आए; इसके लिए उन्‍होंने ‘पीपीटी’(पॉवरपॉइंट प्रेजेंटेेशन) संगणकीय प्रणाली का उपयोग कर ‘स्‍वभावदोष एवं अहंनिर्मूलन’ अथवा ‘प्राणशक्‍ति वहन में निहित बाधाआें को खोजने की पद्धति’ विषयों को अधिक अच्‍छे प्रकार से समझाया है । उसके कारण स्‍वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया के प्रति साधकों में रुचि उत्‍पन्‍न हुई है । अब साधक प्रतिदिन स्‍वभावदोष एवं अहं निर्मूलन हेतु सारणी लिख रहे हैं ।’ – श्री. शंभू गवारे

आ. ‘स्‍वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया के अभ्‍यासवर्ग में सभी साधक सम्‍मिलित हों’, इस दृष्‍टि से दीदी ने साधकों से कुछ प्रश्‍न पूछकर उन पर उनसे चिंतन करवाया । उसके कारण इस सत्‍संग में साधक उत्‍स्‍फूर्तता से सहभागी होते हैं और उस सत्‍संग में बहुत चैतन्‍य प्रतीत होता है ।’
– श्रीमती श्रेया प्रभु

२. व्‍यवस्‍थितपना

‘कु. मधुलिका ने ‘सेवा से संबंधित सभी सूत्रों का व्‍यवस्‍थित अध्‍ययन करना संभव हो’; इसके लिए सभी सेवाआें की अलग-अलग बहियां बहुत सुंदर पद्धति से तैयार की हैं । वे उनमें सेवाआें की प्रविष्‍टियां सुंदर अक्षरों में करती हैं । इससे सेवा के प्रति उनकी लगन ध्‍यान में आती हैं । उनकी बहियां देखकर ही हमारा भाव जागृत होता है ।

३. सीखने की वृत्ति

मधुलिकादीदी उच्‍चशिक्षित हैं; परंतु तब भी कुछ सूत्र समझ में नहीं आने पर वे बडी विनम्रता से, ‘मुझे यह सूत्र समझ में नहीं आया’, ऐसा बताती हैं और उस सूत्र के संदर्भ में जानकर लेती हैं ।

४. परिश्रमशील

दीदी बहुत परिश्रमी हैं । सेवा अच्‍छी एवं परिपूर्ण होने हेतु वे बहुत परिश्रम उठाती हैं । कोई भी सेवा आने पर उसमें निहित सूत्रों का वे बारीकी से अध्‍ययन करती हैं, जिससे उस सेवा में कोई त्रुटि न रहे ! – श्रीमती श्रेया प्रभु, वाराणसी

५. स्‍वीकार करने की वृत्ति

उन्‍हें उनकी चूक बताए जाने पर वे अपनी चूक स्‍वीकार कर उस पर स्‍वसूचनाएं लेती हैं ।’

६. ध्‍यान में आया बदलाव

अ. पहले दीदी को साधकों के साथ बात करने में रुचि नहीं होती थी । जब उन्‍हें अन्‍यों के साथ बोलने का महत्त्व बताया गया, तब उन्‍होंने उस दिशा में प्रयास करने आरंभ किए । अब वे साधकों के साथ मन खोलकर बातें करती हैं ।
आ. पहले उनमें सत्‍संग लेने के संबंध में आत्‍मविश्‍वास का अभाव था । ‘समष्‍टि सेवा की दृष्‍टि से सत्‍संग लेना आवश्‍यक है’, जब यह बात उनके ध्‍यान में आई, तब उन्‍होंने ‘सत्‍संग कैसे लेना चाहिए ?’, इसका अध्‍ययन करती हैं और ‘सत्‍संग में विषय को कैसे रखना है ?’, यह भी पूछती हैं ।
इ. पहले दीदी को सेवा में रुचि-अरुचि होने की मात्रा अधिक थी । जब उन्‍हें इस सूत्र के संबंध में बताया गया, तब उन्‍होंने उस पर प्रयास करना आरंभ किया ।
ई. समष्‍टि में चूकें बताते समय उन पर बहुत तनाव आता था । उससे वे इस सत्‍संग में सहभागी होना टाल देती थीं; परंतु अब वे इस सत्‍संग में सहभागी होने का प्रयास करती हैं और अब उनमें इस संदर्भ में तनाव आना भी अल्‍प हो
गया है ।
– श्री. शंभू गवारे (२३.६.२०२०)