सनातन के ७३ वें संत ‘पू. प्रदीप खेमकाजी का जन्मदिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी (ऋषिपंचमी) को है । इस निमित्त उनसे सीखने को मिले सूत्र यहां दे रहे हैं ।
पू. प्रदीप खेमकाजी को जन्मदिन निमित्त सनातन परिवार की ओर से कोटि-कोटि प्रणाम !
१. समय का पालन करना
१ अ. ‘समय ईश्वर है । हमें उसका पालन करना चाहिए’, इस भाव से प्रत्येक कृति करने का प्रयत्न करना : प्रत्येक सत्संग में ईश्वर उपस्थित होते हैं । इसलिए पू. खेमकाजी का भाव होता है कि सत्संग का आरंभ और समापन समय पर हो । इसका पालन वे स्वयं भी करते हैं । विषय प्रस्तुत करते समय यह ध्यान में आते ही कि थोडा अधिक समय लगनेवाला है, पू. खेमकाजी पहले ही पूछते हैं, ‘‘क्या मैं ३ – ४ मिनट अधिक ले सकता हूं ?’’ साधकों पर भी यह संस्कार निर्माण हो इसलिए वे प्रत्येक सत्संग में बताते हैं, ‘‘समय ईश्वर है । हमें उसका पालन करना चाहिए ।’’
२. पूछने की वृत्ति
संत होने के उपरांत भी पू. खेमकाजी सेवा संबंधी सभी सूत्र उस सेवा से संबंधित उत्तरदायी साधक से पूछते हैं । उनका अनुभव भी बहुत है; परंतु वे अपने मन से कुछ नहीं करते हैं ।
३. प्रेमभाव
३ अ. यातायात बंदी के काल में साधकों से पूछताछ कर पिता समान ध्यान रखनेवाले पू. खेमकाजी ! : पू. खेमकाजी आध्यात्मिक पिता समान सभी साधकों की देखभाल करते हैं । उनमें इतनी सहजता है कि सभी आयु के साधक उनसे मन खोलकर बोलते हैं । आजकल कोरोना के कारण लागू हुई यातायात बंदी के संकटकाल में पू. खेमकाजी साधक और उनके परिवार से समय-समय पर पूछताछ कर, उन्हें आध्यात्मिक आधार देते हैं । उनका ऐसा भाव रहता है कि ‘गुुरुदेव की कृपा से ही साधकों की साधना का दायित्व मुझे मिला है । उन्हें संभालना मेरा कर्तव्य है; क्योंकि प्रत्येक साधक गुरुदेवजी को प्रिय और अनमोल है । उन्हें कोई अडचन नहीं आनी चाहिए ।’
३ आ. साधकों को दूरभाष पर संपर्क कर उन्हें आध्यात्मिक दृष्टिकोण देकर सहायता करना : एक बार वे बोले, ‘‘यातायात बंदी के पूर्व मैं दूरभाष पर १ – २ घंटे सेवा करता था । अब इन दिनों गुरुदेवजी की कृपा से मुझसे दूरभाष पर अधिक घंटे सेवा हो रही है ।’’ पू. खेमकाजी प्रत्येक साधक की स्थिति में जाकर उसकी अडचनें समझ लेते हैं और उन्हें दृष्टिकोण देकर आधार देते हैं । वे साधकों को मानसिक स्तर पर न संभालते हुए आध्यात्मिक स्तर पर संभालते हैं । पू. खेमकाजीके साथ बात करने पर साधक बहुत उत्साही हो जाते हैं ।
४. आज्ञापालन
पू. खेमकाजी को यातायात बंदी के समय अत्यावश्यक होने पर ही घर से बाहर निकलने के लिए कहा गया था । यातायात बंदी के पहले दिन से अब तक वे घर के बाहर नहीं निकले हैं । व्यवसाय संबंधी एक महत्त्वपूर्ण बैठक थी, तब भी उन्होंने संबंधित पदाधिकारियों से कहा, ‘‘मैं नहीं आ सकता ।’’ बैठक में उपस्थित न रहने से व्यवसाय में हानि हो सकती
थी । तब उनका भाव यह था, ‘मेरे गुरु ने बाहर न निकलने के लिए कहा है । इसलिए उनका आज्ञापालन करना है ।’
५. अन्यों की सहायता करना
५ अ. यातायात बंदी के समय साधकों को राखियां पहुंचाने का नियोजन करना : पू. खेमकाजी के पास प्रत्येक समस्या का समाधान होता है । उन्हें कोई अडचन बताता है, तो वे उसका समाधान करते हैं । कोरोना के काल में साधकों को राखियां लेने में अडचन आ रही थी । तब राखियां लाने हेतु उन्होंने एक साधक का (उनके कार्यालय में साधना करनेवाले कर्मचारी का) नियोजन किया और साधकों की मांग के अनुसार उन्हें राखियां पहुंचाईं । साधकों की सहायता के लिए वे सदैव तत्पर रहते हैं ।
