औषधं जान्हंवीतोयम् ।

   

काशी हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय के न्‍यूरोलॉजी विभाग के एक शोधदल ने शोध किया है कि ‘गंगाजल का सेवन करनेवाले ९० प्रतिशत लोगों में कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ ।’ इस विभाग ने यह शोधलेख ‘मेडिकल साइन्‍स एथिकल’ संस्‍था के पास भेजा है । इस संस्‍था की अनुमति मिलने पर गंगाजल और साधारण पानी का परीक्षण किया जाएगा । यह लेख विख्‍यात अमेरिकी पत्रिका ‘माइक्रोबायोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है ।

गंगा का माहात्‍म्‍य

     ‘औषधं जान्‍हवीतोयम्’ अर्थात ‘गंगा नदी का जल औषध है ।’ हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्र में सैकडों औषधीय वनस्‍पतियां पाई जाती हैं । वहां की पर्वतशृंखलाआें के पत्‍थरों से निकली जलधाराआें में औषधीय गुण मिलते हैं । इन वनस्‍पतियों में, घृतकुमारी (ढेंकुआर) से अडुसा तक और वृक्षों में नीलगिरि से देवदार तक होते हैं, जिनके सत्त्व इस जल में मिले होते हैं, जो इसे आरोग्‍यदायी बनाते हैं । प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्‍थ ‘चरकसंहिता’ में गंगाजल का वर्णन औषध के रूप में किया गया है । गंगाजल सेवन से रोगप्रतिकारक क्षमता बढना, पुराने रोग ठीक होना, ‘मल्‍टीरेसिस्‍टेट’ अर्थात विविध प्रकार की औषधियां निष्‍प्रभावी होने पर भी रोगी की दशा सुधरना, घाव ठीक होना ऐसे अनेक असाधारण विशेषताआें से युक्‍त गंगाजल, सचमुच जीवनदायिनी है !

     वाराणसी का गंगाजल रासायनिक कूडे का प्रदूषण ८० प्रतिशत दूर करता है । गंगा में प्राणवायु (ऑक्‍सीजन) की मात्रा अधिक होती है । इसलिए, यह जल प्रदूषित पानी में प्राणवायु की मात्रा शीघ्र बढा देता है । वर्ष १९८१ में अमेरिका की एक प्रसिद्ध पत्रिका ‘स्‍टेट्‍समैन’ में यह शोध छपा था । अमेरिकी विचारक और अभिनेता मार्क ट्‍वेन ने सिद्ध किया था कि ‘कीटाणु युक्‍त गंगाजल भी ६ घंटे में कीटाणु रहित हो जाता है । यह प्रभावी रोगाणुनाशक और शुद्धीकारक है ।’ कनाडा देश के शोधकर्ता हैरिसन ने कहा है, ‘दूषित गंगाजल में लाखों लोग स्नान करते हैं; फिर भी उन्‍हें कॉलरा नहीं होता, यह एक बडा चमत्‍कार है ।’ यह हुआ पाश्‍चात्‍यों का दिया हुआ प्रमाण । किन्‍तु, ‘शैवाल और कीचड युक्‍त आपका जल मेरे पाप दूर करता रहे’, यह प्रार्थना ‘गंगालहरी’ स्‍तोत्र में क्‍यों की गई है, इस प्रश्‍न का उत्तर उपर्युक्‍त वर्णनों से मिलता है । (असाध्‍य रोगों का मूल कारण ‘पाप’ है, यह हिन्‍दू धर्मग्रन्‍थों में लिखा है ।) धर्मशास्‍त्र के सिद्धांत कितने सत्‍य होते हैं, यह अब आधुनिक विज्ञान भी बता रहा है, इससे दूसरा बडा उदाहरण क्‍या दें ?

आईसीएमआर इस शोध को महत्त्व देगी ?

