महाभीषण आपातकाल की दृष्टिी से आयुर्वेदिक और ‘होमियोपैथिक’ औषधियां तथा योगासन और प्राणायाम का महत्त्व ध्यान में लें !

     ‘वर्तमान में अनेक लोग मधुमेह, रक्‍तचाप, हृदयरोग, तीव्र आम्‍लपित्त (हाइपर एसिडिटी), घुटनों में वेदना जैसे अनेक विकारों पर अनेक वर्षों से ‘एलोपैथिक’ औषधियां ले रहे हैं । वे ‘एलोपैथिक’ औषधियों के इतने अभ्‍यस्‍त हो चुके हैं कि वे औषधियों के बिना जीवन का विचार ही नहीं कर सकते । भावी काल में होनेवाला विश्‍वयुद्ध, बाढ, भूकंप आदि भीषण आपदाआें में संचार ठप्‍प होने से अन्‍य सामग्री सहित औषधियां मिलना भी कठिन होगा । युद्धकाल में औषधियों के संग्रह का उपयोग प्राथमिकता से सेना के लिए किया जाता है । इसलिए औषधियों की कमी उत्‍पन्‍न होती है । इस दृष्‍टि से परिवार के लिए आवश्‍यक औषधियां आपातकाल से पूर्व ही पर्याप्‍त मात्रा में खरीदकर रखना आवश्‍यक है ।

१. ‘एलोपैथिक’ औषधियों की मर्यादा और आयुर्वेदिक और ‘होमियोपैथिक’ औषधियों के लाभ

     ‘एलोपैथिक’ औषधियां एक बार में ३ मास की अवधि से अधिक समय तक के लिए खरीदी नहीं जा सकतीं । इसके विपरीत आयुर्वेदिक और ‘होमियोपैथिक’ औषधियां हम पहले ही परिवार के लिए पर्याप्‍त मात्रा में खरीदकर रख सकते हैं । ये औषधियां व्‍यवस्‍थित संग्रहित कर रखने पर वे ४ – ५ वर्षों से भी अधिक समय तक टिकती हैं । कुछ आयुर्वेदिक औषधियां स्‍थायी रूप से टिकनेवाली होती हैं अर्थात उनकी ‘समाप्‍ति तिथि’ (एक्‍सपायरी डेट) नहीं होती । हम अनेक विकारों पर उपयुक्‍त सिद्ध होनेवाली आयुर्वेदिक औषधि वनस्‍पतियों का रोपण अपने घर के सज्‍जे, आंगन आदि स्‍थानों पर कर सकते हैं । सनातन ने ‘औषधि वनस्‍पतियों का रोपण’ इस विषय पर ग्रंथ भी प्रकाशित किए हैं ।

२. ‘एलोपैथिक’ औषधियों के साथ ही आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक औषधियां लेना प्रारंभ करें !

     उक्‍त बातों को ध्‍यान में रखकर जो केवल ‘एलोपैथिक’ औषधियों पर निर्भर हैं, ऐसे लोगों को अभी से आयुर्वेदिक और ‘होमियोपैथिक’ औषधियों की ओर मुडना चाहिए । आयुर्वेदिक वैद्य अथवा ‘होमियोपैथिक’ डॉक्‍टर के मार्गदर्शनानुसार ‘एलोपैथिक’ औषधियों के साथ ही धीरे-धीरे आयुर्वेदिक अथवा ‘होमियोपैथिक’ औषधियां प्रारंभ कर देनी चाहिए । इन औषधियों के गुण दिखाई देने पर धीरे-धीरे ऐसी स्‍थितियां उत्‍पन्‍न करनी पडेंगी, जिससे ‘एलोपैथिक’ औषधियों की मात्रा कम कर उनकी आवश्‍यकता ही न पडे ।

३. औषधियों के बिना विकार मुक्‍त होने की चाबी !

     आयुर्वेद के तत्त्वों के समान नियमित आचरण करने से हम सदैव विकार मुक्‍त रह सकते हैं । इस संबंध में ‘आयुर्वेदानुसार आचरण कर औषधियों के बिना निरोगी रहें !’ यह सनातन का ग्रंथ प्रकाशित होनेवाला है ।

     ‘विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में योगासन और प्राणायाम सीखकर उन्‍हें नियमित और उचित पद्धति से करने पर अनेक विकार औषधियों के बिना भी ठीक हो जाते हैं’, ऐसा अनेकों का अनुभव है । ये बातें अभी से प्रारंभ करनी चाहिए । मनुष्‍यजन्‍म अनमोल है । औषधियों के बिना जीवन खोने की अपेक्षा उक्‍त दृष्‍टिकोणों के अनुसार कृत्‍य कर आपातकाल में मनुष्‍यजन्‍म सुरक्षित रखें और उसका उपयोग साधना के लिए कर मनुष्‍यजन्‍म का सार्थक कर लें !’

– (पू.) श्री. संदीप आळशी (१२.५.२०२०)