६. गुरुकार्य की लगन
पू. खेमकाजी की लगन रहती है कि ‘गुरुकार्य रुकना नहीं चाहिए, उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि होनी चाहिए ।’ उसके लिए वे सदा प्रयत्नरत रहते हैं । कतरास में पू. खेमकाजी गत २० वर्षों से साप्ताहिक सत्संग ले रहे हैं । यह सत्संग अब तक कभी रद्द नहीं हुआ । होली, दिवाली या कोई भी उत्सव हो, साधक सत्संग में आते ही हैं । वर्तमान में कोरोना के कारण सत्संग लेना संभव नहीं, ऐसी स्थिति में वेे ‘ऑनलाइन’ सत्संग ले रहे हैं ।
७. भाव
७ अ. प्रांतीय अधिवेशन के समय भी भावस्थिति में होना : पू. खेमकाजी भाव की प्रतिमूर्ति हैं । गुरुदेव और उनके साधकों के प्रति उनमें इतना भाव है कि उन्हें देखकर ही साधकों की भावजागृति होती है । वाराणसी में प्रांतीय अधिवेशन में वे अश्रुपूर्ण नेत्रों से पूरे समय नमस्कार की मुद्रा में रहते हैं । अधिवेशन स्थल पर इतनी भावस्थिति, आश्चर्यजनक है । उनके सभी वाक्य और कृत्य भावपूर्ण होते हैं ।
७ आ. साधकों में परात्पर गुरुदेवजी का रूप देखना : वर्ष २०११ में सभा होने पर अगले दिन वे साधकों को अपनी नई फैक्टरी (कारखाना) दिखाने के लिए ले गए थे । उस समय ऐसा लग रहा था जैसे वे साधकों को नहीं, अपितु साक्षात परात्पर गुरुदेवजी को ही फैक्टरी (कारखाना) दिखा रहे हैं ।
८. साधिका को पू. प्रदीप खेमकाजी के नाम का सूझा अर्थ
प्र – प्रयत्नों ने जीता है जिन्होंने गुरुदेवजी का मन
दी – दीप्तिमान है साधना से जिनका जीवन
प – परम सुख प्राप्त होता है जिन्हें प्रत्येक क्षण गुरुस्मरण के कारण
खे – खींच लेते हैं अपने भाव के कारण सभी का मन
म – मन जिनका है गंगासमान निर्मल और पावन
का – कान्हा जिनके मनमंदिर में है विराजमान
गुरुदेव के स्मरण मात्र से नम हो जिनकी आंखें ।
जिन्हें हर क्षण रहता है गुरुकार्य की लगन ।
जो करते हैं साधकों से प्रेम, गुरुरूप उनमें देखकर ।
जिनका लगता है सभी को आधार ॥
९. कृतज्ञता
सभी के आदरणीय, गुरुदेवजी के करुणामय रूप का स्मरण करवानेवालेे, हम सभी के आध्यात्मिक पिता पू. खेमकाजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता ! ‘गुरुदेवजी की कृपा के कारण ही हम सभी को पू. खेमकाजी के सत्संग में रहने का अवसर मिला’, इसके लिए हम सभी गुरुचरणोंमें कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं । गुरुचरणों में प्रार्थना है, ‘पू. खेमकाजी के गुण आत्मसात करने के लिए हम सभी से प्रयत्न होने दें ।’
– कु. मधुलिका शर्मा, जमशेदपुर, झारखंड. (६.८.२०२०)
१०. देवतास्वरूप लगना
‘वर्ष २०१० में पू. खेमकाजी से पहली बार मैं एक शिविर में मिली थी । उनकी पहचान करवाते हुए एक साधक ने कहा था, ‘‘पू. खेमकाजी साधकों को ग्रामदेवता समान लगते हैं ।’’ तब से वे मुझे देवतास्वरूप ही लगने लगे हैं । उनमें इतनी सहजता है कि मैं उनसे अपना मन खोलकर बोल सकती हूं । उनसे बोलने के उपरांत मुझे संतोष हो जाता है । वे मुझे बडे भाई जैसे समझाते हुए आधार देते हैं । ‘गुरुदेवजी ने पू. खेमकाजी के रूप में हम सभी को अनमोल भेंट दी है’, इसके लिए उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !’ – श्रीमती रेणु शर्मा, जमशेदपुर, झारखंड.