     केंद्रशासन, ‘नमामि गंगे’ नाम से गंगाशुद्धीकरण का व्‍यापक अभियान चलाकर, गंगा को शुद्ध कर रही है । यह कार्य वह गंगा का महत्त्व ज्ञात होने के कारण ही कर रहा है । गंगा के किनारे बसे ४५ जनपदों में, अन्‍य जनपदों की तुलना में कोरोना के रोगी कम मिले और जो मिले, वे शीघ्र स्‍वस्‍थ भी हो रहे हैं । ‘अब सरकार को चाहिए कि वह इस नए शोध को गंभीरता से लेकर इसपर अधिक शोध करवाए’, यह इस विषय से संबंधित अनेक शोधकर्ताआें की हार्दिक इच्‍छा है । ‘कोरोना महामारी पर गंगाजल का कुछ मात्रा में प्रतिबंधात्‍मक उपयोग हो सकता है’, यह उनके प्राथमिक शोध से उजागर हुआ है । अब तो गंगाशुद्धीकरण से गंगाजल में सात्त्विकता और औषधीय गुण बहुत बढ गए होंगे । इस विपुल गंगाजल का औषध के रूप में उपयोग के लिए किया गया प्रयत्न, प्राकृतिक और सस्‍ता होगा; परंतु यह भी तब होगा, जब आईसीएमआर (इंडियन कौन्‍सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) इसे महत्त्व और मान्‍यता देगी । तब, आगे बताए कार्य साध्‍य होंगे । ‘अतुल्‍य गंगा’ नामक सामाजिक संस्‍था के अनुसार गंगा में विद्यमान विशेष प्रकार के विषाणु, कोरोना को समाप्‍त कर सकते हैं । इस संस्‍था ने तथा कुछ अन्‍य शोध संस्‍थाआें ने भी गंगा के औषधीय उपयोग के विषय में पत्र, जल शक्‍ति मंत्रालय के पास भेजे हैं । जल शक्‍ति मंत्रालय ने ये पत्र आईसीएमआर को सौंप दिए हैं । कुछ चिकित्‍सालय और आधुनिक चिकित्‍सक भी यह शोधकार्य करने के लिए मिल सकते हैं । ‘स्‍वच्‍छ गंगा मंत्रालय’ और ‘नमामि गंगे योजना’ ने भी आईसीएमआर को पत्र लिखा है । परंतु, आईसीएमआर ने सरकार को सूचित किया है कि ‘अभी हम इस विषय में अध्‍ययन के लिए समय नहीं देना चाहते । यह शोध अभी प्राथमिक स्‍तर पर है । इसमें अगले कार्य के विषय में कोई निश्‍चित बात नहीं बताई गई है । इस शोध में अनेक वर्ष लग सकते हैं; फिर भी, हम सरकार को पूरा सहयोग करेंगे ।’’ किंतु, इस स्‍थिति में भी, आईसीएमआर संस्‍था शोध की दृष्‍टि से सरकार से बात कर, कोई मार्ग निकालने का प्रयत्न निश्‍चित कर सकती है ।

     कोरोना समान गंभीर महामारी पर आरंभिक प्रतिबंधात्‍मक उपाय के रूप में गंगाजल का सेवन भी अनेक अंशों में लाभदायक सिद्ध हो सकता है । अब इसके लिए किसी दूसरे के प्रमाणपत्र की आवश्‍यकता नहीं है । वर्तमान में, रूस के टीके का दुष्‍प्रभाव दिखाई दिया है । भारतीय संस्‍थाआें ने भी टीका बनाने का कार्य रोक दिया है और अमेरिका ने भी अभी तक टीके के विषय में कोई ठोस आश्‍वासन नहीं दिया है । महासत्ता अमेरिका को भी, प्रकृति के सामने झुकना पड रहा है । कोरोना संकट रुकने का नाम नहीं ले रहा है; फिर भी भारत में अनेक पारंपरिक प्रतिबंधात्‍मक उपाय समाज के लोग अपने-अपने स्‍तर पर करते दिखाई दे रहे हैं । इस निमित्त समाज आयुर्वेद की ओर मुडा है तथा कुछ लोग उपासना भी करने लगे हैं । इस परिस्‍थिति में भी, गंगाजल के विषय में अब तक जो शोध हुआ है, वह अंतिम न हो, तब भी उपेक्षा करने योग्‍य नहीं है । ‘ऊपर से मलिन दिखनेवाले इस चैतन्‍यजल में विषाणुआें का नाश कर, रोगमुक्‍त करने की शक्‍ति होना’, यह उसकी अलौकिकता का प्रत्‍यक्ष प्रमाण है । भारतीयों के महान पुण्‍य के कारण उन्‍हें चैतन्‍यदायी जल, भूमि, औषधशास्‍त्र, योगशास्‍त्र यह सब मिला है । अधिकतर भारतीय लोग श्रद्धालु हैं और वे इस श्रद्धा के बल पर पंचमहाभूतों की सहायता से प्रत्‍येक संकट पर विजय प्राप्‍त करेंगे, इसमें संदेह नहीं ।