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सरकारी संस्थाएं ऐसे संशोधन क्यों नहीं करतीं ? आयुष मंत्रालय ने पहले ही ऐसे संशोधन किए होते, तो भारतीयों औषधि के रूप में गंगालज दिया जा सकता था ! अभी भी समय नहीं गया है । इस पर अधिक संशोधन कर इसका प्रयोग करना चाहिए !
नई देहली – गंगाजल का नियमित प्रयोग करनेवाले ९० प्रतिशत लोगों पर कोरोना संक्रमण का प्रभाव नहीं होता है, ‘बीएचयू आइएमएस’ के दल ने अपने संशोधन में ऐसा दावा किया है । इस दल ने गंगा नदी के किनारे रहने वाले लोगों पर कोरोना के दुष्परिणाम के संदर्भ में संशोधन किया । अमेरिका के ‘माइक्रोबायोलॉजी’ के अंतरराष्ट्रीय जर्नल में यह शोधनिबंध प्रकाशित हुआ है ।
यह शोधनिबंध पढ़ने के लिए आगे दिए हुए चित्रों पर क्लिक करें –
१. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के (बीएचयू. के) न्यूरोलॉजी विभागा के विभाग प्रमुख डॉ. रामेश्वर चौरसिया और न्यूरोलॉजिस्ट प्रा. वीएन मिश्रा के नेतृत्व में काम करने वाले दल के प्राथमिक सर्वेक्षण में ध्यान में आया कि नियमित गंगा नदी में स्नान करने और किसी न किसी रूप में गंगाजल का सेवन करनेवालों पर कोरोना संसर्ग का प्रभाव नहीं होता है ।
२. गंगा नदी के किनारे बसे ४२ जिले में अन्य शहरों की तुलना में कोरोना का संसर्ग ५० प्रतिशत से भी कम है और संसर्ग के बाद शीघ्र स्वस्थ्य हेने वालों की संख्या भी अधिक है ।
३. प्रा. वीएन मिश्रा ने कहा कि इस अध्ययन के अनुसार गोमुख से गंगा सागर तक १०० स्थानों से नमूने लिए गए । कोरोना मरीजों के उपचार के लिए गंगा जल से नाक का स्प्रे भी बनाया गया है । ‘इंडियन मेडिकल साइंस’ की एथिकल समिति के पास उसका ब्योरा भेजा गया है । एथिकल समिति से स्वीकृति मिलते ही मनुष्य पर इस स्प्रे का प्रयोग करके इसकी जांच की जाएगी ।
४. अनुमति मिलने के पश्चात २५० लोगों में से कुछ लोगों पर जांच करते समय उनकी नाक में गंगा जल डाला जाएगा, और शेष लोगों की नाक में सादा पानी डाला जाएगा । भारतीय वैद्यकीय संशोधन परिषद के पास इस जांच का ब्योरा भेजा जानेवाला है ।